Bihar Vidhansabha chunav 2025: दो शिक्षकों को राजनीतिक पाठ पढ़ाना पड़ा भारी, पार्टी विशेष के पक्ष में मतदान की अपील पर डीएम ने नाप दिया,हो गए सस्पेंड , विभाग में मचा हड़कंप

Bihar Vidhansabha chunav 2025: जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नज़दीक आ रहे हैं, सियासी तापमान चरम पर है।...

शिक्षकों को राजनीतिक पाठ पढ़ाना पड़ा भारी- फोटो : Meta

Bihar Vidhansabha chunav 2025: जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नज़दीक आ रहे हैं, सियासी तापमान चरम पर है। हर दल अपने पक्ष में हवा बनाने की कवायद में जुटा है, मगर इसी बीच मोतीहारी से एक ऐसा मामला सामने आया जिसने शिक्षा विभाग और प्रशासन दोनों को झकझोर दिया। जिले के दो शिक्षक एक छौड़ादानो के और दूसरी हरसिद्धि की शिक्षिका  बच्चों को पढ़ाने के बजाय राजनीतिक दल के लिए वोट मांगते नज़र आए।

इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसके बाद डीएम सौरव जोरवाल ने तुरंत संज्ञान लेते हुए डीईओ राजन कुमार गिरी को जांच और कार्रवाई का निर्देश दिया। जांच में आरोप सही पाए जाने पर दोनों शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया।कार्रवाई जिन दो शिक्षकों पर हुई है उनमें यूएमएस चैनपुर, छौड़ादानो के विशिष्ट शिक्षक आशीष कुमार उर्फ रमेश प्रसाद, यूएमएस उजैन लोहियार, हरसिद्धि की नियोजित शिक्षिका निर्मला सहनी शामिल हैं।डीईओ ने बताया कि दोनों शिक्षकों ने सरकारी सेवा में रहते हुए राजनीतिक दल के पक्ष में प्रचार-प्रसार कर आचार संहिता और शिक्षक आचरण संहिता का उल्लंघन किया है।

आशीष कुमार को विभागीय जांच लंबित रहने तक निलंबित कर बीआरसी बनकटवा में मुख्यालयित किया गया है।शिक्षिका निर्मला सहनी का मुख्यालय यूएमएस ओलहां मेहता टोला निर्धारित किया गया है।हरसिद्धि बीडीओ ने बताया कि शिक्षिका के खिलाफ मिले वीडियो साक्ष्य स्पष्ट रूप से राजनीतिक गतिविधियों में संलिप्तता दर्शाते हैं। जवाब-तलब के बावजूद उनका उत्तर असंतोषजनक पाया गया।

इस घटना के बाद जिलेभर के शिक्षक समुदाय में हड़कंप मच गया है। प्रशासन ने यह साफ़ कर दिया है कि चुनावी अवधि में किसी भी सरकारी कर्मी  विशेषकर शिक्षकों  की राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी गंभीर अनुशासनहीनता मानी जाएगी।जिला निर्वाचन पदाधिकारी के निर्देशानुसार, भविष्य में ऐसे मामलों पर ज़ीरो टॉलरेंस नीति के तहत तत्काल कार्रवाई की जाएगी।मोतीहारी की इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या शिक्षा जैसे पवित्र पेशे से जुड़े लोग राजनीति की रैलियों और वोट मांगने तक सीमित हो जाएंगे?शिक्षक समाज के निर्माता हैं, लेकिन जब वही गुरुजन शिक्षा की चौखट छोड़ सियासी चौपालों में पहुंच जाते हैं, तो लोकतंत्र और शिक्षा दोनों पर सवाल उठना स्वाभाविक है।प्रशासन का संदेश स्पष्ट है कि राजनीति करें, पर शिक्षक के दायित्व की मर्यादा न तोड़ें।

रिपोर्ट- हिमांशु कुमार