Vikas Divyakirti : जाने-माने शिक्षक विकास दिव्यकीर्ति को हो सकती है जेल, UPSC की तैयारी कराने वाले टीचर की बढ़ी मुश्किलें

विकास दिव्यकीर्ति द्वारा 'IAS vs Judge कौन ज्यादा ताकतवर नाम से बनाए गए वीडियो में उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं. उन्हें कोर्ट ने नोटिस जारी किया है.

Vikas Divyakirti- फोटो : news4nation

Vikas Divyakirti :  यूपीएससी की तैयारी करवाने वाले जाने-माने शिक्षक विकास दिव्यकीर्ति की मुशिलें बढ़ गई हैं. उनके खिलाफ कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. ऐसे में उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है. विकास दिव्यकीर्ति के साथ मुश्किलें बढने का यह मामला  'IAS vs Judge कौन ज्यादा ताकतवर?'से जुड़ा है. राजस्थान की एक कोर्ट ने उनके खिलाफ दायर मानहानि की शिकायत पर संज्ञान लिया है. कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि दिव्यकीर्ति ने तुच्छ प्रसिद्धि पाने के लिए दुर्भावनापूर्ण इरादे से न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक और व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया.


यह विवाद उनके एक वीडियो शो ‘आईएएस वर्सेज जज- कौन ज्यादा ताकतवर’ से खड़ा हुआ था. इसमें विकास दिव्यकीर्ति ने IAS को पावरफुल बताया था. मामले को लेकर अजमेर के न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या 2 अजमेर के पीठासीन अधिकारी मनमोहन चंदेल की अदालत में दृष्टि IAS के संचालक विकास दिव्यकीर्ति पर मानहानि केस में 22 जुलाई को अदालत के सामने पेश होने के आदेश जारी किए गए.


 डॉ दिव्यकीर्ति के खिलाफ बीएनएस की धारा 353(2), 356(2),(3), और धारा 66ए(बी) आईटी अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की गई थी. जिस वीडियो के संबंध में शिकायत दर्ज की गई है, उसकी टाइटल, 'IAS vs Judge: कौन ज्यादा ताकतवर' है. मामले को आपराधिक रजिस्टर में दर्ज करने का निर्देश देते हुए कोर्ट ने दिव्यकीर्ति को अगली सुनवाई की तारीख पर उपस्थित होने को कहा है. उल्लेखनीय है कि बीएनएस की धारा 356 मानहानि से संबंधित है.


शिकायतकर्ता ने क्या तर्क दिए?

कोर्ट को बताया गया कि विवादास्पद वीडियो में विकास दिव्यकीर्ति ने कथित तौर पर दावा किया था कि कॉलेजियम की मंज़ूरी के बाद भी संभावित न्यायाधीशों की फाइलें सरकारी लालफीताशाही के कारण अटकी रह सकती हैं. उन्होंने कथित तौर पर ज़िला न्यायाधीशों और ज़िला मजिस्ट्रेटों की शक्तियों के बीच विवादास्पद तुलना भी की थी और यह कहा कि न्यायिक शक्ति पुलिस के सहयोग पर निर्भर है. शिकायतकर्ता की कानूनी टीम ने तर्क दिया कि इस तरह के बयान न्यायपालिका की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं.