Bihar Vidhansabha Chunav 2025: मोकामा की सियासत में छोटे सरकार की गिरफ्तारी से किसे होगा फायदा, दुलारचंद की हत्या से चरम पर सियासी संग्राम, वोट क्यों होने लगा गोलबंद,राजद कैंप में क्यों मची है बेचैनी, पढ़िए पूरी स्टोरी

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: मोकामा की सियासत इन दिनों उबाल पर है। टाल के बाहुबली रह चुके दुलारचंद यादव की हत्या ने पूरे इलाके की फिज़ा बदल दी है।

मोकामा की सियासत में छोटे सरकार की गिरफ्तारी से किसे होगा फायदा- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025:  मोकामा की सियासत इन दिनों उबाल पर है। टाल के बाहुबली रह चुके दुलारचंद यादव की हत्या ने पूरे इलाके की फिज़ा बदल दी है। छोटे सरकार की गिरफ्तारी से सियासत उफान पर है। वारदात के 18 घंटे बाद जब उनका शव पोस्टमॉर्टम के लिए बाढ़ लाया गया, तो उस यात्रा को सियासी शक्ल दे दी गई। घोसवरी के तारतर गांव से बाढ़ तक निकली ये यात्रा कई भूमिहार बहुल इलाकों से गुज़री। ट्रैक्टर पर रखा शव और उस पर बैठी राजद कैंडिडेट वीणा देवी यानी सूरजभान सिंह की पत्नी सियासी प्रतीक बन चुकी थीं।

जैसे ही शवयात्रा पंडारक पहुंची, भीड़ का आक्रोश फूट पड़ा। नारों में अनंत सिंह और भूमिहार समाज को निशाना बनाया गया। सियासी गलियारों में अब यही चर्चा है कि इन नारों ने चुनावी समीकरण को पलट कर रख दिया है।राजद के लिए यह संवेदनाओं की राजनीति थी, मगर जमीन पर इसकी सियासी कीमत अब भारी पड़ती दिख रही है। क्योंकि शवयात्रा के दौरान फैली गालियों की गूंज अब मोकामा के हर मोहल्ले, हर चौपाल तक पहुंच गई है।स्थानीय लोग मान रहे हैं कि मोकामा विधानसभा में इस बार जातीय ध्रुवीकरण तेज़ हो गया है। भूमिहार वोटर्स तेजी से छोटे सरकार अनंत सिंह के पक्ष में लामबंद होने लगे हैं। जनसुराज के समर्थक इसे भावनात्मक लहर बता रहे हैं, जबकि राजद कैंप में बेचैनी है।

नाम न छापने की शर्त पर मोकामा के मोर बाजार के दुकानदार कहते हैं कि इस पूरे खेल में अनंत सिंह को फंसाने की साजिश रची गई है। दुलारचंद यादव खुद पत्थर चला रहे थे। अनंत सिंह तो वहां थे ही नहीं।वार्ड-3 के एक मतदाता का कहना है कि सूरजभान सिंह भूमिहार हैं, पर वो गलत पार्टी में हैं। तेजस्वी यादव को हम कभी अपना नेता नहीं मानते। अब जो भी वोट होगा, भावनाओं पर होगा।

शवयात्रा में जिस तरह भूमिहार समाज को निशाना बनाया गया, उसने पूरे समुदाय को एकजुट कर दिया है।नाम न छापने की शर्त पर कुछ लोगों ने बताया कि  रोष इस कारण है कि वीणा देवी उसी ट्रैक्टर पर थीं, जहां से गाली दी जा रही थी। यही बात अब भूमिहार वोट को पूरी तरह अनंत सिंह के पाले में खींच लाई है। एक स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं अब फिक्स है, जीत छोटे सरकार की ही होगी। अनंत सिंह का अपना एक वोट बैंक है, जो अब और मजबूत हुआ है।”

मोकामा में इस वक्त तीन ध्रुव बन चुके हैं अनंत सिंह, राजद कैंडिडेट वीणा देवी, और जनसुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी। हालांकि इस बार मैदान और ज्यादा जटिल है। भूमिहार वोट 30 फीसदी से ज्यादा है, और अगर ब्राह्मण व राजपूत जुड़ जाएं तो सवर्ण आबादी 40 फीसदी पार कर जाती है। यादव करीब 20 फीसदी, धानुक 25 फीसदी, और बाकी दलित-मुस्लिम मिलाकर 30 फीसदी वोट हैं।

यानी समीकरण पूरी तरह जाति और भावनाओं की बुनियाद पर खड़ा है। धानुक और यादव को जोड़ने की कोशिश राजद कर रही है, मगर भूमिहार ध्रुवीकरण ने तस्वीर बदल दी है। कथित तौर पर दुलालचंद से धानुक खुश नहीं थे, इससे वोट के धुव्रीकरण हो सकते हैं।

नाम न छापने की शर्त पर पासवान समुदाय के एक मतदाता साफ कहते हैं कि अनंत सिंह सबके नेता हैं। यहां कोई जात-पात नहीं, बस छोटा सरकार है और नीतीश कुमार हैं।राजद और जनसुराज दोनों कोशिश में हैं कि इस भावनात्मक ज्वार को विकास की बहस में बदला जाए, मगर अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद चुनावी हवा फिलहाल छोटे सरकार के नाम से बह रही है।

दुलारचंद यादव की हत्या अब सिर्फ एक अपराध की कहानी नहीं रही। यह मोकामा की राजनीति का टर्निंग पॉइंट बन चुकी है। अनंत सिंह की गिरफ्तारी  और  शवयात्रा की गालियों से उपजी जातीय रेखाएं अब वोट की दीवार बन गई हैं। सवाल सिर्फ इतना है कि क्या यह लहर अनंत सिंह को सत्ता की चौखट तक पहुंचा देगी, या सूरजभान सिंह इस सियासी आग में खुद झुलस जाएंगे।