लखनऊ: कल 18 मार्च को कर्नाटक के हम्पी में आयोजित होने वाले अन्तर्राष्ट्रीय रामायण कॉनक्लेव का यह कार्यक्रम श्रीलंका, नेपाल, भारत के छह राज्यों और राम वन गमन पथ समेत कुल 10 स्थानों पर होने वाली श्रृंखला का हिस्सा है। यह आयोजन अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान, अयोध्या, संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश, श्री हनुमान मित्र मंडल, होसपेट और कन्नड़ विश्वविद्यालय हम्पी, कर्नाटक द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।
कार्यक्रम का शुभारंभ कल सायं 5 बजे संत विद्वत समागम के साथ होगा। इस समागम में दिल्ली के रामऔतार शर्मा, कर्नाटक के बसवराज पाटिल, संभाजी नगर के पंडुलिक सीताराम वाघ और गोवा की रूक्मा सडेकर धार्मिक विषयों पर मंथन करेंगे। इसके बाद मुम्बई से आए नवीन अग्रवाल एवं प्रेरणा अग्रवाल का दल लीला शबरी के राम नाट्य का मंचन करेगा। स्थानीय नृत्य और गायन की प्रस्तुतियां भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देंगी। बेंगलुरू के दल द्वारा डोलू कुनिथा नृत्य और यक्षगान की भी प्रस्तुति होगी। इस भव्य संध्या का समापन पद्म श्री अनूप जलोटा के भजनों से सुरमयी होगा।
रामायण कॉनक्लेव के इस संध्या कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कन्नड़ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. वी. वी. परमशिवमूर्ति उपस्थित रहेंगे। इस अन्तर्राष्ट्रीय कॉनक्लेव के आयोजन की श्रृंखला में 21 और 22 मार्च को रामेश्वरम, 26 मार्च को श्रीलंका, और 29 मार्च को जम्मू में समापन समारोह आयोजित किया जाएगा। हम्पी, जिसे रामायण काल में किष्किंधा कहा जाता था, एक ऐतिहासिक स्थल है। यही वह स्थान था जहां हनुमान जी की भेंट सुग्रीव से हुई थी, और यह सुग्रीव और बाली का राज्य था। हम्पी में स्थित अंजनाद्रि पर्वत को हनुमान जी के जन्म स्थान के रूप में माना जाता है।
उत्तर प्रदेश के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री जयवीर सिंह ने इस आयोजन के बारे में अपने संदेश में कहा, "भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ा। पर्यटन विभाग का उद्देश्य है कि देश और विदेश में श्रीराम के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण स्थलों को बढ़ावा दिया जाए। इन स्थलों पर विद्वत समागम, भजन संध्या, लोक गायन और लोक नृत्य के आयोजन से हम अपनी समृद्ध संस्कृति और धार्मिक विरासत को प्रस्तुत कर रहे हैं।"