अब श्रीमति के सरनेम से जाने जाएंगे श्रीमान, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, वर्षों पुराना कानून खत्म, जानिए पूरी खबर
Supreme Court Decision: शादी के बाद अब पत्नी ही नहीं पति भी अपनी पत्नी का सरनेम अपना सकेंगे। यह ऐतिहासिक फैसला सुप्रीम कोर्ट ने लिया है। कोर्ट ने वर्षों पुरानी कानून को खत्म कर इस फैसले को लिया है।
Supreme Court Decision: आम तौर पर शादी के बाद पत्नी अपने पति के सरनेम से जानी जाती है। शादी के बाद यदि पति का सरनेम शर्मा है और पत्नी का वर्मा है तो पत्नी वर्मा नहीं बल्कि शर्मा सरनेम से जानी जाती है। लेकिन अब ऐसे नहीं होगा अब पति भी वर्मा सरनेम को अपना सकेंगे। जी हां सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद अब पति अपनी पत्नी का सरनेम अपना सकेंगे। कोर्ट ने इस ऐतिहासिक फैसले के साथ ही ना सिर्फ वर्षों पुरानी परंपरा को खत्म की है बल्कि कानून को भी खत्म कर दिया है। दरअसल, यह ऐतिहासिक फैसला दक्षिण अफ्रीका की सर्वोच्च न्यायालय ने सुनाया है।
पुरुष भी अपना सकेंगे पत्नी का सरनेम
वहीं सर्वोच्च अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसले के बाद अब पुरुष भी अपनी पत्नी का सरनेम अपना सकते हैं। इस ऐतिहासिक फैसले के साथ अदालत ने उस पुराने कानून को खारिज कर दिया, जो अब तक पुरुषों को ऐसा करने से रोकता था। यह निर्णय दो दंपतियों की याचिका पर आया, जिसमें हेनरी वान डर मवें को अपनी पत्नी जाना जोडॉन का सरनेम लेने से रोका गया था और एंड्रियास निकोलस बॉर्नमैन को अपनी पत्नी जेस डोनेली बॉर्नमैन का उपनाम अपने नाम के साथ जोड़ने की अनुमति नहीं दी गई थी। अदालत ने माना कि यह कानून औपनिवेशिक दौर में बनाया गया था और यह लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देता है।
इन देशों में पहले से लागू है नियम
इस ऐतिहासिक फैसले को लागू करने के लिए अब संसद को ‘बर्थ्स एंड डेथ्स रजिस्ट्रेशन एक्ट’ और उससे जुड़े नियमों में संशोधन करना होगा। अदालत ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि अफ्रीकी परंपराओं में शादी के बाद महिलाएं अपना जन्म सरनेम ही रखती थीं। पति का सरनेम अपनाने की प्रथा बाद में रोमन-डच कानून से आई और समय के साथ परंपरा में बदल गई।
अदालत ने क्या कहा?
अदालत ने माना कि यह प्रावधान भेदभावपूर्ण है क्योंकि महिलाओं को विवाह के बाद पति का उपनाम अपनाने की अनुमति है, लेकिन पुरुषों को वही अधिकार नहीं मिलता। न्यायमूर्ति लियोना थेरॉन ने अपने फैसले में कहा कि यह परंपरा औपनिवेशिक दौर की देन है, जो पितृसत्तात्मक सोच को बढ़ावा देती है और संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन करती है।
भारत में अलग कानून
दुनिया के कई देशों में पुरुषों को पत्नी का सरनेम अपनाने का अधिकार पहले से ही हासिल है। अमेरिका में यह अधिकार है, हालांकि कुछ राज्यों में इसके लिए अदालत का आदेश आवश्यक होता है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी पुरुष अपनी पत्नी का उपनाम रख सकते हैं। पुर्तगाल ने 1977 में यह अधिकार दिया था, लेकिन वहां यह आम प्रथा नहीं है और इसके लिए आपसी सहमति जरूरी होती है। हालांकि भारत की स्थिति इससे अलग है। यहां शादी के बाद महिला को पति का सरनेम अपनाना अनिवार्य नहीं है। वह चाहे तो अपना मायके वाला सरनेम रख सकती है, पति का सरनेम ले सकती है या फिर दोनों का ‘हाइफ़नेटेड’ सरनेम चुन सकती है।