Bihar Election 2025: कार्यकर्ता नहीं जनता बन करें सरकार का चुनाव, बिहार इलेक्शन में बेहतर विकल्प कौन? नीतीश-तेजस्वी या प्रशांत, जानिए इस रिपोर्ट में सब कुछ
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव होने में अब कुछ ही समय शेष बचा है, ऐसे में जनता की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वो कैसे अपने लिए एक बेहतर विकल्प की तलाश करें, बिहार की जनता के सामने तीन विकल्प हैं, लेकिन बेहतर विकल्प कौन है? आइए जानते हैं...
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया अब कुछ ही महीनों में शुरु हो जाएगी। अक्टूबर के आखिरी सप्ताह और नवंबर के पहले सप्ताह में मतदान की प्रक्रिया पूरी होने की संभावना है। विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल तैयारियों में जुट गए हैं। कई दल जनता के बीच हैं तो कई दल जनता के बीच उतरने वाले हैं। चुनाव को लेकर सबकी सक्रियता दिखने लगी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आचार संहिता लागू होने से पहले प्रदेश के लोगों को एक के बाद एक बड़ी सौगात दे रहे हैं। तो वहीं विपक्ष अपनी सरकार बनाने के लिए जनता को कई सपने दिखा रही है। जनता के समक्ष विपक्षी नेता अपनी बातों को रख रहे हैं और वादा कर रहे हैं कि उनकी सरकार आई तो वो क्या क्या करेंगे। वहीं दूसरी और सत्ता पक्ष अपने द्वारा किए गए कामों को गिना रही है। जनता के समक्ष इस बात को रख रही है कि हमनें ये ये काम किया और आगे हम ये सब करेंगे। इन सब से अलग इस बार एक अन्य दल पक्ष-विपक्ष को कड़ी टक्कर दे रहा है और ये दल किसी और का नहीं बल्कि प्रशांत किशोर का है। प्रशांत किशोर ने बीते 2 अक्टूबर 2024 को जनसुराज को पार्टी के रुप में बदल दिया। पीके ने ऐलान किया कि वो इस बार विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। पीके फिलहाल जनता के बीच हैं और 'बिहार बदलाव यात्रा' कर रहे हैं।
नीतीश-तेजस्वी और प्रशांत कौन पड़ेगा भारी
पीके सभी जिलों में जाकर जमीनी तौर पर जनता से मिल रहे हैं और उन्हें यकींन दिला रहे हैं कि उनकी सरकार आई तो वो क्या क्या करेंगे। साथ ही पीके बिहार में बदलाव की आंधी लाने की भी बात कर रहे हैं। दूसरी ओर विपक्ष भी जनता के बीच जाने वाली है। महागठबंधन के सभी दल 17 अगस्त से 'वोट अधिकार यात्रा' पर निकलेंगे। इस दौरान प्रदेश में चल रहे मतदाता पुनरीक्षण, रोजगार, बेरोजगारी, विकास सहित तमाम मुद्दों पर सरकार को घेरने की बड़ी तैयारी है। विपक्ष जहां सरकार पर हमलावर है तो वहीं सरकार की ओर से कई सौगात दी जा रही है। हाल ही नीतीश सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि को 400 से बढ़ा कर 1100 रुपए किया, बिहार की महिला अभ्यर्थियों को सरकार नौकरियों में 35 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का ऐलान किया। 125 यूनिट फ्री बिजली, पत्रकार पेंशन योजना की राशि बढ़ाई, पत्रकारों की पेंशन 6 हजार से 15 हजार तो उनके आश्रितों को मिलने वाले प्रतिमाह 3 हजार रुपए को 10 हजार किया। आशा ममता कार्यकर्ताओं की मानदेय बढ़ाया। आशा कार्यकर्ताओं को 1 हजार से 3 हजार प्रोत्साहन राशि तो ममता कार्यकर्ताओं के लिए प्रति प्रसव 300 से 600 रुपए किया गया। शिक्षा विभाग के मिड डे मील रसोईयां, रात्रि प्रहरियों और शारीरिक शिक्षा और स्वास्थ्य अनुदेशकों की मानदेय बढ़ाई। साथ ही सीएम नीतीश ने बिहार के अभ्यर्थियों की सबसे बड़ी मांग पूरी करते हुए डोमिसाइल लागू करने का निर्णय लिया। सीएम नीतीश ने एक के बाद एक कई बड़ी घोषणाएं की।
वोटरों में मंथन शुरु
