Bihar caste census: राजद ने आरक्षण का नया फार्मूला किया पेश, जाति गणना के फैसले से महागठबंधन की बढ़ती बेचैनी के बीच तेजस्वी का मास्टर स्ट्रोक

जाति जनगणना पर केंद्र की पहल के बाद महागठबंधन में बेचैनी बढ़ी। तेजस्वी यादव ने ओबीसी-ईबीसी के लिए नया आरक्षण फॉर्मूला पेश कर राजनीतिक संवाद को नई दिशा दी है।

 tejashwi yadav
tejashwi yadav - फोटो : SOCIAL MEDIA

Bihar caste census: भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय का विमर्श एक बार फिर केंद्र में है। केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना की घोषणा को विश्लेषक एक राजनीतिक मास्टर-स्ट्रोक मान रहे हैं, जिसने महागठबंधन से उनका मुख्य चुनावी मुद्दा छीन लिया है। खासकर बिहार जैसे राज्य में जहां ओबीसी और ईबीसी आबादी 63% तक है, वहां यह घोषणा रणनीतिक तौर पर अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को अब इस घोषणा के बाद बचाव की मुद्रा में आकर अपनी पुरानी राजनीतिक पूंजी को पुनर्जीवित करना पड़ा है।

तेजस्वी यादव का मास्टर-स्ट्रोक: आरक्षण का नया फार्मूला

तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर जाति जनगणना के लिए धन्यवाद दिया और इसे सामाजिक समानता की दिशा में "परिवर्तनकारी क्षण" बताया। उन्होंने कहा कि यह केवल आँकड़ों की नहीं बल्कि सम्मान और सशक्तीकरण की प्रतीक्षा कर रहे करोड़ों लोगों की लड़ाई है।

राजद का नया एजेंडा 

अब राजद केवल नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की बात नहीं कर रहा, बल्कि निजी क्षेत्र,सरकारी ठेके, न्यायपालिका और निर्वाचन क्षेत्रों में भी ओबीसी-ईबीसी आरक्षण की वकालत कर रहा है।यह योजना मंडल आयोग की अधूरी सिफारिशों को भी लागू करने की मांग के साथ जुड़ी हुई है।

सोशल मीडिया पर रोडमैप की झलक और भाजपा पर हमला

तेजस्वी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर शुक्रवार को एक विस्तृत पोस्ट के जरिए ओबीसी-ईबीसी प्रतिनिधित्व बढ़ाने का रोडमैप साझा किया। उन्होंने इसमें दावा किया कि आज जो भाजपा और संघ जाति जनगणना को अपना मास्टर-स्ट्रोक कह रहे हैं, वे कभी इसे "विभाजनकारी" और "अनावश्यक" करार देते थे।

ये संघी खोखले लोग हैं-तेजस्वी 

तेजस्वी की बयानबाजी तीखी रही। उन्होंने भाजपा नेताओं को "खोखले" और "संदेहास्पद मंशा" वाला बताया और कहा कि जाति गणना की पहल असल में "समाजवादी दबाव" का नतीजा है, न कि भाजपा की नीति।

क्यों है जाति जनगणना इतनी महत्वपूर्ण?

जाति जनगणना न केवल सामाजिक आंकड़ों का भंडार है, बल्कि यह नीतियों की दिशा तय करने वाला औजार भी है। बिहार में जहां 63% से अधिक ओबीसी-ईबीसी जनसंख्या है, वहां उनके प्रतिनिधित्व में भारी कमी है।अब राजद यह मुद्दा उठा रहा है कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण में वृद्धि होनी चाहिए।संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण होना चाहिए और निजी क्षेत्र में भी सामाजिक प्रतिबिंब दिखना चाहिए