Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विस की वो सीट जहां BJP का नहीं खुला खाता, सीमांचल की सियासत में ‘स्वीटी’ का पंचम प्रयत्न , क्या किशनगंज के ताले में कमल खिलेगा या फिर रहेगा बंद?
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार की सियासत इन दिनों चुनावी रंग में पूरी तरह रंग चुकी है। गलियों से लेकर गलीचों तक, चौपालों से लेकर चौक-चौराहों तक, हर ओर इंतख़ाबी जज़्बा अपने शबाब पर है।
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार की सियासत इन दिनों चुनावी रंग में पूरी तरह रंग चुकी है। गलियों से लेकर गलीचों तक, चौपालों से लेकर चौक-चौराहों तक, हर ओर इंतख़ाबी जज़्बा अपने शबाब पर है। तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने अंदाज़ में ताबड़तोड़ प्रचार में जुटे हुए हैं। मगर इसी हलचल के बीच एक सीट ऐसी भी है, जो हर बार चर्चाओं के दरम्यान आकर भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए अब तक नामुराद साबित हुई है वह है किशनगंज विधानसभा सीट।
सीमांचल की यह ज़मीन बिहार की सियासत में एक अहम और प्रतीकात्मक हैसियत रखती है। यहां की आबादी में 60 फ़ीसद से ज़्यादा मुस्लिम मतदाता हैं, और यही वजह है कि 1967 से अब तक यहां सिर्फ़ मुस्लिम उम्मीदवारों ने ही फतह हासिल की है। महागठबंधन के मजबूत गढ़ माने जाने वाले इस जिले में 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए का खाता तक नहीं खुला था। चार सीटों में से तीन पर आरजेडी और एक पर कांग्रेस का कब्ज़ा रहा।
किशनगंज सीट पर कांग्रेस के कमहरूल होदा, मोहम्मद जावेद जैसे नेताओं का दबदबा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी ने पिछले डेढ़ दशक से एक ही नाम पर यकीन जताया है — स्वीटी सिंह। पूर्व विधायक सिकंदर सिंह की पत्नी और पेशे से वकील स्वीटी सिंह 2010 से लगातार इस सीट से पार्टी की उम्मीदवार रही हैं। यह उनका लगातार पाँचवाँ चुनाव है।
राजपूत बिरादरी से आने वाली स्वीटी सिंह ने अपने शुरुआती चुनावी सफ़र में ही अपनी पहचान जुझारू और सख़्त दिल उम्मीदवार के तौर पर बनाई। 2010 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के मोहम्मद जावेद को बस 264 वोटों से कड़ी टक्कर दी थी। यही नहीं, 2015 में भी वही मुकाबला दोहराया गया, और वह महज़ 8,609 वोटों से मात खा गईं।
2019 के उपचुनाव में उन्होंने एआईएमआईएम के कमहरूल होदा को कड़ी चुनौती दी, मगर हार का अंतर बढ़कर 10,204 वोटों तक पहुंच गया। फिर 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के इजहारूल हुसैन के ख़िलाफ़ आख़िरी पल तक संघर्ष किया, लेकिन नतीजा वही — हार, वो भी सिर्फ़ 1,381 वोटों के अंतर से।
कहा जा सकता है कि किशनगंज बीजेपी के लिए हार की चौखट और उम्मीद की झलक दोनों बन चुकी है। 47 वर्षीय स्वीटी सिंह का राजनीतिक सफर पंचायत से विधानसभा तक फैला हुआ है। 2006 में जिला परिषद सदस्य के तौर पर राजनीति में उतरीं, फिर परिषद अध्यक्ष बनीं और अब लगातार पाँचवीं बार विधायक पद के लिए मैदान में हैं। उनके पति सिकंदर सिंह ने 1995 में ठाकुरगंज सीट जीतकर बीजेपी के लिए इस ज़िले में पहला कमल खिलाया था।
अब 2025 के रण में हालात फिर दिलचस्प हैं कांग्रेस ने मौजूदा विधायक इजहारूल हुसैन का टिकट काटकर कमहरूल होदा को दोबारा मैदान में उतारा है। ओवैसी की एआईएमआईएम ने शम्स आगाज़ को उम्मीदवार बनाया है, जबकि बागी इसहाक आलम जन सुराज पार्टी से ताल ठोंक रहे हैं। कुल 10 प्रत्याशियों में स्वीटी सिंह अकेली महिला उम्मीदवार हैं जो इस चुनाव को और प्रतीकात्मक बना देता है।किशनगंज की जनता इस बार क्या फैसला सुनाएगी? क्या स्वीटी सिंह की पांचवीं कोशिश क़ामयाबी में तब्दील होगी, या बीजेपी को एक बार फिर हार की टीस झेलनी पड़ेगी? इस सवाल का जवाब 6 नवंबर की शाम मतपेटियों से निकलेगा, लेकिन फिलहाल इतना तय है सीमांचल की सियासत में किशनगंज इस बार भी सरगर्मियों के सिरमौर बनी रहेगी।