सत्ता के संघर्ष के खींचातानी में कहीं ना कहीं जनता के मन में भी कई सवाल खडे़ हो रहे हैं। किसे वोट दिया जाए और किसे नहीं इसको लेकर मंथन शुरु है। कोई नीतीश कुमार की एनडीए सरकार पर विश्वास कर रहा है तो किसी का कहना है कि तेजस्वी को भी मौका मिले वहीं इन सबसे अलग एक गुट ऐसा भी बन गया है जो प्रशांत किशोर पर भरोसा कर रहा है और उनकी बदलाव का समर्थन कर रहा है। हर दिन वोटरों में सरकार चुनने के लेकर मथा पच्ची हो रही है। तीखी बहस के बीच सरकार चुनने का फैसला अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। अगर आज हम एक सरकार चुनते हैं तो अगले पांच सालों तक वहीं सरकार हमारे भविष्य को तय करेगी। ऐसे में बिहार के लिए क्या सही है ये तय कर पाना वोटरों के लिए भी आम बात नहीं है। नेता भले ही तमाम वादे कर लें लेकिन जमीनी हकीकत तो जनता जानती ही हैं। ऐसे में कैसे चुनाव करें कि बिहार के लिए क्या बेहतर रहेगा? बिहार अब बदलाव की ओर अग्रसर है। बिहार में बदलाव की आंधी देखी जा रही है। लेकिन तमाम मुद्दों को भी अनदेखी नहीं की जा सकती। पक्ष विपक्ष अपने अपने सियासी चाल को फेंक रहे हैं। जनता को लुभाने की कोशिश की जा रही है। अब जनता किसपर भरोसा जताती है ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन फिलहाल हम इस खबर में जानेंगे कि कैसे जनता सही तरीके से अपने लिए एक सही और उचित उम्मीदवार का चयन कर सकती है..?
कार्यकर्ता नहीं जनता बन करें सही उम्मीदवार का चयन
राजनीतिक जानकारों की मानें तो जनता को उम्मीदवार का निर्वाचन कार्यकर्ता के रुप में नहीं बल्कि जनता के रुप में करना चाहिए। आप सरकार का चुनाव अपने लिए करते हैं ऐसे में कौन सी सरकार होगी जो आपके हित के लिए काम करेगी यह तय आप खुद कर सकते हैं। इसलिए दलीय भावनाओं को त्याग कर जनहित लोकहित और क्षेत्रहित को सर्वोपरि मानकर मतदाताओं को वोट करना लोकतंत्र का मूल सिद्धांत बताया गया है। जनता नेता का निर्वाचन जनता सेवा के लिए करती है ऐसे में अगर आपके क्षेत्र के नेता अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से नहीं निभा रहे हैं तो आपका उतरदायित्व है कि आप उस नेता को बदल दें। बिहार में बदलाव आपका एक एक वोट ला सकता है ऐसे में चुनाव में आप किसको अपना मत देते हैं ये अहम हो जाता है। आपका एक मत ना सिर्फ आपके बल्कि आपके बच्चों और प्रदेश के भविष्य भी तय करेगा।
बिहार में क्यों जरुरी है बदलाव
बिहार की एक बड़ी आबादी बदलाव मांग रही है, ऐसे में ये सवाल लाजमी है कि बिहार में बदलाव क्यों जरुरी है? राजनीतिक जानकारों की मानें तो अगर कोई सरकार 2 टर्म से अधिक शासन में रह जाए तो वह शासक निरंकुश हो जाता है। निरंकुश शासन को आसान लहजे में समझे तो ऐसा शासक जो क्रूर या दमनकारी तरीके से शासन करता है। सभी निर्णयों को एकतरफा नियंत्रित करता हो। नीतीश सरकार पिछले 4 टर्म से बिहार सरकार में है। 2005 से 2025 तक नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री रहे, अपने 4 टर्म के शासन काल में सीएम नीतीश ने 3 दफा दल बदला। 2005 में बीजेपी के साथ गठबंधन कर लालू यादव की पार्टी राजद को सत्ता से हटाकर बिहार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2013 में उन्होंने बीजेपी से अपना 17 साल पुराना नाता तोड़ दिया। 2015 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार ने राजद के साथ लड़ा और जीता भी जिसके बाद तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने। वहीं 2017 में जब तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो सीएम नीतीश ने पाला बदल लिया और फिर बीजेपी के साथ सरकार बना ली। 2022 में एक बार फिर सीएम नीतीश ने महागठबंधन से नाता जोड़ लिया। