Bihar School: हद है! 300 बच्चों पर महज 2 कमरे, न पढ़ाई की जगह, न खाने का ठिकाना, शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलता ये स्कूल

बच्चे न जमीन पर बैठने को ठीक से काबिल हैं, न खाना खाने को। खुले आसमान के नीचे, धूप और बारिश की मार झेलते हुए, बच्चे कभी जमीन पर, तो कभी बरामदे में बैठकर पढ़ाई करते हैं।

कक्षा की छत आसमान, जमीन ही बेंच बनी जान- फोटो : social Media

Bihar School: खुले आसमान के नीचे, धूप और बारिश की मार झेलते हुए, बच्चे कभी जमीन पर, तो कभी बरामदे में बैठकर पढ़ाई करते हैं, ये है राजधानी पटना के स्कूल का हाल...जहां एक तरफ सरकार शिक्षा की गुणवत्ता और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने के दावे कर रही है, वहीं हकीकत यह है कि इस विद्यालय में 300 बच्चों के लिए सिर्फ दो कमरे हैं। इनमें से एक कमरा पुराने भवन का है जिसे मध्याह्न भोजन (मिड-डे मील) पकाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यानी जहाँ तालीम की बातें होनी थीं, वहाँ अब सिर्फ चूल्हे की आँच दिखती है। पटना जिले के बाढ़ अनुमंडल अंतर्गत बेलछी प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय, बराह की हालत देखकर यही सवाल उठता है  क्या यही है नया भारत का शिक्षा मंदिर?

बच्चे न जमीन पर बैठने को ठीक से काबिल हैं, न खाना खाने को। खुले आसमान के नीचे, धूप और बारिश की मार झेलते हुए, बच्चे कभी जमीन पर, तो कभी बरामदे में बैठकर पढ़ाई करते हैं। दरी या कालीन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नदारद हैं। इतनी भी जगह नहीं कि सारे बच्चे एक साथ बैठकर खाना खा सकें, इसलिए उन्हें बारी-बारी से भोजन करना पड़ता है।

खेलने का मैदान भी सपना बन चुका है। बच्चे या तो सड़क किनारे, या स्कूल के सामने की निजी जमीन पर खेलने को मजबूर हैं। हाल ही में हुई हल्की बारिश के बाद बच्चे गंदे पानी में खेलते हुए देखे गए, जो सरकारी उदासीनता का जीता-जागता तमाशा था।जब पत्रकारों ने प्रधानाध्यापक से बच्चों की संख्या और शिक्षक उपस्थिति की जानकारी माँगी, तो उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया, जो इस पूरे मामले पर पर्दा डालने की कोशिश के सिवा कुछ नहीं लगता।

प्रखंड विकास पदाधिकारी जयकुंडल प्रसाद ने स्वीकार किया कि स्कूल में एक नया कमरा बन रहा है, लेकिन जब तक निर्माण पूरा नहीं होता, वह स्कूल को नहीं सौंपा जाएगा। इस बीच बच्चे बरामदे में, ज़मीन पर, धूप में जलते और बारिश में भीगते रहेंगे।जहां किताबों की जगह धूल है, और कक्षा की जगह बरामदा वहां बच्चों का भविष्य कैसे संवर सकता है?सरकार को अब काग़ज़ों की समीक्षा छोड़कर ज़मीनी सच्चाई देखने की ज़रूरत है। क्योंकि तालीम सिर्फ़ नीति में नहीं, नीयत में भी होनी चाहिए।