Bihar Assembly Polls: सीमांचल में राजद का मुस्लिम-यादव समीकरण टूटा, महागठबंधन का इसकारण खिसका जनाधार

Bihar Assembly Polls: बिहार की सियासत में जिस महागठबंधन ने सत्ता में वापसी का ख़्वाब देखा था, हक़ीक़त में वही अपना सबसे बदतर प्रदर्शन कर बैठा।

सीमांचल में राजद का मुस्लिम-यादव समीकरण टूटा- फोटो : reporter

Bihar Assembly Polls: बिहार की सियासत में जिस महागठबंधन ने सत्ता में वापसी का ख़्वाब देखा था, हक़ीक़त में वही अपना सबसे बदतर प्रदर्शन कर बैठा। आरजेडी और कांग्रेस जैसी प्रमुख पार्टियाँ, जिनकी ताक़त कभी यादव-मुस्लिम  समीकरण माना जाता था, इस बार उन वोटरों का भरोसा भी बरक़रार नहीं रख सकीं। नतीजा यह हुआ कि जहाँ जीत के सपने बुने गए थे, वहीं खाता भी न खुला का शर्मनाक हाल देखने को मिला।

सबसे बड़ा सियासी झटका सीमांचल से आया  जहाँ मुस्लिम वोट एनडीए के ख़िलाफ़ मज़बूत दीवार माने जाते थे। 2015 में जहाँ 24 में 18 सीटें महागठबंधन के पास थीं, वहीं अब वे सिर्फ़ 5 पर रह गए। किशनगंज जैसे मुस्लिम बहुल जिले में तो महागठबंधन का खाता तक नहीं खुला। यह नतीजा बताता है कि मुस्लिम वोट बैंक अब बँट चुका है और आरजेडी-कांग्रेस से दूरी तेज़ी से बढ़ रही है।

2020 के चुनाव में 75 सीटें जीतने वाली आरजेडी इस बार 25 पर आकर सिमट गई यानी सीधे 50 सीटों का नुकसान! कांग्रेस भी 19 से घटकर सिर्फ़ 6 सीटों की मोहताज रह गई। छोटे सहयोगियों का प्रदर्शन तो और भी फीका रहा। जनता ने साफ़ संदेश दे दिया कि पुरानी जातीय समीकरणों की राजनीति अब काम नहीं आएगी।

दूसरी ओर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने फिर सीमांचल में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। जोकीहाट, बहादुरगंज, अमौर, बैसी और कोचाधामन  इन पाँच सीटों पर AIMIM का झंडा लहराया। यह साफ़ संकेत है कि मुस्लिम वोटर्स अब नए राजनीतिक विकल्पों को तरजीह देने लगे हैं।

एनडीए ने सीमांचल में इस बार 14 सीटें झटककर, अपने पुराने प्रदर्शन को पीछे छोड़ दिया और महागठबंधन को राजनीतिक ख़ालीपन का एहसास करा दिया। सबसे हैरतनाक बात यह कि जिस एनडीए का 2020 में 8 जिलों में खाता नहीं खुला था  इस बार महागठबंधन का 16 जिलों में सफाया हो गया। भोजपुर, नालंदा, भागलपुर और दरभंगा जैसे बड़े जिलों में भी एक सीट न मिली — यह किसी “बुरे सियासी ख्वाब” से कम नहीं।

बहरहास इतना तो स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति पुराने फ़ॉर्मूलों से नहीं चलेगी। MY समीकरण की पकड़ ढीली पड़ चुकी है और महागठबंधन के सामने अब भरोसा वापस जीतने की सबसे बड़ी चुनौती खड़ी है। चुनाव हार से ज़्यादा  जनाधार का गिरना है… यही असली डर है!