Bihar News : 'लाडला' CM नीतीश को एक फार्मूले ने बिहार में बना दिया 'छोटा भाई', जानिए किस मजबूरी में भाजपा को 21 मंत्री पद देने को तैयार हुई जदयू

बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले नीतीश कुमार की पार्टी जदयू अब छोटे भाई वाली भूमिका में है. मंत्रिमंडल विस्तार के बाद हुए फेरबदल ने जदयू के मुकाबले भाजपा को बड़ा भाई बना दिया जो एक खास फार्मूले के कारण हुआ.

Nitish
Nitish- फोटो : news4nation

Bihar News : बिहार में वर्ष 2005 से सत्ता की धुरी नीतीश कुमार के केंद्र में है. नीतीश चाहे एनडीए में हों या लालू यादव के साथ इन 20 वर्षों में हमेशा ही बड़े भाई की भूमिका में खुद को रखे हैं. लेकिन अब नीतीश की जदयू बिहार में भाजपा के सामने छोटे भाई की तरह हो गई है. 26 फरवरी को हुए मंत्रिमंडल विस्तार के बाद बिहार कैबिनेट में 7 नए मंत्रियों को शामिल किया गया है. संयोग से सभी मंत्री भाजपा कोटे से बने हैं जिसके बाद नीतीश कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या 36 हो गई है. कैबिनेट में अब 21 बीजेपी के मंत्री हैं जबकि नीतीश समेत जेडीयू से 13 मंत्री हैं. इसके अलावा जीतन राम मांझी की पार्टी 'हम' के एक मंत्री और निर्दलीय सुमित सिंह भी मंत्री हैं. मंत्रिमंडल विस्तार के बाद बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में दिख रही है.


बड़ा सवाल है कि इस वर्ष बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. उसके कुछ महीने पहले हुए इस मंत्रिमंडल फेरबदल में आखिर नीतीश कुमार कैसे भाजपा के सामने जदयू को छोटे भाई की तरह बनाने पर राजी हो गए? सियासी जानकारों के अनुसार यह सब एनडीए में पिछले वर्ष हुए एक फार्मूले के कारण हुआ है. जनवरी 2024 में जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़कर एनडीए संग सरकार बनाई थी तब विधायकों की संख्या के आधार पर यह फार्मूला तय हुआ था. अब इसी ने नीतीश की जदयू को बिहार में भाजपा के मुकाबले छोटा भाई बनने पर मजबूर कर दिया है. 


क्या था फार्मूला 

सूत्रों के अनुसार 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जेडीयू के 45 विधायक हैं. बीजेपी के अभी 80 विधायक हैं. दोनों दलों ने पिछले वर्ष ही तय किया था कि प्रति 3 से 4 विधायक पर एक मंत्री बनाया जाएगा. इस आधार पर जदयू के 13 मंत्री हैं जबकि सात नए मंत्रियों के शामिल होने पर भाजपा के अब 21 मंत्री हो गए हैं. चुकी यह पहले से तय था कि एमएलए की संख्या के अनुपात में मंत्रियों की संख्या तय होगी तो भाजपा के 21 और जदयू के 13 मंत्री ही अधिकतम बन सकते थे. 


कैसे कमजोर हुई जदयू 

नीतीश कुमार के लंबे संघर्ष का परिणाम था कि फरवरी 2005 के चुनाव ने लालू एंड फैमिली की बिहार की सत्ता से विदाई हो गई. अक्टूबर 2005 के चुनाव में 139 सीटों पर चुनाव लड़कर नीतीश कुमार की जेडीयू 88 सीटें जीतीं, जबकि राष्ट्रीय जनता दल 175 सीटों पर चुनाव लड़ी और मात्र 54 सीटें जीत पाई. बीजेपी भी आरजेडी से आगे ही रही. जेडीयू के साथ लड़ने वाली बीजेपी 102 सीटों पर लड़ी और 55 सीटें जीतीं. 2010 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार का जलवा और ज्यादा देखने को मिला और एनडीए को 243 में से 206 (जदयू 115 और भाजपा 91) सीटें मिली थीं. उन दोनों चुनावों के दौरान नीतीश कुमार की जदयू बिहार में भाजपा के मुकाबले बड़े भाई की तरह रही. 


हालांकि बाद में जदयू और भाजपा के रिश्तों में आए तकरार का बड़ा नुकसान नीतीश कुमार को उठाना पड़ा. राजद और जदयू ने 2015 में मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन नीतीश की पार्टी सिर्फ 71 सीटों पर जीत पाई. इसी तरह वर्ष 2020 में एनडीए में होने के बाद भी जदयू से सिर्फ 43 विधायक ही जीत पाए. ऐसे में इन दस वर्षों में नीतीश कुमार की पार्टी खुद-ब-खुद विधायकों के लिहाज से कमजोर होते गई और अब मंत्रिमंडल में भी भाजपा के मुकाबले छोटे भाई वाली भूमिका में है. 

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