Maha kumbh katha 2025 Part 4: अंग्रेजों ने कुंभ में तीर्थयात्रियों पर लगाए कई तरह के टैक्स, मदन मोहन मालवीय ने किया जल सत्याग्रह, कुंभ में मुंडन पर भी वसूला पैसा...

Maha kumbh katha 2025 Part 4: 144 वर्ष बाद महाकुंभ का का पूण्य काल आया है. प्रयागराज महाकुंभ की इस महत्ता पर news4nation अपने पाठकों के लिए विशेष प्रस्तुति लाया है आज हम आपको बताएंगे कि कैसे अंग्रेजों के द्वारा कुंभ पर टैक्स लगाए जाते थे...

महाकुंभ
British imposed taxes on Kumbh- फोटो : news4nation

Maha kumbh katha 2025 Part 4: महाकुंभ का इतिहास बहुत पुराना है. यही कारण है कि इससे जुड़े कई रोचक कहानियां भी है. News4nation अपने पाठकों के लिए प्रतिदिन इतिहास के पन्नों से कुछ नई कहानी लेकर आ रहा है. आज इसी कड़ी में आपको बतायेंगे कि कैसे अंग्रेजों ने कुंभ को कमाई का एक नया जरिया बनाया. इसके साथ ही मदन मोहन  मालवीय और पंडित नेहरू से जुड़ी कहानी बतायेंगे.

कुंभ अंग्रेजों के लिए बना कमाई का साधन   

इलाहाबाद पर अंग्रेजों का 1801 में अधिकार हो गया था. कुंभ और माघ मेले पर आने वाली भीड़ को अंग्रेजों ने अपनी कमाई का एक रास्ता दे दिया. इसके बाद कुंभ में आने वाले हर तीर्थयात्री से अंग्रेज एक रुपए टैक्स वसूलने लगे. इसके लिए मेला क्षेत्र में अफसरों की तैनाती की गई. इस प्रकार से कुंभ से ब्रिटिश सरकार कमाई करने लगी. वर्ष 1906 में जिला मजिस्ट्रेट एचवी लॉवेट ने कुंभ मेले पर एक रिपोर्ट बनाई थी. उस रिपोर्ट के अनुसार 1894 के कुंभ में मुंडन करने वाले नाइयों ने सरकार को 11 हजार 825 रुपए और 8 आने, दाढ़ी बनाने वालों ने 1332 रुपए और 8 आने बतौर टैक्स चुकाए। जबकि फूल बेचने वाले मालियों से 1600 रुपए का टैक्स वसूला था. इतिहासकार डॉ हेरंब चतुर्वेदी ने अपनी किताब 'कुंभ: ऐतिहासिक वांग्मय' में लिखते हैं- 'अंग्रेजों से पहले मुगल भी कुंभ से कमाई किया करते थे. अकबर ने दो अधिकारी कुंभ की व्यवस्था देखने के लिए तैनात किए थे. पहला मीर ए बहर, जो कि लैंड और वॉटर वेस्ट मैनेजमेंट का काम देखता था और दूसरा मुस्द्दी जिसके हवाले घाटों की जिम्मेदारी थी.'

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कुंभ की कमाई से पब्लिक लाइब्रेरी और हेल्थ डिस्पेंसरी का निकलता था खर्च  

अंग्रेजों ने इसी तर्ज पर भारत में कुंभ पर टैक्स लगा दिया. अंग्रेजी सरकार ने वर्ष 1906 के कुंभ में दूध पर 728 रुपए, गाय दान करने पर 152 रुपए और बछड़ा दान करने पर 1098 रुपए टैक्स लगाया. जबकि नाव वालों ने 3435, फेरीवालों ने 1025 रुपए और गाड़ी चलाने वालों ने 1995 रुपए टैक्स चुकाए थे. हालांकि भारतीय यह टैक्स पहले से दिया करते थे. लेकिन,अंग्रेजों का यह टैक्स ज्यादा होने के कारण भारतीयों को परेशान करने लगा था. इसको लेकर विरोध भी अब शुरु होने लगा था. इधर, यह वह समय था जब अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश में स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था. भारत में इस आंदोलन से जुड़े लोगों को यह एक मुद्दा मिल गया और फिर वे इसके खिलाफ सड़क पर उतर गए थे. इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी अपनी किताब में लिखते हैं कि कुंभ मेले के टैक्स से अंग्रेज इतनी कमाई करते थे कि उससे इलाहाबाद पब्लिक लाइब्रेरी और हेल्थ डिस्पेंसरी का खर्च निकल जाता था.

