caste census 2025: 'बिहार ने दिखाया रास्ता, केंद्र ने उठाया कदम' जातीय जनगणना पर नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी ने जताया आभार कही ये दिल छू लेने वाली बात

caste census 2025: केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना कराने के फैसले का नीतीश कुमार ने स्वागत किया है। जानिए इस फैसले के पीछे का सामाजिक, राजनीतिक और विकासात्मक महत्व।

Bihar CM Nitish kumar
Bihar CM Nitish kumar - फोटो : SOCIAL MEDIA

caste census 2025: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार के उस फैसले का जोरदार स्वागत किया है जिसमें जातीय जनगणना कराने की घोषणा की गई है। उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर इस निर्णय के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया और कहा कि जातीय जनगणना से देश के सभी वर्गों की वास्तविक सामाजिक-आर्थिक स्थिति सामने आएगी, जिससे उन्हें सशक्त बनाने के लिए बेहतर नीतियां बनाई जा सकेंगी। 

नीतीश कुमार की यह मांग लंबे समय से थी, और उन्होंने अपने कार्यकाल में बिहार को पहला राज्य बनाया जिसने अपने स्तर पर जातीय सर्वेक्षण (2023) कराया।

जीतनराम मांझी का भी समर्थन, कहा- “अब सच्चे अर्थों में सामाजिक न्याय की दिशा में कदम”

हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी इस फैसले को “ऐतिहासिक और स्वागत योग्य” बताया। उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह फैसला उन नेताओं के लिए सबक है जो सालों तक सत्ता में रहे पर जातीय जनगणना की दिशा में कुछ नहीं किया। उनकी टिप्पणी साफ तौर पर उन पार्टियों की आलोचना है जिन्होंने वर्षों तक सत्ता में रहकर भी जातीय आंकड़ों को सामने लाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

जातीय जनगणना क्यों है महत्वपूर्ण?

जातीय जनगणना भारत में सामाजिक न्याय, नीति निर्माण और संसाधनों के समान वितरण के लिए अत्यंत जरूरी मानी जाती है। आजादी के बाद पहली बार 1931 में जाति आधारित आंकड़े सार्वजनिक किए गए थे। तब से अब तक केंद्र स्तर पर ऐसी कोई पहल नहीं हुई थी।

जातीय जनगणना से निम्नलिखित लाभ होंगे:

वास्तविक सामाजिक संरचना की समझ मिलेगी, जिससे योजनाएं बेहतर बनेंगी।

आरक्षण और सब्सिडी जैसे कल्याणकारी उपायों को सही दिशा मिलेगी।

सामाजिक असमानता को दूर करने में मदद मिलेगी।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व को भी जनसंख्या के आधार पर समायोजित किया जा सकेगा।

बिहार ने दिखाया रास्ता, केंद्र ने उठाया कदम

बिहार में 2023 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जातीय गणना कराई गई थी। इस सर्वे ने ओबीसी और ईबीसी की जनसंख्या को सामने लाया, जो कुल राज्य की आबादी का 63% से अधिक है। यह रिपोर्ट राज्य की सामाजिक-आर्थिक रणनीतियों का आधार बनी।अब जब नीतीश कुमार एनडीए में लौट चुके हैं, और केंद्र सरकार ने उनके पुराने एजेंडे को अपनाया है, तो यह राजनीतिक दृष्टिकोण से भी एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है।

राजनीतिक समीकरणों पर भी पड़ेगा असर

जातीय जनगणना केवल सामाजिक विकास का उपकरण नहीं, बल्कि राजनीतिक सत्ता संतुलन का भी प्रमुख आधार बन सकता है।2024 और 2025 के चुनावों को देखते हुए यह कदम केंद्र सरकार को बहुजन वर्गों और पिछड़े समुदायों के करीब लाने में अहम भूमिका निभा सकता है।

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