मशीनों से तैयार कपड़े के सामने दम तोड़ रही हाथों से बुने गए खादी के कपड़े, अनदेखी के कारण बिहपुर के कई गांवों में बुनकर अपना पेशा बदलने को हुए मजबूर
NAUGACHHIA : भारत की आजादी एवं देश की उन्नति में बुनकर समाज का अहम योगदान रहा है ।जो खादी आज केवल और केवल राजनेता के वर्दी मात्र के रुप में उपयोग किए जा रहे हैं कभी यह गरीबों के तन ढ़कने का साधन हुआ करते थे । आज खादी को तैयार करने वाले बुनकर समाज हाशिये पर खड़ा है । एक समय था जब हर घर में चरखा हुआ करते थे । रुई आसानी से खादी भंडार में उपलब्ध हो जाया करते थे । घर का कामकाज निपटाने के बाद घर की औरतें चरखा लेकर बैठ जाती थी । कुछ घंटे चरखा चला कर धागे तैयार कर लेती । इन धागों के बदले खादी भंडार से कुछ पैसे मिल जाते थे । इन पैसों को जमा कर औरतें बहुत सारे काम खुद कर लेती। खुद को आत्मनिर्भर समझती थी। ये धागे बुनकर समाज को मिलते तो उससे कपड़े तैयार किये जाते थे । खादी भंडार से ये कपड़े महिलायें सस्ते दामों में खरीद लाते। समय बदल गया। पहले रुई मिलने बंद हुए जिससे महिलाओं का रोज़गार बंद हो गये । फिर बुनकरों को खुद से धागे भी तैयार करने पड़ गए । आयुनिक युग का समावेश हुआ । अब धागे और कपड़े मशीनो से तैयार किये जाने लगे । इन मशीनों की कीमत अधिक होने के कारण कुछ पूंजीपतियों का यह धंधा बन गया । गरीब बुनकर बेरोजगार होने लगे ।
बिहपुर विधान सभा के कई गाँव बुनकर विहीन हो गए । औलिया ,मिलकी , झंडापुर , मिरजाफरी आदि गाँव के कई बुनकरों ने खादी से तौबा कर ली । वर्षो बाद सरकार की नज़र इन बुनकरों पर सरकार की नज़र गई । कुछ हद तक मदद तो की गई पर बुनकर समाज के लिए ये काफी नही था । फिर सरकार इन बुनकर समाज को भूल गई । कुछ बुनकर परिवार आज भी मिरजाफरी और मिलकी जैसे गाँव में खादी कपड़ों के रोज़गार से जुड़े हुई हैं । इन बुनकर समाज को किसान की तरह कभी देखा हीं नही गया । अब कपड़े मशीनों से तैयार होते हैं । किसानों की तरह इन्हें बिजली आदि पर सब्सिडरी तो मिलती नही है । ऐसे में यहाँ के कपड़े मंहगे होते चले गए । अब खादी जो गरीबों का वस्त्र था राजनेताओं या यूँ कहें की अमीरों का पोषाक बन गया । आम आदमी के पहुंच से खादी दूर हो गया ।
धीरे-धीरे छीनता चला गया काम
पहले महिलाओं का रोज़गार गया । फिर मज़दूरों का काम गया । फिर बुनकर समाज की दुर्गती हुई । फिर आम आदमी से खादी दूर हुआ । यदि इन बुनकर समाज को देश के किसानों की तरह तरज़ीह दी जाती तो बेशक किसानों को रुई की कीमत,महिलाओं को रोज़गार, कामगारों को काम और बुनकर समाज का उत्थान संभव होता । समाज के साथ बुनकर समाज का अन्योमयाश्रय का संबंध बना रहता । पर सरकार की सारी योजनाएँ केवल उद्योगपतियों पर जाकर हीं समाप्त हो जाती हैं । यदि केवल बुनकर समाज के उत्थान और खादी पर विशेष जोड़ दिया जाता तो वेशक देश की आर्थिक स्थिति में बदलाव आता । यदि हर घर तक ये सूत काटने की मशीन सब्सिडरी पर ही सही पर उपलब्ध करवा दी जाती और बिजली के उपयोग पर तमाम बुनकरों को बिजली की सब्सिडरी मिलती तो ये खादी दम तोड़ती नज़र नही आती ।
सरकार से मदद की उम्मीद
बुनकर समाज आज हाशिये पर खड़ा होकर जीर्णोद्धार की दुहाई देता नज़र आता है, पर इस पर किसी की आह तक नही पहूँच पाती हैं । खादी कपड़ों का विदेशों में बोलबाला होता अमेजन फ्लिपकार्ट और शॉपिंग मॉल में ये कपड़े सुगमता से सस्ते दामों में उपलब्ध होता तो शायद ही कोई जिंस जैसे कपड़ों की ओर आकर्षित होते ।
श्रीलंका या बंग्लादेश जैसी स्थिति भारत का भी होने से इंकार नही किया जा सकता है । इन दोनों देश में रोजगार की संभावना कम होने से ये स्थिति बनी इससे इंकार नही किया जा सकता है । देश के विकास के कुटीर उद्योग का होना बेहद जरुरी है । बड़े उद्योग जहाँ कुछ लोगों को काम देते हैं वहीं प्रदूषण को भी निमंत्रण देते हैं । जरा गौड़ से देखें तो ये बुनकर समाज एक ऐसा उद्योग देते हैं जहाँ प्रदूषण शून्य देते हैं । सरकार को डूबते खादी उद्योग को एकबार जागृत करने की आवश्यकता है ।
बिहपुर से कुमार धनंजय सुमन की रिपोर्ट