अर्धकुंभ में स्नान पर जब अंग्रेजों ने लगाया रोक

वर्ष 1924 में प्रयागराज में अर्धकुंभ लगा था.सरकार ने फिसलन का हवाला देकर  संगम में स्नान पर रोक लगा दी थी. अंग्रेजी सरकार के इस फैसले का मदन मोहन  मालवीय ने विरोध किया. दोनों (मदन मोहन मालवीय और ब्रिटिश सरकार) इस मुद्दे पर आमने सामने हो गए. मदन मोहन मालवीय का कहना था कि धार्मिक रूप से स्नान तो संगम पर ही होना चाहिए, लेकिन अंग्रेजी सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी. मदन मोहन मालवीय  जिला मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ अपने 200 लोगों के साथ  जल सत्याग्रह पर बैठ गए. पंडित जवाहर लाल नेहरू अपनी आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ में लिखते हैं कि इस समय मैं इलाहाबाद नगर निगम का अध्यक्ष था. ‘मैंने खबरों में पढ़ा कि मदन मोहन मालवीय और ब्रिटिश सरकार के बीच ठन गई है. खबर पढ़ने के बाद मैं संगम के लिए निकल गया. वे लिखते हैं कि मेरा स्नान का कोई इरादा नहीं था और ऐसे अवसरों पर गंगा नहाकर पुण्य कमाने की मुझे कोई चाह भी नहीं थी. मेला पहुंचने पर मैंने देखा कि मालवीय जी जिला मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ जल सत्याग्रह कर रहे हैं. मैं भी जोश में आकर उनके सत्याग्रह दल में शामिल हो गया.

जब पंडित नेहरू कूद पड़े थे गंगा में

पंडित जवाहर लाल नेहरू अपनी किताब में लिखते हैं कि जहां जल सत्याग्रह चल रहा था उस मैदान के उस पार लकड़ियों का बड़ा सा घेरा बनाया गया था, ताकि लोग संगम नहीं पहुंच सकें. हम आगे बढ़े, तो पुलिस ने मुझे रोका, हमारे हाथ से सीढ़ी छीन ली. पुलिस के इस कार्रवाई के खिलाफ में हम रेत पर ही बैठकर धरना देने लगे. लेकिन धूप बढ़ने के साथ मेरी परेशानी भी बढ़ रही थी. कुछ देर तक मैं बैठा. लेकिन मेरा धैर्य अब टूटने लगा था.लेकिन दोनों तरफ पैदल और घुड़सवार पुलिस खड़ी थी.जिला मजिस्ट्रेट की ओर से इसी बीच घुड़सवार पुलिस को कुछ ऑर्डर दिया गया. मुझे लगा कि ये लोग कहीं हमें कुचल न दें, पीटना न शुरू कर दें. इस डर से  मैंने सोचा क्यों नहीं  घेरे के ऊपर से ही फांद जाएं. 

इस प्रकार पीछे हटे अंग्रेज

फिर क्या था बिना कुछ सोचे समझे हमने ऐसा ही किया. मेरे साथ बीसों आदमी चढ़ गए. कुछ लोगों ने उसकी बल्लियां भी निकाल लीं. इससे रास्ता जैसा बन गया.धूप के कारण मुझे बहुत गर्मी लग रही थी, सो मैंने गंगा में गोता लगा दिया. गर्मी से थोड़ी राहत मिली. इसके बाद स्नान करके निकला. बाहर मैं यह देखकर हैरान था कि  मालवीय जी अभी भी सत्याग्रह पर बैठे हुए थे. मैं भी चुपचाप  उनके पास जाकर बैठ गया. मालवीय जी बहुत भिन्नाये हुए थे,  ऐसा लग रहा था कि वे खुद को रोकने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन कुछ देर में ही अचानक बिना किसी से कुछ कहे मालवीय जी उठे और पुलिस के बीच से निकलकर गंगा में कूद पड़े. इसके बाद तो पूरी भीड़ गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के लिए टूट पड़ी. हमें लग रहा था कि सरकार कुछ कार्रवाई करेगी, लेकिन कुछ नहीं हुआ.'

चांदी के कलश में गंगाजल जाया करता था  लंदन 

प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ 2025 में बड़ी संख्या में विदेशी पहुंचे हैं. लेकिन इनकी कुंभ से बहुत पुरानी है. क्षेत्रीय अभिलेखागार के दस्तावेजों के मुताबिक हिन्दुस्तान से चांदी के कलश में गंगाजल लंदन जाया करता था. 1902 में महाराजा सवाई माधव सिंह द्वितीय अपने ओलंपिया जहाज से लंदन जा रहे थे. उन्होंने चांदी के कलशों में 8 हजार लीटर गंगाजल भरवाकर लंदन गए थे.

महाकुंभ से news4nation की टीम