नर्वस हैं नीतश या अंदर अंदर कुछ चल रहा खेल? अपनों पर भी नहीं है पूरा भरोसा, कभी शंका तो कभी छापेमारी! परेशान सुशासन बाबू क्यों कर रहे इस तरह की हरकत!

पटना- मुख्यमंत्री अचानक जदयू कार्यालय पहुंचे तो सियासी गलियारे में चर्चाओं का दौर शुरु हो गया.कयासों के बाजार गर्म हैं. सवाल होने लगा कि क्या जदयू में सब कुछ ठीक चल रहा है? ये सवाल इसलिए उठ रहे कि  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रदेश जदयू कार्यालय में औचक पहुंच जाते हैं. पार्टी दफ्तर में  शीर्ष नेता गायब मिलते हैं. नीतीश के सबसे विश्वसनीय ललन सिंह, संजय गांधी,और उमेश कुशवाहा गायब मिले.

उमेश कुशवाहा आए तो नीतीश कुमार ने पूछा चैंबर में नहीं थे? जवाब मिला कि आप ही के स्वागत के लिए गेट पर चले गए थे. राष्ट्रीय  ललन सिंह के बारे में पूछा तो बताया गया कि वे घर से निकल रहे हैं. नीतीश ने फोन से ललन सिंह से बात की.संजय गांधी के बारे में पता चला कि वे  पूजा कर रहे हैं, फिर उनसे भी नीतीश ने बात किया. नीतीश कुमार जहां विपक्षियों को एक करने के बड़े मुहिम में जुटे हैं वहीं अचानक प्रदेश कार्यालय आना संकेत करता है कि वे पार्टी के हालात को देखना चाहते थे. पार्टी के तीन बड़े नेता गायब मिलते हैं, नीतीश को ये डर न सता रहा हो कि विपक्षियों को एक करने की मुहिम में कहीं उनकी पार्टी हीं न बिखर जाए. नीतीश का कभी किसी सवाल के जवाब में किसी नेता से कान में बात करना,मत्रियों के घर अचानक पहुंच जाने को लेकर भी कयास लग रहे हैं. सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि सीएम नेताओं से पूछते है कि पार्टी में रहिएगा न? पार्टी नेताओं को लेकर कहीं शंका तो नहीं कर रहे नीतीश. 

पार्टी दफ्तर में पत्रकारों के सवाल के जवाब में नीतीश ने  राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद  के बयान इंडिया महागठबंधन में  पांच संयोजक बनेंगे का खंडन कर दिया. नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के बयान को काटते हुए सीधे-सीधे कहा ये अभी तय नहीं है. यह मुंबई की बैठक में तय होगा. जबकि लाल प्रसाद के बयान के बाद यह चर्चा होने लगी है कि पांच संयोजक होंगे और एक संयोजक मंडल का अध्यक्ष. पर नीतीश कुमार ने साफ कहा कि यह अभी तय नहीं है. मुंबई में होने वाली बैठक में सब तय होगा.वहीं बिहार की सत्ता नीतीश को सौंपने के लिए लगातार आवाज उठ रही है.राजद की ओर से बार बार इस पर जोर दिया जाता है कि तेजस्वी के हाथों में बिहार सौंप कर नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति संभालें. ऐसे में पार्टी का मजबूत होना कितना जरुरी है ये नीतीश के अचानक पार्टी ऑफिस पहुंचने से अंदाजा लगाया जा सकता है.

नीतीश को अपने नेताओं पर हीं विश्वास नहीं है! इसके कारण भी हैं, आरसीपी प्रकरण अभी आप भूले नहीं होंगे,कुशवाहा के पार्टी छोड़ने का कारण याद कीजिए,याद कीजिए राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश प्रकरण को, नीतीश कुमार ने जब भाजपा गठबंधन को छोड़कर महागठबंधन से रिश्ता जोड़ा और प्रदेश में सरकार बनाई, उसी समय हरिवंश नारायण को नैतिकता के आधार पर उप सभापति के पद से इस्तीफा देते. नीतीश कुमार उनसे स्वत: निर्णय की उम्मीद लगाए बैठे थे, ऐसा नहीं कर हरिवंश नारायण ने नीतीश कुमार की उम्मीद को झटका दिया.नए सदन भवन के उद्धाटन सत्र का जब जनता दल यू ने बहिष्कार किया तब भी नीतीश कुमार चाहते थे कि हरिवंश नारायण भी सदन के उद्धाटन सत्र का बहिष्कार करें,हरिवंश नारायण अपनी उप सभापति की भूमिका के साथ खड़े हुए और वह न केवल नए सदन भवन के उद्धाटन समारोह में भाग लिया बल्कि संबोधन भी किया.दिल्ली विधेयक पर नीतीश कुमार चाहते थे कि हरिवंश नारायण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के विरोध में और दिल्ली विधेयक के पक्ष में वोट करें पर हरिवंश नारायण ने नीतीश कुमार को हैरान परेशान किया. दिल्ली विधेयक के दिन सत्र में बैठे रहे और जब वोटिंग की बारी आनेवाली थे वह सभापति की कुर्सी पर विराजमान होकर खुद को जदयू सांसद की स्थिति से दूर होकर उप सभापति की भूमिका में आ गए और पद की नैतिकता के साथ खड़े रहे.हरिवंश मामले में नीतीश की बेबसी समझी जा सकती है. यह बात किसी से छुपी नहीं है कि हरिवंश को कुर्सी तक नीतीश ने हीं पहुंचाया. 

पार्टी दफ्तर में नीतीश का औचक नीरीक्षण राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है. खास कर तब, जब उनके सबसे करीबी राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा और उनके सबसे विश्वसनीय संजय गांधी उस औचक निरीक्षण के दौरान प्रदेश कार्यालय में नहीं मिले.

ऐसे में जदयू के अंदखाने में कुछ पक रहा है जिसकी जानकारी नीतीश तक पहुंच गई हो, इस शंका के निवारण के लिए उन्होंने पार्टी दफ्तर पर अचानक छापा मारा,ये कयास लग रहे हैं. बहरहाल जो भी हो इतना तो तय है कि नीतीश ने जिन्हें शीर्ष तक पहुंचाया वे उनके साथ नहीं रहे,इससे शंका होना लाजमी भी है. परेशान नीतीश इसका क्या हल निकालते हैं ये आने वाला समय बताएगा,क्योंकि नीतीश राजनीति के मांजे हुए खिलाड़ी हैं, ऐसे में पार्टी ऑफिस जाने को हल्के में नहीं लिया जा सकता.