Brij Bihari Murder Case : 13 जून 1998 को बृज बिहारी हत्याकांड के पीछे क्या क्या कारण रहे, किस्सागोई की इस श्रृंखला का यह आखिरी पार्ट है. मोतिहारी, मुजफ्फरपुर और मोकामा के सारे तारों को जोड़ने वाले बृज बिहारी हत्याकांड ने पहले जहां 4 दिसम्बर 1994 को छोटन शुक्ला की हत्या होती है, वहीं अगस्त 1998 में भुटकुन शुक्ला की हत्या होती है. और 22 फरवरी 1998 को मोतिहारी में लोकसभा चुनाव के दिन विधायक देवेंद्र दुबे की हत्या होती है. इन सभी हत्याओं के पीछे मुख्य साजिशकर्ता के तौर पर बृज बिहारी प्रसाद का नाम आया था. तो देवेंद्र दुबे के भांजे मंटू तिवारी और छोटन शुक्ला तथा भुटकुन शुक्ला की हत्या के बाद मुन्ना शुक्ला ने खून के बदले खून का बदला लेने का ऐलान किया. वहीं देवेंद्र दुबे और शुक्ला ब्रदर्स के मित्र मोकामा वाले सूरजभान भी इन हत्याओं से चिंतित थे.
इसी बीच एक और बड़ी घटना हुई. 1998 में बिहार के नालंदा जिले में पुलिस ने ताश और जुआ खेलने के लिए बदनाम एक जगह पर छापेमारी की. वहां कुछ लोगों को पकड़ा गया. जैसे ही पुलिस ने वहां कुछ लोगों को पकड़ा उसमें एक शख्स को लेकर हर कोई परेशान सा दिखने लगा. और पुलिस ने जब करीब 6 फीट लंबाई, विशाल कद काठी, उभरे सीने, दमदार कंधे, उभरी और बड़ी बड़ी आंखें, बिखरे बाल वाले उस कद्दावर शख्स को पकड़ा और नाम पूछा तो उसका नाम सुनकर हैरान रहे गई. उसने अपना सूरजभान बताया. पुलिस ने जैसे ही सूरजभान नाम सुना उनके तो होश ही उड़ गए. सूरजभान जिसे बिहार ही नहीं बल्कि कई राज्यों की पुलिस तलाश रही, वह इस तरह पकड़ में आ जाएगा किसी ने सोचा भी नहीं था.
वह सूरजभान जिनके बारे में कहा जाता था कि उनका दाहिना हाथ इंडियाज मोस्ट वांटेड ललन सिंह था. जिसका सबसे खास गुर्गा श्री प्रकाश शुक्ला था जिसने मुख्यमंत्री की हत्या की सुपारी ली थी. उसका शूटर नागा बाद में नेपाल के तुलसीराम अग्रवाल अपहरण को अंजाम देता है जिसमें सन 2000 में फिरौती की जो राशि वसूली गई वह आज की तारीख में 100 करोड़ रुपए हो सकती है. जिसके गैंग में सुनील टाइगर जैसे लोग थे. जिसका मित्र देवेंद्र दुबे, शुक्ला ब्रदर्स, राजन तिवारी था. तो बिहार में अखबारों में यह खबर सबसे बड़ी सुर्ख़ियों के साथ छपी कि सूरजभान सिंह गिरफ्तार हो गए.
कहते हैं सूरजभान सिंह की गिरफ्तारी से एक शख्स जो सबसे ज्यादा खुश था उसका नाम था बृज बिहारी प्रसाद. बृज बिहारी की ख़ुशी जरूरी भी थी. उसे डर था कि देवेंद्र दुबे और शुक्ला ब्रदर्स की हत्या के बाद उनकी जान को भी खतरा है. इसमें मोकामा वाले सूरजभान सबसे बड़े खतरे के रूप में बृज बिहारी प्रसाद के लिए थे. तो स्वाभाविक है उनकी गिरफ्तारी से बृज बिहारी को बड़ी राहत मिली थी. कहते हैं बृज बिहारी इससे निश्चिन्त नहीं होना चाहता था कि सूरजभान की गिरफतारी से उसकी जान पर अब कोई खतरा नहीं रह गया है. कहते हैं यही कारण था बृज बिहारी चाहता था कि अब सूरजभान को भी खत्म कर दिया. वह भी जेल में ही.
