Ayodhya: अयोध्या और सरयू, एक पवित्र बंधन,जो आस्था, संस्कृति और सनातन परंपरा का है प्रतीक, जानिए कैसे
Ayodhya: सरयू नदी केवल जलधारा नहीं, बल्कि भावनाओं की धारा है। यह उत्तर दिशा में बहती है और अयोध्या को गोद में समेटे हुए सदियों से इसकी गरिमा बढ़ाती रही है। रामचरित मानस, वेदों और पुराणों में इस नदी का अत्यंत महत्व बताया गया है।

Ayodhya: अयोध्या एक ऐसा नाम जो केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं के हृदय में बसी आस्था का केंद्र है। यह नगरी सनातन धर्म की आत्मा में समाई हुई है और इसकी पहचान उससे होकर बहने वाली पावनी सरयू नदी से है। 'जन्मभूमि मम पूरी सुहावनि, उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।जा मज्जन ते बिनहीं प्रयासा, मम समीप नर पावहीं बासा। .यह पंक्ति केवल एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि अयोध्या की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का सार है।
सरयू नदी केवल जलधारा नहीं, बल्कि भावनाओं की धारा है। यह उत्तर दिशा में बहती है और अयोध्या को गोद में समेटे हुए सदियों से इसकी गरिमा बढ़ाती रही है। रामचरित मानस, वेदों और पुराणों में इस नदी का अत्यंत महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि इस नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।प्रभु श्रीराम स्वयं इस नदी से जुड़े हैं ।उनका जीवन, लीलाएं, वनगमन और अंत समय सभी कहीं न कहीं सरयू से जुड़े हुए हैं। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा:"जा मज्जन ते बिनहीं प्रयासा। मम समीप नर पावहीं बासा।।"यानी जो सरयू में स्नान करता है, वह बिना विशेष प्रयास के ही भगवान के समीप स्थान प्राप्त कर सकता है।
अयोध्या भारत के प्राचीन सप्तपुरियों में से एक है, जिन्हें मोक्षदायिनी नगरी कहा गया है। यह वह स्थान है जहाँ भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम का जन्म हुआ। श्रीराम का नाम जितना पूज्य है, उतना ही पूज्य है उनका जन्मस्थान है अयोध्या।
अयोध्या में सुबह की शुरुआत सरयू तट पर भगवान भाष्कर को जल अर्पित करने से, जहाँ सूर्य की पहली किरणों में नदी का जल सुनहरा चमकता है। घाटों पर मंत्रोच्चार, शंखध्वनि का अलौकिक अनुभव विरले लोगों को हीं होता है।
फिर दिन में रामलला के दर्शन, हनुमानगढ़ी की सीढ़ियों से होते हुए मंदिरों की परिक्रमा, और शाम को सरयू आरती। ऐसा लगता है संपूर्ण जीवन धन्य हो गया हो।बहरहाल अयोध्या केवल एक नगर नहीं, एक जीवित आस्था है।अयोध्या और सरयू एक-दूसरे के पर्याय हैं। एक बिना दूसरे की कल्पना अधूरी है। अयोध्या की पहचान सरयू है, और सरयू का गौरव अयोध्या से है। यह नगर आज भी उतना ही जीवंत है जितना त्रेतायुग में था। इसकी हर गली, हर घाट, हर मंदिर में श्रीराम का नाम गूंजता है। यहां के अलौकिकता का अनुभव पुण्यवान हीं कर सकते हैं।
यह माना जाता है कि दीपदान करने से व्यक्ति की यात्रा का मार्ग सदैव उज्ज्वल रहता है। सरयू श्रीराम के जन्म का साक्षी हैं,उन्हें अपने किनारे पर खेलते हुए देखा है और बड़े होते हुए देखने का अनुभव भी किया है। मां सरयू ने प्रभु राम का विवाह और संस्कार भी देखा है। इसके अलावा, सरयू ने राम को अयोध्या को छोड़ते और विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटते हुए भी देखा है।
स्कन्द पुराण के अनुसार जो व्यक्ति सरयू में स्नान कर दीप दान करता है, वह अपने प्रारब्ध के फल से मुक्त हो जाता है और श्रीराम के स्वरूप को धारण कर श्रीराम की कृपा प्राप्त करता है।
'अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी, मम धामदा पूरी सुख रासी।हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी, धन्य अवध जो राम बखानी।'
अयोध्या का दर्शन जीवन भर की श्रद्धा की पूंजी है।अयोध्या सिर्फ एक नगर नहीं, एक आस्था है, एक दर्शन है जिसे स्वयं भगवान राम ने अपने श्रीमुख कहा है।
अयोध्या से कौशलेंद्र प्रियदर्शी की रिपोर्ट