रामनगर विधानसभा सीट: बीजेपी का गढ़ या बदलते राजनीतिक समीकरणों की जमीन?

ramnagar assembly seat

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियों के बीच वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र की रामनगर विधानसभा सीट एक बार फिर सुर्खियों में है। यह सीट, जो 2008 में हुए परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित की गई, लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का अजेय किला मानी जाती रही है। लेकिन इस बार की चुनावी फिजा कुछ अलग नजर आ रही है।

1990 से 2020 के बीच हुए आठ विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सात बार जीत दर्ज की है। इस दौरान पार्टी की सबसे प्रभावशाली नेता रहीं भागीरथी देवी, जिन्होंने 2010, 2015 और 2020 में लगातार तीन बार रामनगर से जीत हासिल की। लेकिन 2020 के चुनाव नतीजों ने भाजपा के लिए एक चेतावनी की घंटी भी बजाई। भागीरथी देवी ने भले ही 15,796 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की, लेकिन उनका वोट प्रतिशत 2015 के 48.05% से घटकर 2020 में सिर्फ 39.57% रह गया।

रामनगर की राजनीति सिर्फ पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि जातीय समीकरणों पर भी टिकी होती है। यहां राजपूत समुदाय पारंपरिक रूप से प्रभावशाली रहा है, हालांकि सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसके अलावा ब्राह्मण, वैश्य, यादव, मुस्लिम और दलित समुदायों की भी यहां महत्वपूर्ण मौजूदगी है। दोन क्षेत्र में रहने वाले थारू और आदिवासी मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं, लेकिन अब तक ये वोट अक्सर विभाजित रहे हैं।

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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि दलित और आदिवासी मतदाता किसी एक पार्टी के पक्ष में एकजुट हो जाएं, तो रामनगर का चुनावी परिदृश्य पूरी तरह से बदल सकता है। जहां भाजपा को अपने पारंपरिक गढ़ को बचाने की चुनौती है, वहीं विपक्ष इस सीट को अब "अभेद्य किला" नहीं, बल्कि "अवसर की भूमि" के तौर पर देख रहा है। दलित और आदिवासी समूहों में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता ने भी विरोधी दलों को यहां नई ऊर्जा दी है। 2025 का चुनाव यह तय करेगा कि रामनगर भाजपा के नियंत्रण में बना रहेगा या फिर यह सीट एक नए राजनीतिक अध्याय की गवाह बनेगी। बहरहाल, रामनगर की जनता अब अधूरी उम्मीदों से आगे निकलकर बदलाव की तलाश में नजर आ रही है।