भाजपा पर भरोसा करेंगे यादव ! जातीय खेल में राजद रहा है भारी, बीजेपी के यदुवंशी सम्मेलन में लालू यादव को पटखनी देने की रणनीति

पटना. बिहार में जातीय तौर पर सबसे बड़ी संख्या यादव बिरादरी की है. जातीय गणना सर्वे के अनुसार बिहार में यादव समुदाय की आबादी 14.26 प्रतिशत है. ऐसे में बिहार विधानसभा में यादव विधायकों की संख्या ही इसी अनुपात में सबसे ज्यादा रहती है. वोट बैंक के लिहाज से सबसे बड़ी आबादी होने के कारण ही यादव जाति को अब अपनी ओर रिझाने में भाजपा लगी हुई है. 14 नवंबर को पटना के बापू सभागार भाजपा के यदुवंशी समाज का सम्मेलन उसी वोट बैंक पर पकड़ बनाने की बड़ी तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है. विशेषकर अगले लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा खुद को सबसे बड़े दल के रूप में पेश करना चाहती है. इसके लिए यादवों को जबतक अपने पाले में नहीं किया गया तब तक भाजपा का यह सपना अधूरा ही रहेगा.
बिहार की सियासत में वर्ष 1990 के बाद से यादव बिरादरी के सर्वाधिक मान्य नेता के तौर पर लालू यादव रहे हैं. यादव और मुस्लिम वोट बैंक के गठजोड़ के सहारे ही लालू यादव की पार्टी राजद बिहार में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करती रही है. भाजपा भी जानती है कि यादवों को अगर तोड़ने में सफल नहीं हुई तो राजद को हराना मुश्किल होगा. भाजपा पिछले कुछ चुनावों से लगातार इस दिशा में प्रयास भी कर रही है. हालांकि 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावो में यादव मतदाताओं ने भाजपा को झटका दिया था. ऐसे में अब एक बार फिर से भाजपा उसी दिशा में बढ़ी है और गोवर्धन पूजा पर पटना में यदुवंश बिरादरी का बड़ा कार्यक्रम कर रही है.
बिहार में पिछले दो विधानसभा चुनावों पर गौर करें तो वर्ष 2015 में यादव जाति से 61 विधायक जीतकर आए थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी राजद ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें उसने 48 सीटों पर यादवों को टिकट दिए थे. इनमें से 42 जीतने में सफल रहे.2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यादवों को साधने के लिए 22 यादव को टिकट दिया लेकिन सिर्फ 6 ही जीत सके. वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद यादव विधायकों की संख्या 52 रही. इस बार राजद से 35 यादव विधायक जीते, जबकि भाजपा से सिर्फ 7 यादव ही जीत सके.
आंकड़े बताते हैं की यादव वोटरों का रुझान लालू यादव की ओर ही रहा है. 2000 में बिहार में यादव विधायकों की संख्या 64 थी जो 2005 में 54 हो गई थी और फिर 2010 में संख्या घटकर 39 पर आ गई थी, लेकिन 2015 में बढ़कर 61 पहुंच गई जबकि 2020 में यह संख्या 52 हो गई. इसमें दलीय तौर पर अगर यादव विधायकों को देखें तो हर बार राजद से ही सबसे ज्यादा यादव विधायक जीते. यादव बिरादरी का लालू यादव के इस गठजोड़ से राजद को मिलती मजबूती को भाजपा भलीभांति जानती है. इसलिए भाजपा अब राजद को सबसे बड़ा झटका देने की जुगत में लगी है. ऐसे में अब यह महत्वपूर्ण होगा कि भाजपा के यदुवंशी सम्मेलन के बाद पार्टी कितने बड़े स्तर को खुद को यादव बिरादरी के बीच भरोसेमंद बना पाती है. क्योंकि वर्ष 1990 के बाद से लाख कोशिशों के बाद हीयादव का सबसे बड़ा वोट प्रतिशत लालू यादव के ही साथ रहा है.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के नेतृत्व में हो रहे इस सम्मेलन में करीब 21 हजार यादवों को भाजप से जोड़ने की बातें कही जा रही हैं. भाजपा का यह यादव शक्ति परीक्षण अब अगले चुनावों में कितना लाभकारी होगा यह बेहद महत्वपूर्ण होगा. बिहार के सांसदों में जातियों की हिस्सेदारी देखें तो अति पिछड़ा वर्ग-7, एससी वर्ग से 6, यादव-5, कुशवाहा 3, वैश्य-3, कुर्मी- कायस्थ 1-1, राजपूत 7, भूमिहार 3, ब्राह्णण-2 और मुस्लिम-2 सांसद बने हैं.