बिहार का बोधगया जहां भगवान बुद्ध को हुई थी ज्ञान की प्राप्ति, जनिए मंदिर से जुड़ी कई रोचक जानकारियां...
GAYA: बिहार के गया में स्थिति महाबोधि मंदिर विश्व में प्रसिद्ध है। यहां दूर दूर से बौद्ध अनुवायी आते हैं। 2002 में महाबोधि मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी थी। आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी कई रोचक बातें। दरअसल, गया जिले से सटे 10 किलोमीटर की दुरी पर नीलांजना नदी के तट पर पश्चिम दिशा में स्थित महाबोधि मंदिर है। इस मंदिर का लगाव सीधे तौर पर भगवान बुद्ध से है।
महाबोधि मंदिर का इतिहास
बोधगया का महाबोधि मंदिर सबसे प्राचीन बौद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण सम्राट अशोक ने 260ईसा पूर्व,तीसरी शताब्दी मे की थी। इसके बाद कई बार मंदिर स्थल का विस्तार और पुनर्निमार्ण किया गया। मंदिर के अंदर भगवान बुद्ध की सोने की मूर्ति है। जहां भगवान बुद्ध भूमिस्पर्श मुद्रा में हैं। बोधगया वह स्थान है, जहां भगवान बुद्ध को कठिन तपस्या से ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, इसलिए बौद्ध भिक्षुओं के लिए बोधगया को दुनिया का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि करीब 531 ईसा पूर्व में यहां नीलांजना नदी के किनारे गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने पवित्र बोधि वृक्ष के शीतल छाव में बैठकर 49 दिनों के कठोर तपस्या की थी।
पीपल के वृक्ष के नीचे हुई ज्ञान की प्राप्ति
बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में एक पीपल का वृक्ष है इसी वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बोधि का अर्थ ज्ञान होता है, और वृक्ष का अर्थ पेड़ है, इसलिए इस वृक्ष को ज्ञान का पेड़ कहा जाता है और बोधगया को ज्ञान की भूमि कहा जता है। भगवान बुद्ध को बोधगया में इसी वृक्ष के पास ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, इसलिए यहां बुद्ध के अनुयायी और बौद्ध धर्म को मानने वाले विशेष लगाव है। इसके अलावा अन्य धर्मों के लोग यहां पूजा लिए और प्राचीन पर्यटन स्थल को देखने के लिए बोधगया आते हैं। मंदिर के उत्तर भाग के बीच में अनिमेश लोचन चैत्य है। जहां भगवान बुद्ध ने अपना दूसरा सप्ताह बोधि वृक्ष को एकटक देखते हुए बिताया। मंदिर की उत्तरी दीवार के पास रत्न चक्रमा है, जहां भगवान बुद्ध ने अपना तीसरा सप्ताह बिताया।
जहां रखते कदम वहां खिलता कमल
भगवान ने जहां-जहां कदम रखें वहां कमल खिल गए। भगवान बुद्ध ने अपना चौथा सप्ताह रतनगढ़ या रत्नाघर चैत्य नामक स्थान पर बिताया, जिसे ज्वेल हाउस कहते हैं। कहा जाता है कि इस दौरान बुद्ध के शरीर से छह रंगों की किरणें निकली थी। बौद्ध अनुयायी ने इन्हीं रंगों को अपना झंड़ा बनाया। भगवान बुद्ध का पांचवा सप्ताह पूरब की ओर अजपाला निग्रोध वृक्ष के नीचे बीताया था यहां पत्थर का एक स्तंभ है जो अजपता वृक्ष का प्रतीक है। भगवान बुद्ध ने अपना छठा सप्ताह मंदिर परिसर के दक्षिण में स्थित कमल के तालाब या मूचलिंम सरोवर के पास बिताया। इस सरोवर के भीतर भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित है जिसकी रक्षा करते हुए फन फैलाए हुए एक सर्प है। भगवान बुद्ध के अपना सातवां सप्ताह मंदिर के दक्षिण-पूर्व में स्थित राजयाताना वृक्ष के नीचे बिताया।
महाबोधि मंदिर के बारे में विशेष जानकारी
महाबोधि मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट पत्थरों द्वारा किया है। इस मंदिर की दीवारों पर मां लक्ष्मी, हाथी, मोर,फूलों का चित्र मौजूद हैं। महाबोधि मंदिर के पश्चिम में एक विशाल पीपल का वृक्ष है, जिसे बोधि वृक्ष कहा जाता है। कहा जाता है कि सम्राटअशोक की बेटी संघमित्रा धर्म प्रचार के लिए बोधगया से बोधिवृक्ष की एक शाखा श्रीलंका ले गई थी। जिसे उन्होंने अनुराधापुर शहर में लगा दिया।
बोधगया से संतोष कुमार की रिपोर्ट