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जदयू के इन सांसदों का कटेगा टिकट? उलझन में नीतीश, कई लोकसभा सीटों पर कद्दावर नेताओं ने बढ़ाई टेंशन

जदयू के इन सांसदों का कटेगा टिकट? उलझन में नीतीश, कई लोकसभा सीटों पर कद्दावर नेताओं ने बढ़ाई टेंशन

पटना ब्यूरो- लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजनें में कुछ दिन या यूं कहें कि कुछ घंटे शेष बचे हैं.  इसको लेकर राजनीतिक सरगर्मी और चहल कदमी तेज हो गई है.  एक तरफ एनडीए गठबंधन है तो दूसरी तरफ इंडी गठबंधन. दोनों हीं  गठबंधन अपने प्रत्याशियों के चुनाव में बेहद सावधानी बरत रहे हैं. राजनीतिक जानकारों के अनुसार साफ सुथरी छवि के साथ युवा उम्मीदवारों पर दोनों गठबंधन दाव लगाने की बात कर रहे हैं. इसको लेकर कवायद भी तेज हो गई है. इस सब के बीच बिहार के 40 लोकसभा सीटों पर हर राजनीतिक दलों का फोकस है. एसे में कुछ लोकसभा के ऐसे सीट हैं जिनका नेतृत्व 70 पार के नेता कर रहे हैं. उम्र बढ़ने के साथ हीं उनसे लोगों की कुछ शिकायतें भी हैं. सीएम नीतीश कुमार इन नेताीओं पर हीं विश्वास करेगे या नए युवा चेहरे को मौका देकर जदयू की दूसरी पीढ़ी के नेता तैयार करेंगे.

कद्दावर नेताओं ने बढ़ाई  नीतीश की टेंशन

लोकसभा चुनाव की तिथि की घोषणा कभी भी हो सकती है. वहीं बिहार एनडीए में सीट शेयरिंग का फार्मूला फाइनल हो चुका है. कथित तौर पर  बस आधिकारिक घोषणा होना बाकी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गुरुवार को कहा कि सब जल्दी हो जाएगा, सबके बारे में खबर मिलेगी. सीएम नीतीश अपनी पार्टी जेडीयू की अपनी सीटों को लेकर कई दिनों से मंथन कर रहे हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू बिहार की 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिनमें 16 पर उसे जीत मिली थी. सूत्रों के अनुसार  इस बार जदयू अपनी दो-तीन सीटिंग छोड़कर उसके बदले कोई दूसरी सीट भी ले सकती है. ऐसे में चार ऐसी लोकसभा सीट है जहां के सांसदों की उम्र सत्तर के पार है. साल 2019 में लोकसभा में सांसद चुने जाने के बाद जहानाबाद के सांसद चन्देश्वर प्रसाद, सुपौल के सांसद दिलेश्वर कामत, मधेपुरा के सांसद दिनेश चंद्र यादव और झंझारपुर के सासद  रामप्रीत मंडल पिछले 5 साल से क्षेत्र में शायद ही कभी घूमने निकले हों.  हालांकि इसके पीछे उनके स्वास्थ्य कारण के साथ उम्र का तकाजा भी भी था. इनक्षेत्र के निवासियों के अनुसार ये चारों नेता अपने क्षेत्र में उतने सक्रिय नहीं दिख रहे, फिर भी जदयू में अगर वे दावेदारी की बात करें तो सीएम नीतीश इस पर क्या फैसला लेंगे,ये देखना होगा.