इस बीच एक और घटना हुई. लालू सरकार में मंत्री रहे बृज बिहारी पर घोटाले के आरोप लगे. मामला इतना ज्यादा बढ़ गया कि लालू को अपने खास नेता को मंत्रिमंडल से हटाना पड़ा. इस दौरान घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआई को दिया गया और बृज बिहारी की गिरफ्तारी भी हुई. हालांकि जैसे ही उनकी गिरफ्तारी हुई उनके सीने में दर्द, विचलन, कमजोरी जैसी असंख्य परेशानी आ गई. कल तक जो बृज बिहारी आराम से चल-फिर रहे थे वे अचानक से गंभीर रूप से बीमार हो गए. उन्हें पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आईजीआईएमएस) में भर्ती करा दिया गया.
कथित रूप से दावा किया जाता है कि आईजीआईएमएस में रहकर ही अब बृज बिहारी ने सूरजभान को निपटाने की साजिश रचनी शुरू कर दी. यानी बेउर जेल में ही सूरजभान का खात्मा होना तय हुआ. लेकिन कहते हैं अपने खिलाफ रची जा रही इस साजिश की भनक सूरजभान को लग गई थी. वहीं शुक्ला ब्रदर्स और देवेंद्र दुबे की हत्या के बाद बृज बिहारी के बदला लेने की तैयारी में मोतिहारी से मुजफ्फरपुर तक बड़ी रणनीति चल रही थी. ऐसे में जब सूरजभान के खात्मे की बात का पर्दाफाश हुआ तो इसने बिहार के अंडर वर्ल्ड को हिला कर रख दिया.
कहते हैं कि यहीं से बृज बिहारी को आईजीआईएमएस में ही खत्म करने का प्लान बना. इसमें बृज बिहारी के किलाबन्द सुरक्षा को भेदने के लिए उस शंकरशंभू को हथियार बनाया गया जो भुटकुन शुक्ला की हत्या के बाद अंदरखाने बृजबिहारी का खास बना हुआ था. वहीं सूरजभान के खात्मे वाला प्लान जानते ही श्री प्रकाश शुक्ला का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह किसी भी कीमत पर अपने आका के खिलाफ साजिश रचने वाले को एके 47 से भून देना चाहता था.
तो इन तमाम कड़ीयों के बीच आईजीआईएमएस में कमांडों की तैनाती में रहने वाले बृज बिहारी को वार्ड से बाहर निकालने का जिम्मा शंकरशंभू को दिया गया. उस समय मोबाइल रखना रुतबे की बात थी. लेकिन हर जगह टावर नहीं पकड़ता था. तो 13 जून 1998 को शाम के समय एक प्लानिंग के तहत बृज बिहारी के मोबाइल पर फोन किया जाता है. लेकिन टावर नहीं पकड़ने के कारण बृज बिहारी अपने कमांडों की सुरक्षा में ही वार्ड से चहलकदमी करते हुए बरामदे पर आता है. समय तक रात करीब सवा आठ बजे. इधर जैसे ही बृज बिहारी बरामदे में आता है.
