आखिर क्यों कांग्रेस नरेंद मोदी बनाम राहुल गांधी के सीधी लड़ाई से बचना चाहती है...सियासी पर्दे के पीछे इस बड़े खेल की इनसाइड स्टोरी पढ़िए...कौन किस पर कितना भारी?

पटना दिल्ली -- लोकसभा चुनाव का महासमर शुरु होने में चंद महीने शेष हैं.राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी की बहस तेज हुई तो कांग्रेस असहज हो गई. ऐसे में पार्टी ने इस बहस को थामने की कोशिश शुरू कर दी. मोदी पर एक झटके से आक्रामक होने के बजाय कांग्रेस ने सतर्कता के साथ उन पर निशाना साधकर उनकी राष्ट्रीय प्रभाव को कम करने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया. राहुल गांधी कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. भारत जोड़ो यात्रा निकालकर वह अपनी क्षमता को भी साबित कर चुके हैं. सड़क से लेकर संसद तक वह लगातार सरकार या यूं कहें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सीधी लड़ाई भी लड़ते हुए नजर आ रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद न तो उनकी अपनी पार्टी और न ही उनके गठबंधन के सहयोगी दल यह चाहते हैं कि 2024 की लड़ाई मोदी बनाम राहुल की लड़ाई बन जाए.

कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन में शामिल  राजनीतिक दल का नेता अपने आपको प्रधानमंत्री पद का दावेदार मान कर चल रहा है इसलिए वे नहीं चाहते कि राहुल गांधी उनका नेतृत्व करें.1998 में एनडीए गठबंधन के नेता के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक वोट से सरकार गिरने के बाद 1999 के लोकसभा चुनाव को भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी बनाम कौन का चुनाव बना दिया और गठबंधन का नेतृत्व करने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी इस लड़ाई में सब पर भारी पड़े.

 2004 के लोकसभा चुनाव में महज कुछ सीटों के अंतर से भाजपा को पछाड़ कर सहयोगी दलों के साथ मिल कर यूपीए की सरकार बनी और सोनिया गांधी पर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने का आरोप लगा. 2009 का लोकसभा चुनाव लालकृष्ण आडवाणी के आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान के कारण मनमोहन बनाम आडवाणी का चुनाव बन गया और और इस चुनाव में आडवाणी पर मनमोहन सिंह भारी पड़ गए और दस साल सत्ता पर काबिज रहे. 2014 के लोक सभा चुनाव के नतीजों के साथ 1984 के लोक सभा चुनाव के 30 साल बाद जनता ने किसी दल को पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का जनादेश दिया. 2019 में एक तरफ जहां भाजपा ने ऐतिहासिक जीत हासिल की तो वहीं कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी को अपनी पारंपरिक लोकसभा सीट अमेठी से भी हार का सामना करना पड़ा. स्मृति इरानी ने राहुल को अमेठी में धुल चटा दिया. 

उसके बाद से ही कांग्रेस मोदी बनाम राहुल के चुनावी रण बचने की कोशिश करती रही है. जबकि भाजपा अपने लिए मोदी बनाम राहुल की चुनावी लड़ाई के लाभदायक मानते हुए हर चुनाव को इसी रास्ते पर ले जाने की कोशिश करती नजर आती है. इंडिया गठबंधन की पहली बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि पीएम पद के दावेदार पर चुनाव के बाद चर्चा होगी का बयान दे कर मोदी बनाम राहुल को चुनावी रण बनाने से रोकने की कोशिस की थी. 

एक सर्वे में मोदी सबसे लोकप्रिय पसंद बने हुए हैं और 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में अपनी शीर्ष पसंद के रूप में चुना है. 10 से 19 मई के बीच 19 राज्यों में किए गए सर्वेक्षण में दावा किया गया कि लगभग 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को लगातार तीसरी बार जीतना चाहिए, जबकि 38 प्रतिशत ने इसके विपरीत प्रतिक्रिया दी.केवल 27 प्रतिशत लोगों ने राहुल भारत के अगले प्रधान मंत्री के रूप में देखा, इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि कुछ महीने पहले उन्होंने जो भारत जोड़ो यात्रा की थी, उसने उनके पक्ष में काम किया है. सर्वेक्षण के अनुसार, 25 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने मोदी को उनके वक्तृत्व कौशल के लिए बहुत सम्मान दिया, 20 प्रतिशत ने एक प्रधान मंत्री के रूप में विकास पर पीएम के फोकस की सराहना की.अगले प्रधान मंत्री की पसंद के रूप में, राहुल भले ही मोदी से पीछे रह गए हों, लेकिन स्पष्ट रूप से विपक्ष के अन्य सभी चेहरों के बीच भारी अंतर से सबसे लोकप्रिय विकल्प के रूप में उभरे हैं,इसमें संदेह नहीं है. 

दरअसल, साल 2024 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए एक सवाल पैदा करता है कि कांंग्रेस किसके नेतृत्व में आम चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ही हैं. लेकिन अगर राहुल गांधी को पीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया जाता है तो मुकाबला राहुल बनाम मोदी का हो जाएगा. जो भाजपा के पक्ष में और कांग्रेस के खिलाफ जा सकता है इसका नतीज 2019 में देखा जा चुका है. हालांकि कांग्रेस का दावा है कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद कई राज्यों खासकर दक्षिण में राहुल गांधी के पक्ष में माहौल बन गया है. कांग्रेस इसको कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों से भी जोड़ रही है.  इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के साथ खड़े राजनीतिक दल भी इसे बखूबी समझते हैं कि लड़ाई मोदी बनाम राहुल नहीं होनी चाहिए. शत्रुघ्न सिंहा का ममता को पीएम मेटेरियल बताने वाला बयान भी इससे जोड़ कर देख सकते हैं.

लोकसभा के चुनावी युद्ध की रणभेरी बजने में कुछ माह शेष हैं और संभावित गठबंधनों ने आकार ले लिया है. जैसे-जैसे  2024 में लोकसभा चुनाव के करीब पहुंच रहे हैं, यह सबसे बड़ा सवाल होगा कि अगले पांच वर्षों तक सरकार पर शासन कौन करेगा और सबसे बड़ा सवाल अभी यहीं है कि क्या लोकसभा चुनाव 2024 मोदी बनाम राहुल होगा.