Bihar: बिहार के इन 59 देसी उत्पादों को मिलेगी नई पहचान, GI टैग के लिए शुरू हुई ऐतिहासिक पहल
Bihar: बिहार की पहचान अब सिर्फ लिट्टी-चोखा तक सीमित नहीं रह गई है। राज्य के पारंपरिक उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी द्वारा GI टैग दिलाने की प्रक्रिया तेज़ी से चल रही है।
बिहार की माटी से उपजे स्वाद और परंपरा अब दुनिया की थाली में पहुंचेगी। शाही लीची, मगही पान और जर्दालू आम जैसे उत्पादों को मिल चुकी GI पहचान के बाद अब 59 और पारंपरिक उत्पादों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने की तैयारी शुरू हो गई है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), सबौर की वैज्ञानिक टीम इस अभियान की अगुवाई कर रही है।
हर जिले से चुने जा रहे अनमोल उत्पाद
BAU की टीम ने अब तक जिन 59 उत्पादों की पहचान की है, वे बिहार के अलग-अलग जिलों से ताल्लुक रखते हैं। कहीं परंपरागत चूड़ा तो कहीं देसी मसाले, कहीं विशिष्ट बुनाई वाले कपड़े तो कहीं मिट्टी से बनी खास चीजें—हर उत्पाद अपने क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान लिए हुए है। अब इनकी विशिष्टता को दस्तावेज़ कर GI टैग के लिए आवेदन तैयार किए जा रहे हैं।
BAU और नाबार्ड की साझेदारी से बना GI सेंटर
नाबार्ड के सहयोग से बिहार कृषि विश्वविद्यालय में एक अत्याधुनिक GI फैसिलिटी सेंटर स्थापित किया गया है, जहां वैज्ञानिक डॉ. ए.के. सिंह की टीम अनुसंधान और दस्तावेज़ीकरण का काम कर रही है। BAU के कुलपति डॉ. दुनियाराम सिंह का मानना है कि "हमारी परंपरा सिर्फ बीते कल की बात नहीं, बल्कि आने वाले कल की पूंजी है।"
पहले से GI टैग से बदली किसानों की किस्मत
शाही लीची, कतरनी चावल और मिथिला मखाना को GI टैग मिलने के बाद इनकी मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई है। विदेशों में निर्यात से उत्पादकों की आय दोगुनी हो चुकी है। छोटे पैकेजिंग में शुद्धता और स्वाद की छाप छोड़ते ये उत्पाद अब बिहार के आर्थिक विकास का मजबूत आधार बन रहे हैं।
कई फाइलें अंतिम स्टेज में, तीसरा फेज भी तैयार
डॉ. ए.के. सिंह के अनुसार, दर्जनभर उत्पादों की GI फाइलें राष्ट्रीय GI रजिस्ट्रार के पास भेज दी गई हैं। कई अन्य प्रोडक्ट्स के केस अंतिम प्रोसेसिंग में हैं। तीसरे चरण में 30 नए उत्पादों की पहचान कर दस्तावेज़ीकरण शुरू किया जाएगा।
बिहार की पहचान को मिलेगा नया जीवन
बिहार की पारंपरिक विरासत अब सिर्फ मेले-ठेले की शोभा नहीं रहेगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में पैकेजिंग और ब्रांडिंग के साथ पेश की जाएगी। GI टैग इस दिशा में बड़ा हथियार साबित हो रहा है, जो किसानों और दस्तकारों की आमदनी को सीधा प्रभावित कर रहा है।