जहानाबाद  लोकसभा सीट को रोचक सच 

सबसे पहले बात जहानाबाद  लोकसभा सीट की तो यहां का जातीय समीकरण ऐसा है कि इस लोकसभा सीट पर कोई भी राजनीतिक दल पूरी तरह से जीत का दावा नहीं करता है. जहानाबाद में पहली बार इस सीट पर 1962 में चुनाव हुआ तो कांग्रेस प्रत्याशी सत्यभामा देवी ने पार्टी का परचम लहराया था. दूसरी बार 1967 में हुए सीपीआई के चंद्रशेखर चंद्रशेखर सिंह जीते,1996 तक वाम दल का ये गढ़ रहा.1998 में जदयू के प्रत्याशी चंदेश्वर प्रसाद जीते. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के सहयोगी दल रालोसपा की टिकट पर अरुण कुमार ने जीते. साल 2019 के लोकसभा चुनाव जदयू के चन्देश्वर प्रसाद जीते. जहानाबाद लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण के बात की जाए तो भूमिहार और यादव मतदाताओं की तूती बोलती है. यही वजह है कि यहां से यादव या फिर भूमिहार समुदाय के प्रत्याशी सांसद चुने जाते रहे है. ये भी तथ्य है इस सीट पर 1996 के बाद से 2019 तक एक ही व्यक्ति दूसरी बार सांसद नहीं बन पाया है. वहीं चन्देश्वर प्रसाद की उम्र ज्याद होने से उनकी सक्रियता कम हो गई है. 

सुपौल में 2014 में नहीं चली थी मोदी लहर

 सुपौल लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधानसभाएं आती हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर जदयू निर्मली, सुपौल और त्रिवेणीगंज 2 सीट पर भाजपा छातापुर और पिपरा और एक सीट राजद सिंहेश्वर के खाते में गई थी.सुपौल में 2014 में नहीं चली थी मोदी लहर यहां से तब रंजीता रंजन जीतीं लेकिन  साल 2019 में यहां जदयू प्रत्याशी दिलेश्वर कामत ने कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत रंजन को पटखनी दी. अब कामत की उम्र उनका साथ नहीं दे रहा है.

मधेपुरा पर राजद की नजर

अब बात यादव बाहुल्य वाले लोकसभा सीट मधेपुरा का .. लोकसभा चुनाव 2024 में यह सीट काफी महत्वपूर्ण हो गई है.इस सीट पर लालू कैसे भी कब्जा करना चाहते हैं. माना जाता है कि लालू कीपार्टी से इस सीट पर दिवंगत शरद यादव के पुत्र जदयू के सामने ताल ठोक सकते है.  मधेपुरा के सांसद दिनेश चंद्र यादव 75 साल के होने वाले हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार साल 2019 में  सांसद चुने जाने के बाद दिनेश यादव पिछले पांच साल में क्षेत्र में शायद ही कभी घूमने निकले हों. एक तो यादव को स्वास्थ्य उनका साथ नहीं दे रहा वहीं उम्र भी हो चली है. क्षेत्र के लोगों का समर्थन कम और उनसे नीजि विरोध ज्यादा दिख रहा है. 

झंझारपुर सीट बना नाक का बाल

झंझारपुर लोकसभा सीट बेहद महत्वपूर्ण है. 1972 में यह लोकसभा सीट बना. अस्तित्व में आने के बाद इस सीट का सबसे पहले प्रतिनिधित्व  डॉ जगन्नाथ मिश्र ने किया. साल  2014 में यह सीट भाजपा के हिस्से में आई. यहां से विरेंद्र चौधरी जीतकर संसद पहुंचे. 2019 में झंझारपुर सीट जदयू के हिस्से में आई और जदयू ने रामप्रीत मंडल को अपना उम्मीदवार बनाया और उन्होंने यहां जीत हासिल की.झंझारपुर लोकसभा सीट में खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फूलपरास और लौकहा  6 विधानसभा सीटें आती हैं. यह यादव,ब्राह्मण और अति पिछड़ा बहुल क्षेत्र है. यहां यादवों और ब्राह्मणों के वोटरों की तादाद 20-20 प्रतिशत  हैं. तो अति पिछड़ा सबसे ज्यादा 35 प्रतिशत है  वहीं मुस्लिम मतदाता 15 फिसदी है.

नीतीश के लिए व्यक्ति बड़ा या संगठन

बहरहाल एनडीए में सीट शेयरिंग का मुद्दा हल होने की खबर के बाद सवाल उठ रहा है कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सीएम नीतीश बुजुर्गों को टिकट देकर व्यक्ति को मज़बूत करेंगे या फिर युवा को देकर पार्टी को मज़बूत करेंगे. अब तक का सीएम का निर्णय बताता है कि संगठन व्यक्ति से कभी भी बड़ा होता है.


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