High Court News: हाईकोर्ट का फैसला,महिलाओं के स्तन छूने की कोशिश दुष्कर्म नहीं, जानें पूरा मामला

High Court News:कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक विवादास्पद मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि नशे की हालत में नाबालिग लड़की के स्तन छूने की कोशिश को पॉक्सो एक्ट के तहत दुष्कर्म की कोशिश नहीं माना जा सकता।

कलकत्ता हाईकोर्ट
महिलाओं के स्तन छूने की कोशिश दुष्कर्म नहीं- फोटो : social Media

High Court News:कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक विवादास्पद मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि नशे की हालत में नाबालिग लड़की के स्तन छूने की कोशिश को पॉक्सो एक्ट के तहत दुष्कर्म  की कोशिश नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने इसे ‘गंभीर यौन उत्पीड़न’ की श्रेणी में रखा ।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान फैसला दिया कि नशे की हालत में नाबालिग लड़की के स्तन छूने की कोशिश को प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस एक्ट , 2012 के तहत दुष्कर्म (रेप) की कोशिश नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने इस कृत्य को ‘गंभीर यौन उत्पीड़न’ की श्रेणी में रखा और आरोपी को जमानत दे दी। यह फैसला 26 अप्रैल 2025 को चर्चा में आया, जिसके बाद इसने सोशल मीडिया और जनता के बीच व्यापक बहस छेड़ दी।

यह मामला एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के प्रयास से संबंधित था, जिसमें आरोपी ने नशे की हालत में पीड़िता के स्तन छूने की कोशिश की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस अरिजीत बनर्जी की बेंच में हुई। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह का कृत्य, हालांकि गंभीर और आपराधिक है, लेकिन यह POCSO एक्ट की धारा 7 (यौन उत्पीड़न) के तहत आता है, न कि धारा 5/6 (गंभीर यौन हमला या दुष्कर्म) के तहत। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दुष्कर्म की कोशिश के लिए पेनेट्रेशन या उसके स्पष्ट इरादे का सबूत होना आवश्यक है, जो इस मामले में नहीं पाया गया।

कोर्ट ने माना कि आरोपी का कृत्य धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है, लेकिन धारा 3/4 या 5/6 के तहत दुष्कर्म की कोशिश के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इस आधार पर आरोपी को जमानत दी गई।

कोर्ट ने कहा कि नाबालिग के स्तन छूने की कोशिश गंभीर यौन उत्पीड़न का प्रयास है, लेकिन यह दुष्कर्म की परिभाषा में नहीं आता, क्योंकि इसमें पेनेट्रेशन या उसके इरादे का स्पष्ट सबूत नहीं था।आरोपी के नशे में होने को कोर्ट ने एक कारक माना, लेकिन इसे अपराध की गंभीरता को कम करने का आधार नहीं बनाया।कोर्ट ने POCSO एक्ट की विभिन्न धाराओं के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि हर यौन अपराध को दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला कानूनी दृष्टिकोण से POCSO एक्ट की तकनीकी व्याख्या पर आधारित है, लेकिन इसने सामाजिक और नैतिक बहस को जन्म दिया है। 


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