Bihar News: हिन्दू समुदाय यहां सौ सालों से निभा रहा है मोहर्रम का मातम, वादा, वफा और विरासत
Bihar News:पिछले सौ वर्षों से भी अधिक समय से हिन्दू समुदाय के लोग मुहर्रम का मातम पूरी श्रद्धा और रीत-रिवाजों के साथ निभा रहे हैं।
Bihar News: कटिहार जिले के हसनगंज प्रखंड स्थित मोहम्मदिया हरिपुर गांव, बिहार के गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल बन गया है। यहां पिछले सौ वर्षों से भी अधिक समय से हिन्दू समुदाय के लोग मुहर्रम का मातम पूरी श्रद्धा और रीत-रिवाजों के साथ निभा रहे हैं। यह परंपरा आज केवल रस्म नहीं, बल्कि पूर्वजों के एक वादे की वफ़ा का प्रतीक बन चुकी है।
इस गांव की खासियत यह है कि लगभग पाँच किलोमीटर की परिधि में कोई अल्पसंख्यक परिवार नहीं रहता, फिर भी यहां मुहर्रम मनाने की परंपरा जीवित है। ढोल-नगाड़ों की जगह यहां झरनी के दर्दभरे गीत गूंजते हैं और इमाम हुसैन की शहादत पर मातम मनाया जाता है। यह सिलसिला आज भी उतनी ही श्रद्धा और भावना से निभाया जा रहा है, जैसे यह मुसलमानों का पारंपरिक पर्व हो।
गांव के बुज़ुर्ग बताते हैं कि यह ज़मीन कभी वक़ाली मियाँ की थी। दुर्भाग्यवश, उनके पुत्र बीमारी से चल बसे। शोकाकुल होकर वक़ाली मियाँ गांव छोड़ना चाहते थे, लेकिन जाने से पहले उन्होंने गांव के एक प्रतिष्ठित हिन्दू व्यक्ति, स्वर्गीय छेदी साह को यह ज़मीन सौंपी। साथ ही एक वादा लिया कि गांव में मोहर्रम हमेशा मनाया जाएगा। छेदी साह ने इस वचन को धर्म से बढ़कर समझा और तब से गांव के हिन्दू समाज ने मोहर्रम को अपनाया।
आज छेदी साह के वंशज और पूरा गांव उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। ताजिया बनते हैं, मातम होता है, झांकी निकलती है और पूरे सम्मान के साथ इमाम हुसैन की याद में गांव मातम मनाता है।
हरिपुर का मोहर्रम आज सामाजिक एकता, सांस्कृतिक साझेदारी और मानवीय मूल्यों की एक दुर्लभ मिसाल है, जहाँ धर्म की दीवारें नहीं, दिलों की मोहब्बत बोलती है। यही है भारत की असली ताकत वादे, वफ़ा और विरासत।
रिपोर्ट- श्याम कुमार सिंह