अवैध निर्माण को लेकर नगर निगम के खिलाफ नगरपालिका भवन न्यायाधीकरण में अपील स्वीकार, भविष्य में ऐसे मामलों में मील का पत्थर साबित होगा यह फैसला ! जानें

भागलपुर नगर निगम को झटका- फोटो : बालमुकुंद कुमार

Bhagalpur  - भागलपुर नगर निगम द्वारा पारित अवैध निर्माण संबंधी आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर नगरपालिका भवन न्यायाधिकरण, बिहार, पटना ने डॉ. मुकेश बिहारी की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया है। इस फैसले के तहत जहां एक ओर कुछ निर्माण को विधिसम्मत ठहराया गया है, वहीं सामने और तीनों ओर के सेटबैक में सीमा से बाहर किए गए निर्माण को अवैध माना गया है।

क्या है मामला

भागलपुर के निवासी डॉ. मुकेश बिहारी ने अपने आवासीय भवन के कुछ हिस्सों को अवैध बताते हुए नगर आयुक्त, भागलपुर द्वारा 24 जनवरी 2022 को पारित आदेश को न्यायाधिकरण में चुनौती दी थी। आदेश में भवन के कुछ हिस्सों को ध्वस्त करने और ₹2.91 लाख के जुर्माने का निर्देश दिया गया था। अपीलकर्ता पहले ही ₹1.91 लाख शमन शुल्क अदा कर चुके थे।

अपीलकर्ता और निगम के पक्ष

अपीलकर्ता का तर्क था कि भवन का नक्शा 2013 में स्वीकृत हुआ था, इसलिए उस समय के पुराने भवन उपविधि ही लागू होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सामने के सेटबैक की कमी को सड़क की अतिरिक्त चौड़ाई में समायोजित किया जा सकता है। साथ ही, उन्होंने नर्सिंग होम नहीं बल्कि क्लिनिक संचालन की बात कही। वहीं, नगर निगम की ओर से कहा गया कि सामने के सेटबैक में कोई कंपाउंडिंग की अनुमति नहीं है और सार्वजनिक सड़क की जमीन को निजी भूमि में शामिल करना कानूनन अस्वीकार्य है। नगर निगम ने अन्य तीनों ओर 20% तक के विचलन को समायोजित करने की स्वीकृति दी थी।

न्यायाधिकरण ने क्या कहा

न्यायाधिकरण ने अपने आदेश में कहा कि: सामने के सेटबैक में 1.30 मीटर की कमी अवैध है और इसे हटाया जाना अनिवार्य है। पीछे, बायें और दायें ओर 20% से अधिक के सेटबैक विचलन को भी अवैध निर्माण माना गया है।फिनिशिंग कार्य पूरा न होने पर लगाया गया ₹1 लाख का जुर्माना न्यायसंगत है। आवासीय भवन में क्लिनिक चलाने की अनुमति है, नर्सिंग होम का कोई प्रमाण नहीं मिला। भवन के शेष हिस्से, जिनके लिए शुल्क पहले ही अदा कर दिया गया है और जो उपविधियों के अंतर्गत आते हैं, उन्हें वैध माना जाएगा।

क्या रहेगा प्रभाव

इस आदेश से डॉ. मुकेश बिहारी को आंशिक राहत मिली है, लेकिन उन्हें अवैध हिस्सों को हटाना होगा। न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया कि नक्शा पास होने के बाद निर्माण में निर्धारित सीमाओं का पालन अनिवार्य है, और सार्वजनिक भूमि के अतिक्रमण को किसी भी स्थिति में वैध नहीं ठहराया जा सकता।

अंतिम निर्देश

नगर आयुक्त के आदेश में सामने के सेटबैक पर कोई बदलाव नहीं होगा। 

अन्य तीनों ओर सामंजन सीमा से अधिक हिस्सों को भी हटाने का निर्देश।

दोनों पक्षों को वाद व्यय स्वयं वहन करना होगा।

निर्णय की प्रति के साथ नगर आयुक्त के कार्यालय को अभिलेख वापस किया जाएगा।

यह मामला शहर में भवन निर्माण के मानकों, वैधता और नियमन के महत्व को उजागर करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

रिपोर्ट - बाल मुकुंद कुमार