एक सूमो गाड़ी जिसका नंबर था बीआर 1पी-1818 , बेली रोड की तरफ से हॉस्पिटल के साउथ गेट से अंदर आई. सूमो के साथ ही एक उजले रंग की अंबेसडर गाड़ी भी अंडर प्रवेश करती है. बृजबिहारी प्रसाद, उनके सहयोगी और बॉडिगार्ड जहां खड़े थे वहां से ठीक बीस कदम पीछे दोनों गाड़ी रुक जाती है. इस दौरान वहीं मैदान में कई लोग थे. गर्मी का मौसम था तो लोग खुले मैदान में ही कोई बैठा था, कोई बेंच पर सुस्ता रहा था. लेकिन जैसे ही सूमो और अंबेसडर गाड़ी रूकती है. अचानक ने मैदान यहां-वहां बैठे लोगों की हलचल तेज हो जाती है. और फिर सूमो और अंबेसडर से कुछ लोग उतरते हैं, कुछ लोग मैदान में उठ खड़े होते हैं और असंख्य हथियारों की नली खुल जाती है. AK 47 की तड़तड़ाहट से पूरा आईजीआईएमएस गूंज जाता है. कोई AK 47 तड़तड़ा रहा था तो कोई पिस्टल, कार्बाइन से सामने वालों को भून रहा था. महज कुछ सेकेंड में बृजबिहारी प्रसाद ढेर हो चुके थे. उनके बॉडिगार्ड लक्ष्मेश्वर शाह सहित दो अन्य लोगों को भून डाला गया. ‘जय बजरंगबली’ का उद्घोष करते हमलावरों ने ख़ुशी में अपने AK 47 की नलियां आसमान की ओर मोड़ दिया. AK 47 की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका गूंज रहा था. क्योंकि बदला पूरा था देवेंद्र दुबे की हत्या का, और छोटन शुक्ला तथा भुटकुन शुक्ला की हत्या, सूरजभान के खिलाफ साजिश का, उन असंख्य लोगों का जो इस लड़ाई में मारे गए थे.
कहते हैं पटना में बृजबिहारी की हत्या होने के बाद रेडियो से रात के नौ बजे के समाचार प्रसारण में मुजफ्फरपुर में यह खबर आई कि पटना में AK 47 से बृजबिहारी प्रसाद ढेर हो गए हैं. इसके बाद तो पूरा मुजफ्फरपुर गोलियों से गूंजने लगा. मुजफ्फरपुर के माड़ीपुर से लेकर बैरिया तक सन्नाटा पसर गया था, लेकिन नया टोला से लेकर कलमबाग चौक, कॉलेज और यूनिवर्सिटी कैंपस से लेकर खबड़ा तक में गोलियों की तड़तड़ाहट ने खौफ पैदा कर दिया था. रह-रह कर हर्ष फायरिंग हो रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे दीपावली का जश्न मनाया जा रहा है.
खैर बृज बिहारी हत्याकांड का रहस्य सुलझाने के लिए पहले बिहार पुलिस ने केस अपने हाथों में लिया. फिर मामला सीबीआई के पास गया. पटना की निचली अदालत ने 12 अगस्त 2009 में दो पूर्व विधायकों राजन तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, पूर्व सांसद सूरजभान सिंह सहित 8 अभियुक्तों को इस मामले में दोषी पाया था. इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई. सभी ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. पटना हाईकोर्ट ने बृजबिहारी हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को 25 जुलाई 2014 को बरी कर दिया. न्यायमूर्ति इकबाल अहमद अंसारी और न्यायमूर्ति वीएन सिन्हा की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को पूरी तरह खारजि कर दिया. हाईकोर्ट ने जेल में बंद राजन तिवारी, मंटू तिवारी और मुन्ना शुक्ला को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया. जबकि, जमानत पर चल रहे पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, मुकेश सिंह, ललन सिंह, कैप्टन सुनील सिंह को बेल बांड से मुक्त कर दिया. हालांकि इसी वर्ष 3 अक्टूबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद मर्डर केस में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, पूर्व विधायक राजन तिवारी समेत छह आरोपियों को बरी करने के फैसले को सही ठहराया जबकि पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को दोषी ठहराया है. दोनों अब उम्रकैद की सजा काट रहे हैं.