Bihar Transport News: ट्रांसफर के बाद महिला क्लर्क को विरमित करने में DTO साहेब के फूल रहे हाथ पैर ! सचिव को अनुरोध पत्र लिखना पड़ा, गजब का खेल चालू है साहेब..
बिहार में ट्रांसफर की कहानी अब महज एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि नाटकीय धारावाहिक बन चुकी है। हालिया मामला जिला परिवहन कार्यालय से गई एक महिला लिपिक (क्लर्क) का है, जिन्हें बाकायदा आदेश निकलने के बाद भी डीटीओ साहेब विरमित नहीं कर रहे...
Bihar Transport News: बिहार में सरकारी सिस्टम का चलन भी अजीब है, यहां आदेश तो निकलते हैं राजधानी से, लेकिन नीचे आते-आते आदेश भी 'पंचायती' बन जाता है। मामला है परिवहन विभाग के कर्मचारियों के स्थानांतरण का, जहां एक महिला लिपिक का ट्रांसफर तो हो गया, लेकिन 'विरमिती' यानी रिलीविंग अब तक ठंडे बस्ते में पड़ी है।
अब खुद सोचिए, जब हुकूमत ने 30 जून 2025 को बाकायदा ज्ञापांक-5356 जारी कर ट्रांसफर और पोस्टिंग कर दिया, तो फिर पटना के जिला परिवहन पदाधिकारी कौन से बादशाह सलामत हैं जो अपनी ही मर्जी से बैठ गए? एक महिला लिपिक को मोटर वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, पटना प्रमंडल में भेजा गया है, लेकिन डीटीओ साहब अब तक उन्हें विरमित नहीं कर रहे। सरकार आदेश देती रही और साहब "देखते हैं, सोचते हैं" वाले मूड में बैठे हैं!
न्यायाधिकरण के सचिव ने तो आखिरकार कलम उठाई और सात जुलाई को डीटीओ को पत्र लिख मिन्नत की—"जनाब, विरमित तो कर दीजिए, यहां स्टाफ की हालत पतली है, एक लिपिक, एक उच्च वर्गीय लिपिक और दो ऑपरेटर से न्याय नहीं हो पा रहा, आप तो कम से कम इंसाफ का रास्ता खोलिए।"
लेकिन पटना के डीटीओ शायद ये समझ बैठे हैं कि ट्रांसफर का आदेश WhatsApp फॉरवर्ड है—देख लिया, छोड़ दिया। अफसरशाही की इसी अकड़ के चलते पूरा सिस्टम 'बटन दबाओ-लिफ्ट न आए' वाले हाल में पहुंच चुका है।
अब आप ही बताइए, जब खुद सरकार अपने आदेशों पर अमल नहीं करवा पा रही, तो आम आदमी की सुनवाई कौन करेगा? ट्रांसफर तो जैसे हो गया शादी का कार्ड भेज दिया, अब दूल्हा आए या न आए, हमारी बला से!
सवाल उठता है क्या ट्रांसफर सिर्फ फाइलों में होता है? क्या विरमिती अब सिर्फ विभागीय ख्वाब बन चुका है? अगर हर अफसर अपनी ही दुनिया का राजा हो जाएगा, तो फिर शासन व्यवस्था को 'शासन' कौन कहेगा?जिला स्तर से उन्हें विरमित नहीं किया जा रहा तो आखिर किसकी सरपरस्ती है सबसे बड़ा सवाल है