अयोध्या: भारतीय जनता पार्टी ने मिल्कीपुर चुनाव जीत लिया है भाजपा अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर मिल्कीपुर का किला फतह किया है हिंदुत्व के आगे अखिलेश यादव के PDA की रणनीति काम नहीं आई. और भारतीय जनता पार्टी ने बम्पर मतों से जीत दर्ज की। हालांकि इस दौरान भारतीय जनता पार्टी पर कई सारे आप भी लगे लेकिन इन आरोपों से कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। मिल्कीपुर में अवधेश यादव का किला दे चुका है.
मिल्कीपुर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) की रणनीति ने सियासी रण में सफलता दिलाई। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की हिंदू एकता की नीति ने भी बड़ी भूमिका निभाई। संघ परिवार के विभिन्न संगठनों—अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद समेत सभी वैचारिक संगठनों ने भाजपा को जीत दिलाने के लिए कड़ी मेहनत की। भाजपा और संघ ने मिलकर पीडीए के फार्मूले के भ्रम को तोड़ने के लिए जमीनी स्तर पर काम किया।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा ने कुंदरकी और कटेहरी जैसी जातीय समीकरण वाली सीटों पर मिली सफलता के बाद मिल्कीपुर उपचुनाव के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया। इन सीटों पर तीन दशक बाद जीत मिलने के बाद, भाजपा और संघ ने इस जीत के कारणों की पड़ताल शुरू की और यह पाया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘‘बंटोगे तो कटोगे’’ का नारा हिंदू समाज में बंटवारे को समाप्त करने में असरदार था। इसका प्रभाव कटेहरी और कुंदरकी में देखा गया, जहां भाजपा ने लंबे समय बाद जीत हासिल की।
संघ ने इस नारे के आधार पर मिल्कीपुर की जीत के लिए रणनीति बनाई। इसके तहत, संघ कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर हिंदू एकता का संदेश दिया, जिसका चुनावी परिणामों पर बड़ा असर पड़ा। भाजपा और संघ ने मिलकर इस अभियान को आगे बढ़ाया और हिंदू समाज में एकजुटता को बढ़ावा दिया, जिससे भाजपा को मिल्कीपुर में बढ़त हासिल हुई।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने दीपोत्सव के दौरान अयोध्या में मिल्कीपुर की जीत की रणनीति तैयार कर ली थी। लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद, उन्होंने राममंदिर निर्माण में रुकावट डालने, कारसेवकों पर गोलियां चलवाने और सपा नेताओं के रामलला के दर्शन से दूरी बनाने का मुद्दा उठाकर हिंदू समाज को एकजुट किया। यह कदम मिल्कीपुर में भाजपा की जीत के लिए कारगर साबित हुआ।
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एपी तिवारी का कहना है कि सपा ने फैजाबाद लोकसभा सीट पर जीत के गलत मायने निकाले। उसने भाजपा के खिलाफ फैली नाराजगी को हिंदुत्व की राजनीति के पटाक्षेप के रूप में लिया, लेकिन यही सपा की चूक साबित हुई।
सपा का हिंदुत्व विरोध भी भाजपा के पक्ष में एकजुटता बढ़ाने में सहायक रहा, खासकर पिछड़ों और दलितों के बीच। सपा का मानना था कि हिंदुत्व विरोध उन्हें मुस्लिमों के बीच लोकप्रिय बनाएगा, लेकिन वे यह भूल गए कि भाजपा ने 90 के दशक से ज्यादा मुखर तरीके से हिंदुत्व के एजेंडे को अपनाया है और उनके पास इस मुद्दे पर मजबूती है। यही वजह है कि सपा ने अवधेश के माध्यम से हिंदुत्व की राजनीति को ध्वस्त करने की कोशिश की, जो महंगी साबित हुई।
मिल्कीपुर उपचुनाव में भाजपा की जीत में संघ की रणनीति और हिंदू एकता पर जोर देने की नीति का बड़ा योगदान रहा। भाजपा ने अपनी रणनीतियों में बदलाव किया और संघ के साथ मिलकर हिंदू समाज में एकजुटता को बढ़ावा दिया, जिससे मिल्कीपुर में विजय सुनिश्चित हुई। सपा की रणनीतिक चूक ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में मदद की।