Bihar Caste Politics: राजपूत–दलित संतुलन से कुनबाई पकड़ तक… नीतीश की सत्ता-शतरंज में 26 मोहरों की नई चाल! सबको फिट करने की कोशिश!

Bihar Caste Politics: पटना के गांधी मैदान में जब नीतीश कुमार ने दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो माहौल सियासी जज़्बे, सत्ता की गर्माहट और राजनीतिक नज़ाकतों से लबरेज था।

राजपूत–दलित संतुलन से कुनबाई पकड़ तक- फोटो : social Media

 Bihar Caste Politics:  पटना के गांधी मैदान में जब नीतीश कुमार ने दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो माहौल सियासी जज़्बे, सत्ता की गर्माहट और राजनीतिक नज़ाकतों से लबरेज था। मंच पर नेताओं की चहल-पहल और नीचे जनता की गहमागहमी दोनों मिलकर एक ऐसा मंजर बना रहे थे, जैसे बिहार की सियासत का नया पन्ना उसी वक्त पलट रहा हो।

शपथ समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और चंद्रबाबू नायडू जैसे दिग्गजों की मौजूदगी ने इस कार्यक्रम को महज़ एक औपचारिकता नहीं रहने दिया, बल्कि इसे एक सियासी संदेश में तब्दील कर दिया। नीतीश कुमार के साथ सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ ली, और कुल 27 मंत्रियों वाली नई कैबिनेट ने सत्ता की रूपरेखा स्पष्ट कर दी।

सबसे पहले बात करते हैं जातीय समीकरण की क्योंकि बिहार की राजनीति में कास्ट कार्ड बिना खेले कोई खेल नहीं चलता। सामान्य वर्ग से 8 मंत्री, पिछड़ी जातियों से 9, अति पिछड़ों से 3, दलित वर्ग से 5 और मुस्लिम समुदाय से 1 मंत्री ये पूरा फ़ॉर्मूला दिखाता है कि नीतीश कुमार ने हर तबके को उसके राजनीतिक वजन के हिसाब से जगह देने की कोशिश की है। राजपूत और दलित समुदाय को सबसे ज़्यादा प्रतिनिधित्व, भूमिहार और कुशवाहा को सम्मानजनक हिस्सेदारी और यादव समाज को भी प्रतीकात्मक लेकिन महत्त्वपूर्ण जगह यही है नीतीश का संतुलन सूत्र।

अब आते हैं दो तस्वीरों पर, जो सोशल मीडिया से लेकर सत्ता के गलियारों तक चर्चा में रही। पहली पीएम मोदी का गमछा लहराना। चुनावों में ट्रेंड बने इस इशारे को उन्होंने शपथ समारोह में भी दोहराया, मानो बिहार की जनता से सीधे संवाद का पुल कायम कर रहे हों। दूसरी एक साथ कई मंत्रियों का सामूहिक शपथ ग्रहण। आवाज़ें आपस में घुलमिल गईं, शब्द अस्पष्ट, और प्रक्रिया जल्दबाज़ी भरी लेकिन यही आज की तेज़-तर्रार राजनीति का अंदाज़ भी है।

इधर परिवारवाद को लेकर चर्चाएं गर्म हैं। उपेंद्र कुशवाहा का परिवार हो, मांझी परिवार हो या फिर सम्राट चौधरी और अशोक चौधरी पर विपक्ष के तंज—सब पर सियासत अपनी-अपनी धार चला रही है। और इसी भीड़ में एक शांत तस्वीर नीतीश कुमार के बेटे निशांत की, जो तमाम सियासी हलचल से दूरी बनाए दर्शक दीर्घा में बैठे रहे।

कुल मिलाकर, गांधी मैदान का यह जलवा सिर्फ एक शपथ नहीं था, बल्कि बिहार की सत्ता, समीकरणों और राजनीतिक संस्कारों की एक मुकम्मल सियासी दास्तान था।