Jayaprakash Narayan: लोकनायक जेपी, स्वतंत्रता संग्राम से सम्पूर्ण क्रांति तक, भ्रष्टाचार और असमानता के खिलाफ जनता के नेता को जानिए
Jayaprakash Narayan: है "जयप्रकाश" वह नाम जिसे, इतिहास समादर देता है,बढ़ कर जिसके पद-चिह्नों को, उर पर अंकित कर लेता है।ज्ञानी करते जिसको प्रणाम, बलिदानी प्राण चढ़ाते हैं,वाणी की अंग बढ़ाने को, गायक जिसका गुण गाते हैं।...
Jayaprakash Narayan:कहते हैं उसको "जयप्रकाश", जो नहीं मरण से डरता है,ज्वाला को बुझते देख, कुण्ड में, स्वयं कूद जो पड़ता है।है "जयप्रकाश" वह जो न कभी, सीमित रह सकता घेरे में,अपनी मशाल जो जला, बाँटता फिरता ज्योति अँधेरे में। जय प्रकाश नारायण, जिन्हें लोग प्यार से जेपी या लोकनायक कहते हैं, भारतीय राजनीति और समाज में बदलाव की एक ज्वलंत मिसाल थे। उनका जन्म 11 अक्टूबर 1902 को सारण जिले के सिताब दियारा में हुआ। जेपी ने केवल अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया, बल्कि स्वतंत्र भारत में भ्रष्टाचार और असमानता के खिलाफ भी जन आंदोलनों का नेतृत्व किया।
जेपी का बचपन सादगी और विद्रोही स्वभाव से भरा था। 17 वर्ष की उम्र में उनकी शादी प्रभावती देवी से हुई, जो स्वयं स्वतंत्रता सेनानी थीं। 1922 में अमेरिका गए जेपी ने समाजशास्त्र और व्यवहार विज्ञान की पढ़ाई की, और वहाँ मार्क्सवादी तथा समाजवादी विचारों से प्रभावित हुए। 1929 में भारत लौटकर उन्होंने महात्मा गांधी से प्रेरणा ली और कांग्रेस में शामिल हो गए। 1932 में उनकी किताब “Why Socialism?” प्रकाशित हुई, जिसमें भारत के लिए समाजवादी व्यवस्था की वकालत की गई।
स्वतंत्रता संग्राम में जेपी की क्रांतिकारी भूमिका उनके जीवन का महत्वपूर्ण पहलू रही। शुरुआत में उन्होंने अन्याय और शोषण के खिलाफ सशस्त्र क्रांति के विचार अपनाए और युवाओं में नेतृत्व क्षमता पैदा की। बाद में गांधीवादी दर्शन से प्रभावित होकर उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के रास्ते पर कदम बढ़ाया, जिससे उन्हें ‘लोकनायक’ की उपाधि मिली।
1934 में जेपी ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की, जो किसानों, मजदूरों और गरीबों के अधिकारों के लिए काम करती थी। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह हजारीबाग जेल से भागकर भूमिगत हो गए और देशभर में स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व किया।स्वतंत्रता के बाद जेपी ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी और सर्वोदय आंदोलन शुरू किया। उनका मानना था कि राजनीति सिर्फ सत्ता पाने का साधन नहीं, बल्कि जनता की भलाई का मार्ग होनी चाहिए। उन्होंने ग्रामीण विकास, भूदान आंदोलन और समान धन वितरण पर काम किया।
1974 में बिहार में छात्रों और जनता के आंदोलन के दौरान जेपी ने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का आंदोलन चलाया, जो भ्रष्टाचार, महंगाई और तानाशाही के खिलाफ था। 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया, लेकिन रिहा होने पर उन्होंने विपक्ष को संगठित कर जन आंदोलन को और मजबूती दी। यही आंदोलन आगे चलकर जनता पार्टी में बदल गया, जिसने 1977 में केंद्र में सत्ता हासिल की। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में है "जयप्रकाश" वह जो कि पंगु का, चरण, मूक की भाषा है, है "जयप्रकाश" वह टिकी हुई, जिस पर स्वदेश की आशा है।हाँ, "जयप्रकाश" है नाम समय की, करवट का, अँगड़ाई का;भूचाल, बवण्डर के ख्वाबों से, भरी हुई तरुणाई का।
जेपी की बिप्लवी भूमिका ने भारत को स्वतंत्रता संग्राम, सर्वोदय और सम्पूर्ण क्रांति जैसी तीन बड़ी आंदोलनों से प्रभावित किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि क्रांति सिर्फ हथियार से नहीं, बल्कि जनजागरण और नैतिकता से भी की जा सकती है। दिनकर के शब्दों में -फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं, धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है; दो राह,समय के रथ का र्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। ...
जेपी को 1965 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1999 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका निधन 8 अक्टूबर 1979 को हुआ, लेकिन उनका जीवन और विचारधारा आज भी युवाओं और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। लोकनायक को जयंती पर नमन....
वह सुनो, भविष्य पुकार रहा, "वह दलित देश का त्राता है,स्वप्नों का दृष्टा "जयप्रकाश", भारत का भाग्य-विधाता है।"