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जनवरी में सीएम नीतीश की बीजेपी में वापसी हो गई और इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव जदयू बीजेपी के साथ लड़ेगी। सीएम नीतीश के 2005 से अब तक के सियासी सफर पर जनता की राय जानें तो उनका कहना साफ है कि सीएम नीतीश ने शुरु के दौर में काम तो किया लेकिन जैसे जैसे उनका कार्यकाल बढ़ता गया बिहार का विकास पिछड़ता गया। नीतीश सरकार में अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं। विपक्ष भी दावा करता है कि बिहार में अफसरशाही है। तेजस्वी यादव तो यहां तक दावा करते हैं कि सीएम नीतीश अधिकारियों के आगे नतमस्तक हैं। हाल के दिनों में सीएम नीतीश ने कई घोषणाएं की। लेकिन राजनीतिक जानकारों की मानें तो ये सभी घोषणाएं लोक लुभावन मात्र है। इससे नौकरी , रोजगार, निवेश, पलायन पर रोक, शिक्षा की बेहतरी जैसे दूरदर्शी विकासात्मक कार्य नहीं होंगे। सीएम नीतीश घोषणा तो कर रहे हैं लेकिन उनकी घोषणाओं में कोई विजन नहीं है।
तेजस्वी सरकार के नाम से क्यों डरता है बिहार
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव दावा तो कर रहे हैं कि इस बार बिहार में उनकी सरकार बनेगी लेकिन बिहार का एक बड़ा वर्ग प्रदेश की कमान राजद के हाथों में नहीं देना चाहता है और इसकी सबसे बड़ी वजह है लालू-राबड़ी राज। प्रदेश में लालू-राबड़ी राज की तुलना जगंलराज से की जाती है। लालू-राबड़ी राज के लोग कथित तौर पर दावा करते हैं कि उस दौर में सीएम हाउस में बैठकर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने की योजनाएं बनाई जाती थी। सीएम नीतीश भी अपनी भाषणों में कई बार कहते नजर आते हैं कि लालू-राबड़ी राज में शाम 5 बजे के बाद कोई घर से बाहर भी नहीं निकलता था। लालू-राबड़ी राज से आज भी बिहार की जनता में डर का माहौल है। वहीं तेजस्वी यादव तो कई बार दावा कर चुके हैं कि वह अपनी सरकार में विकास का नया आयाम लाएंगे लेकिन कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें उनके समर्थक आक्रमक रवैया अपनाते हैं और जनता को 90 की दशक याद दिलाने की बात करते हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर राजद की सरकार बनती है तो राजद के ऐसे कार्यकर्ता माहौल को बिगाड़ सकते हैं। हालांकि तेजस्वी लालू-राबड़ी राज से पृथक विकास की बात करते हैं और युवाओं का एक बड़ा वर्ग उनके समर्थन में भी है। इसके बावजूद एक बड़ा वर्ग बिहार में तेजस्वी सरकार बनाना नहीं चाहता है।
प्रशांत किशोर हो सकते हैं बेहतर विकल्प
अब बात करते हैं जनसुराज के सूत्रधार और संस्थापक प्रशांत किशोर की। क्या वे बिहार के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं? प्रशांत किशोर जाति धर्म से ऊपर उठकर विकास का दावा कर रहे हैं। प्रशांत किशोर ने पीएम मोदी सीएम नीतीश सहित कई पार्टियों के लिए चुनावी रणनीतिकार के रुप में काम किया है। ऐसे में उन्हें जनता से सीधा संवाद का अनुभव है। प्रशांत खुद को पेशेवर और नीति-आधारित नेता के रूप में प्रस्तुत करते हैं। वे जातिगत समीकरण, नारेबाजी और सिर्फ सत्ता की राजनीति के बजाय विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर फोकस की बात करते हैं। पीके जाति समीकरण को छोड़ विकास और नीतियों पर फोकस कर रहे हैं। पीके डेटा, सर्वे और जमीनी राय के आधार पर नीति बनाते हैं। सबसे अहम बात है कि, प्रशांत किशोर अब तक किसी घोटाले या भ्रष्टाचार के मामले में नहीं फंसे हैं। इससे उनकी छवि साफ-सुथरी और भरोसेमंद बनी हुई है, जो बिहार की राजनीति में दुर्लभ मानी जाती है। पीके हर जिले में घूम घूम कर जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो जमीनी स्तर पर पीके की पार्टी मजबूत होती दिख रही है। ऐसे में प्रशांत किशोर कहीं ना कहीं नीतीश और तेजस्वी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं और जनता को अपनी ओर झुकाने में कई हद तक सफल भी हो रहे हैं। हालांकि अब भी मतदाता का झुकाव किसके ओर होता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा और जनता आने वाले पांच सालों के लिए किसे मौका देती है ये देखना दिलचस्प होगा।