Rajiv Pratap Rudy : बगावत या वफादारी ! विधानसभा चुनाव के पहले राजपूतों को एकजुट करने निकले राजीव प्रताप रूडी, बीजेपी का बढ़ेगा कद की निकलेगा दम....
Rajiv Pratap Rudy : भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी विधानसभा चुनाव से पहले राजपूतों को एकजुट करने निकल गए हैं. इससे बीजेपी को फायदा है या नुकसान....जानिए
N4N DESK : हाल ही में हुए कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर चल रहे अंदरूनी मतभेदों को उजागर कर दिया है। इन चुनावों में भाजपा के वरिष्ठ नेता राजीव प्रताप रूडी ने पार्टी के ही एक अन्य नेता संजीव बालियान को हराकर जीत हासिल की। चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया, क्योंकि राजीव प्रताप रूडी ने अपने प्रतिद्वंदी को 100 से अधिक वोटों के अंतर से हराया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूडी को सिर्फ भाजपा ही नहीं, बल्कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दलों के सांसदों का भी व्यापक समर्थन मिला। कई विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष ने यह कदम भाजपा के अंदरूनी कलह का फायदा उठाने के लिए उठाया। जबकि यह चुनाव भाजपा बनाम भाजपा की एक अप्रत्याशित लड़ाई बन गया था, जिसने कई सवाल खड़े किए।
क्या है पूरा मामला?
राजीव प्रताप रूडी पिछले 25 सालों से कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के सचिव (प्रशासन) के पद पर काबिज हैं। इस बार उनके मुकाबले में भाजपा के ही नेता संजीव बालियान मैदान में उतरे, जिससे यह चुनाव एक दिलचस्प और हाई-प्रोफाइल मुकाबला बन गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस चुनाव में भाजपा के कई बड़े नेताओं के बीच मतभेद सामने आए।
जातिगत समीकरण और बिहार की राजनीति
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह लड़ाई केवल एक क्लब के चुनाव तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसके पीछे जातिगत समीकरण और बिहार की राजनीति भी एक बड़ी वजह थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, रूडी को राजपूत सांसदों का समर्थन मिला, जबकि बालियान को जाट लॉबी और ग्रामीण सांसदों का। बिहार में राजपूत वोटों के महत्व को देखते हुए, कुछ लोग इसे भाजपा की बिहार रणनीति का हिस्सा भी मान रहे हैं।
बिहार पर फोकस
भाजपा बनाम भाजपा की इस लड़ाई में रूडी ने एक कदम और आगे बढ़ा दिया है। विधानसभा चुनाव से पहले रूडी बिहार में सांगा यात्रा किया। जिसका ऐलान वीर कुंवर सिंह शौर्य दिवस के मौके पर 23 अप्रैल को किया गया था। खुदीराम बोस की भूमि मुजफ्फरपुर से इसकी शुरुआत की गयी और वैशाली लोकसभा क्षेत्र में इसका समापन हो गया।
पार्टी को मदद या धौंस
दरअसल राजीव प्रताप रूड़ी ने 1996, 1999, 2014 और 2024 में सारण (पूर्व में छपरा) से जीत हासिल की। पूर्व केंद्रीय मंत्री (वाणिज्य, नागरिक उड्डयन) के रूप में उनकी पहचान मजबूत है। लेकिन 2024 लोकसभा चुनावों में राजपूत असंतोष के कारण बीजेपी को आरा, औरंगाबाद और करकट जैसी सीटों पर हार मिली। बीजेपी किसी भी कीमत पर इन क्षेत्रों में दुबारा हारना नहीं चाहती है। बीजेपी की बिहार रणनीति हमेशा से जातीय संतुलन पर आधारित रही है। 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले, पार्टी ओबीसी, ईबीसी और ऊपरी जातियों को मजबूत करने पर फोकस कर रही है। सवाल उठता है कि क्या इसी आधार पर बिहार में बीजेपी रूडी को तैयार कर रही है। क्योंकि रूड़ी ने हाल ही में समस्तीपुर में महाराणा प्रताप की तस्वीर वाले पोस्टर लगवाए और जय सांगा का नारा दिया, जो राजपूत गौरव को जगाने का प्रयास जैसा लगता है। हालाँकि हाल के घटनाक्रमों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर एक नई बहस छेड़ दी है, जिसका केंद्र वरिष्ठ नेता राजीव प्रताप रूडी हैं। लंबे समय से पार्टी में सक्षम होते हुए भी हाशिए पर बताए जा रहे रूडी की हालिया गतिविधियां यह संकेत दे रही हैं कि वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को साधने के लिए अब "बगावत" वाले मोड में आ गए हैं। सवाल यह है कि क्या रूडी बिहार में राजपूत वोटों के ठेकेदार बनने की मंशा से भाजपा से मोलभाव कर रहे हैं, और क्या यह आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकता है?
बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के संकेत
रूडी की महत्वाकांक्षाएं अब स्पष्ट रूप से नजर आ रही हैं। एक महिला पत्रकार को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने बिहार की 70 विधानसभा सीटों पर राजपूत वोटों को निर्णायक बताया, जो उनकी अपनी राजनीतिक ताकत का एक तरह से प्रदर्शन है। कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव में विपक्ष का समर्थन लेना और उसी बहाने अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं, जैसे निशिकांत दुबे को निशाना बनाना, उनके इरादों पर संदेह पैदा करता है। यह रणनीति न केवल पार्टी के भीतर उनकी स्थिति को मजबूत करने के लिए है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि वे अपनी स्वतंत्र पहचान बनाना चाहते हैं।
भाजपा के लिए चुनौती
आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के संदर्भ में रूडी की यह बगावत भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। अगर रूडी सचमुच राजपूत वोटों को प्रभावित करने में कामयाब होते हैं, तो यह पार्टी के चुनावी समीकरणों को बिगाड़ सकता है। भाजपा को अब इस स्थिति से बहुत सावधानी से निपटना होगा। एक तरफ, उसे रूडी की नाराजगी को दूर करना होगा, वहीं दूसरी तरफ, पार्टी के भीतर अनुशासन भी बनाए रखना होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा नेतृत्व रूडी की महत्वाकांक्षाओं को समायोजित कर पाता है या फिर यह राजनीतिक खींचतान बिहार में पार्टी के लिए एक बड़ी मुसीबत बन जाती है।