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कोर्ट में औंधे मुंह क्यों गिरी सरकार की दलीलें, वह सवाल जिनका नहीं था कोई जवाब

कोर्ट में औंधे मुंह क्यों गिरी सरकार की दलीलें, वह सवाल जिनका नहीं था कोई जवाब

PATNA : उधर बिहार में जाति गणना को लेकर राजनीतिक गलियारे से लेकर आम आदमी के बीच बहस जारी थी, लेकिन पटना उच्च न्यायालय के फैसले ने गणना को लेकर छिड़ी बहस को नया मोड़ दे दिया. अब चर्चा कोर्ट में सरकार की दलीलों के चारों खाने चित हो जाने पर जोर पकड़ने पर है. अदालत में सुनवाई के दौरान एक नहीं कई सवाल उठे. न्यायालय ने जाति पर कोंई टिपण्णी या बात नहीं की लेकिन जिरह के दौरान कई बातें सामने आयीं और कई तर्क का सामना राज्य सरकार के वकील नहीं कर सके.

हर आदमी को गिनना ही जनगणना कहलाता है. राज्य सरकार जातीय जनगणना को जाति आधारित गणना या सर्वेक्षण बता रही थी. सरकार का यह दावा ही सबसे पहले पटना उच्च न्यायालय में ढेर हो गया. यही वह सवाल था जिसके आधार पर अदालत में याचिका दायर की गयी थी. बाद में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, फिर सर्वोच्च न्यायालय और अंततः हाईकोर्ट में यह मामला आया. इस दौरान कोर्ट ने यह माना कि भले ही राज्य सरकार इसे जातीय गणना कह रही है, लेकिन यह गणना जनगणना से कुछ अलग नहीं है. 

आइये जानते हैं गणना से जुड़े कुछ ऐसे तथ्यों को जिसपर सरकार कटघरे में खड़ी हुई.

श्रीवास्तव, लाला, लाल ...

विभिन्न जातियों की सूचि लाने के बाद बड़ा सवाल यह था कि जिनकी गणना हो रही है उनको श्रीवास्तव, लाला, लाल जाति बताने वाले किस जाति में दर्ज होंगे? असल में हिंदू दरजी जाति के साथ- साथ कायस्थों की उपजाति श्रीवास्तव और उपनाम लाला और लाल को भी रखा गया था. जब यह मुद्दा उठा तब जानकारी दी गयी कि श्रीवास्तव, लाला, लाल को हटा दिया जाए और उसकी जगह कायस्थ लिखने का निर्देश दिया गया. हिंदू जाति के दर्जी जाति के साथ श्रीवास्तव, लाला, लाल को नहीं रखा जाए.

भूमिहार- ब्राहमण ने साजिश बताया

गणना का लगातार विरोध भूमिहार- ब्राहमण जाति के लोग कर रहे थे. समाज के प्रखर लोगों का तर्क था कि सरकार ने भूमिहार नाम की एक नई जाति बनायीं है जबकि इतिहास गवाह है कि ब्राह्मणों की उपजाति भूमिहार- ब्राहमण है. उधर सरकार का दावा था कि उसके रिकॉर्ड में हर जगह भूमिहार ही उल्लेखित है भूमिहार- ब्राहमण नहीं.

किन्नरों को भी रहा विरोध

किन्नरों को हर जगह थर्ड जेंडर के रूप में दर्ज किया जाता है, लेकिन गणना की सूचि में इन्हें जाति बताते हुए इनके लिए 22 नंबर का कोड दिया गया. किन्नर संघ मामले को लेकर कोर्ट गया और याचिका की सुनवाई में इनके मामले को भी अतैच कर रखा गया है.

मारवाड़ी थे संशय में

गणना की पहली सूचि में मारवाड़ी जाति को कोड दिया गया था, लेकिन संशोधित सूचि से यह नाम गायब था. ऐसे में मारवाड़ी समाज के लोग संशय की स्थिति में थे कि वे अपनी जाति क्या लिखवायेंगे ? बाद में मारवाड़ी बिहार में बनिया जाति के अंदर अग्रहरी वैश्य उपजाति लिखवायेंगे.

सिक्ख धर्म: जाति का विकल्प बाद में

सिक्ख धर्म को मानने वालों के लिए धर्म की सूचि तो थी, लेकिन जाति की नहीं. 15 अप्रैल से गणना कर रहे लोगों को यह बतलाया गया कि सिक्ख धर्म के लोहग अगर चाहें तो उनकी जाति अन्य के रूप में दर्ज करें.

बंगाली कायस्थों के लिए नहीं निकला विकल्प

बंगाली कायस्थों को कायस्थ से अलग किये जाने पर भी सवाल उठ रहा था. सरकार का तर्क था कि बंगाली कायस्थ शुरू से ही अलग जाति रही है और उसे नहीं हटाया जाएगा. हालाँकि, बाद में गणना कर्मियों को यह निर्देश दिया गया कि जो बंगाली कायस्थ अपनी जाति कायस्थों में लिखवाना चाहें उनको स्वीकार किया जाए और गणना में बतौर कायस्थ दर्ज करें.

दरअसल, गणना को लेकर ऐसे कई और सवाल थे जिसपर राज्य सरकार निरुत्तर थी. क्या बिहार में रह रहे मुग़ल और जाट की गणना नहीं होगी? इसपर राज्य सरकार ने कहा कि इन्हें अन्य की श्रेणी में रखा गया है. जाहिर है राज्य सरकार का बेहद जल्बाजी में गणना करवाने का यह प्रयास शुरूआती दौर से ही आधे- अधूरे तैयारियों के साथ शुरू किया गया था.

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