Bihar Vidhasabha Chunav 2025 : बिहार की सियासत का ‘साइलेंट किलर’, लालू को किया सत्ता से बाहर, एक झटके से हिल गये नीतीश कुमार

Bihar Vidhasabha Chunav 2025 : बिहार की सियासत में इनको साइलेंट किलर कहा जाता है. जिनसे न सिर्फ लालू यादव बल्कि नीतीश को भारी नुकसान उठाया है.....पढ़िए आगे

सियासत के साइलेंट किलर - फोटो : SOCIAL MEDIA

PATNA : बिहार की सियासत में साल 1990 और 2005 बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। 1990 में कांग्रेस सत्ता से बाहर से गयी। इस साल लालू यादव की बिहार की सत्ता पर ताजपोशी हुई। जिसके बाद लालू राबड़ी ने मिलकर बिहार में 15 साल तक शासन किया। सबसे अहम् साल रहा 2005, जब एक साल ही बिहार में दो बार चुनाव कराये गए। पहला फरवरी 2005 में और दूसरा अक्टूबर 2005 में. फरवरी 2005 चुनाव के नतीजों के गहरे निहितार्थ थे। ये नतीजे लालू के किले में पैदा हो चुके दरार का संकेत था, लालू का वोट छिटकने लगा था, MY समीकरण का तिलिस्म टूट रहा था। 

फरवरी 2005 के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल 75 सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इस चुनाव में आरजेडी 210 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। उसे 75 सीटों पर जीत मिली। वहीँ जेडीयू 138 सीटों पर चुनाव लड़ी और 55 सीटें जीतीं। साल 2000 के मुकाबले इस चुनाव में जेडीयू को 17 सीटें ज्यादा मिली। जबकि फरवरी 2005 में बीजेपी 103 सीटों पर लड़ी और 37 सीटें जीती। इस फरवरी 2005 के चुनाव ने लालू एंड फैमिली की बिहार की सत्ता से विदाई तो कर दी, लेकिन नीतीश के लिए सत्ता का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सका। दरअसल इस चुनाव में पासवान 29 सीट लेकर ऐसे किंगमेकर के रूप में उभरे। जिनके पास सत्ता की चाभी थी। लालू यादव लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान को मनाते रह गए। लेकिन वे पासवान की मुस्लिम सीएम की जिद को कोई पूरा नहीं कर सके। अंततः बिहार में फिर से चुनाव का ऐलान हो गया। अक्टूबर 2005 के चुनाव में 139 सीटों पर चुनाव लड़कर नीतीश कुमार की जेडीयू 88 सीटें जीतीं, जबकि राष्ट्रीय जनता दल 175 सीटों पर चुनाव लड़ी और मात्र 54 सीटें जीत पाई। बीजेपी भी आरजेडी से आगे ही रही। जेडीयू के साथ लड़ने वाली बीजेपी 102 सीटों पर लड़ी और 55 सीटें जीतीं। फरवरी 2005 के मुकाबले इस बार आरजेडी को 21 सीटें कम मिली। 

अक्टूबर 2005 में हुए चुनाव में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के सारे अरमान टूट गए। मात्र 7 महीने पहले सत्ता की चाभी लेकर घुमनेवाले रामविलास पासवान हासिये पर चले गए। पासवान की पार्टी इस चुनाव में अकेले दम पर सबसे ज्यादा 203 सीटों पर चुनाव लड़ी। लेकिन  10 सीटें ही जीत पाई, उन्हें 19 सीटों का भारी-भरकम नुकसान हुआ। पासवान को उम्मीद थी कि फरवरी में जो उन्होंने मुस्लिम मुख्यमंत्री का दांव चला था। उसके बदले में उन्हें लगभग 15 फीसदी मुसलमान वोटों का कुछ हिस्सा तो जरूर हासिल होगा। लेकिन बिहार के मुस्लिम मतदाता इस दांव की हकीकत पढ़ गए थे। इस बार ये वोट नीतीश के साथ जाने का मन बना चुका था। नीतीश को मुसलमानों का भरपूर समर्थन मिला। इस तरह रामविलास पासवान के पास न सत्ता की चाभी रही, न मुसलमानों का साथ मिला। लालू की बात फ़रवरी 2005 में रामविलास पासवान मान गए होते तो शायद आज के राजनीति की तस्वीर कुछ अलग होती. कम से कम बिहार में लालू का तिलिस्म बचा रह जाता।  

इसी तर्ज पर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में चिराग पासवान ने कहा था की "चिराग पासवान तो 2020 के चुनाव में डंके की चोट पर बोल कर गया था कि मैं नीतीश कुमार जी को चुनाव हराने और उन्हें कमजोर करने के लिए चुनाव लड़ रहा हूं। ये बात मैंने ऑन रिकॉर्ड बोली थी।" उन्होंने आगे कहा कि उनका लक्ष्य कभी सरकार बनाना नहीं था। चिराग पासवान ने जोर देकर कहा, "मैं नीतीश कुमार जी को नुकसान पहुंचाने के लिए चुनाव लड़ा। मुझे खुशी है कि मैंने अपना लक्ष्य हासिल किया।" उन्होंने इस बात पर भी संतोष जताया कि उनकी पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी और नीतीश कुमार की आधी से ज्यादा सीटें कम हुईं। यह बयान 2020 के चुनाव में लोजपा के अकेले लड़ने के पीछे की रणनीति को स्पष्ट करता है, जिसने एनडीए गठबंधन में रहते हुए भी जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे। बता दें की चिराग पासवान की लोजपा ने 2020 के विधानसभा चुनाव में करीब 54 सीटों के नतीजों को प्रभावित किया था। चिराग ने सबसे अधिक जदयू को नुकसान पहुंचाया था। जदयू के उम्मीदवार 25 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे थे। इन सीटों पर लोजपा के वोट, जीते के अंतर से अधिक थे। यानी 2020 के चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी ने वोटकटवा की भूमिका निभायी। स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है की एक तरफ जहाँ लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान ने लालू यादव को बिहार की सत्ता से वनवास में भेज दिया। वहीँ उनके बेटे चिराग पासवान ने अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का गठन किया और एनडीए में रहकर नीतीश कुमार झोरदार झटका दे दिया।