Bihar Congress: दिल्ली के दरबार में बिहार के कांग्रेसियों ने डाला डेरा, दस दिन बाद भी हाईकमान के नहीं खुले दरवाज़े, चुनाव में हार के बाद के सवाल पर चर्चा करने पहुंचे हैं शीर्ष नेतृत्व के पास

Bihar Congress: बिहार के नेताओं का एक समूह पिछले करीब दस दिनों से राजधानी में डेरा डाले हुए है, लेकिन हाईकमान के दरवाज़े अब तक नहीं खुले हैं।

: दिल्ली के दरबार में बिहार के कांग्रेसियों ने डाला डेरा- फोटो : social Media

Bihar Congress: बिहार कांग्रेस की सियासत इन दिनों दिल्ली के गलियारों में बेचैनी और इंतज़ार के साये में खड़ी नज़र आ रही है। प्रदेश के नेताओं का एक समूह पिछले करीब दस दिनों से राजधानी में डेरा डाले हुए है, लेकिन हाईकमान के दरवाज़े अब तक नहीं खुले। यह वही नेता हैं जिन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे और रणनीति पर खुलेआम सवाल उठाकर पार्टी नेतृत्व को कटघरे में खड़ा किया था। तब उन्हें भरोसा दिया गया था कि चुनाव के बाद उनकी बात शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचेगी, मगर आज हालात यह हैं कि मुलाकात का वादा सियासी सब्र की परीक्षा बन चुका है।

सूत्रों के मुताबिक, बिहार कांग्रेस के ये नेता दिल्ली पहुंच तो गए, लेकिन न मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात हो सकी और न ही राहुल गांधी से। खरगे संसद सत्र में व्यस्त हैं और राहुल गांधी जर्मनी यात्रा पर, ऐसे में बिहार कांग्रेस का यह कुनबा उम्मीद और मायूसी के दरमियान झूल रहा है। यह इंतज़ार सिर्फ़ मुलाकात का नहीं, बल्कि उस सियासी दिशा का है जो बिहार कांग्रेस को आगे ले जाएगी।

चुनावी हार के बाद प्रदेश कांग्रेस में ‘इंडिया’ गठबंधन को लेकर तल्ख़ सवाल उठने लगे हैं। कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि गठबंधन की सियासत ने कांग्रेस को हाशिये पर धकेल दिया और पार्टी का अपना जनाधार कमजोर हुआ। वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा की यह आवाज़ कि कांग्रेस को अब अपने दम पर मैदान में उतरना चाहिए, संगठन के भीतर गूंज बन चुकी है। उनका कहना है कि अकेले संघर्ष से ही पार्टी और राहुल गांधी के नेतृत्व को असली ताक़त मिलेगी।

सदाकत आश्रम में हुई समीक्षा बैठक में भी यही बेचैनी सामने आई। महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सरवत जहां फ़ातिमा का इस्तीफ़ा सिर्फ़ संगठनात्मक नाराज़गी नहीं, बल्कि टिकट वितरण और महिलाओं की अनदेखी पर सियासी सवाल है। उनका यह कहना कि अकेले लड़ने पर नतीजे बेहतर होते, कांग्रेस की अंदरूनी सियासत की कड़वी हक़ीक़त बयान करता है।

बहरहाल  बिहार कांग्रेस आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां दिल्ली की एक मुलाकात उसका भविष्य तय कर सकती है। सवाल यह है कि हाईकमान कब सुनेगा और क्या यह इंतज़ार पार्टी को नई राह देगा या फिर यह बेचैनी और गहरी दरार में बदल जाएगी।