Kishore Kunal: पूर्व आईपीएस अधिकारी और पटना के महावीर मंदिर न्यास समिति के संस्थापक सचिव आचार्य किशोर कुणाल का हार्ट अटैक से निधन हो गया है। वे एक कुशल प्रशासक एवं संवेदनशील पदाधिकारी थे। बहुचर्चित आइपीएस अधिकारी और पटना महावीर मंदिर के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने अपनी पुस्तक में कई खुलासे किए हैं। किशोर कुणाल ने आसाराम बापू के बारे में कहा कि गुजरात में आईपीएस अधिकारियों के समय भी उनकी शिकायतें आती थीं। जब वे बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष बने, तब आसाराम बापू के कुछ समर्थकों ने 2006 में पटना में एक मंदिर के लिए जमीन पर कब्जा करने का प्रयास किया। इस मामले में एक मंत्री ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ मेरी शिकायत की, लेकिन मुख्यमंत्री ने किसी की बात नहीं मानी और कहा कि किशोर कुणाल जो कर रहे हैं, उन्हें करने दिया जाए।
किशोर कुणाल ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि आसाराम बापू का गुजरात में कितना प्रभाव था। जब लोग ट्रेन से गुजरात आते थे, तो वे केवल यही कहते थे कि उन्हें आश्रम जाना है, और उन्हें महात्मा गांधी के आश्रम की बजाय आसाराम बापू के आश्रम में भेज दिया जाता था।
आचार्य किशोर कुणाल ने अपनी पुस्तक में गुजरात के नव-निर्माण आंदोलन का उल्लेख करते हुए लिखा है कि उनकी पहली पोस्टिंग पीएम मोदी के गृह जिले मेहसाणा में हुई थी, और उसी समय यह आंदोलन प्रारंभ हो चुका था। इस आंदोलन में छात्र सड़क पर सक्रिय थे, और जब पुलिस वहां से गुजरती थी, तो उन्हें 'मफतलाल' कहा जाता था। जब मैंने यह जानने का प्रयास किया कि लोग पुलिस को मफतलाल क्यों कह रहे हैं, तो मुझे यह जानकारी मिली कि लोग पुलिस को मुफ्त में खाने वाला समझते हैं, इसलिए उन्हें यह नाम दिया गया है।
यह घटना 1988 की है। उस समय किशोर कुणाल गुजरात लौट आए थे। मन मोहन सिंह वहां के डीजीपी थे। डीजीपी ने कुणाल की ईमानदारी की सराहना करते हुए उन्हें भ्रष्टाचार के विभिन्न रूपों के बारे में बताया था, "जहां-जहां शराबबंदी लागू है, वहां अधिकारियों के लिए अवसरों की भरमार है। उन पर धन की वर्षा होती है, जो सावन-भादों की बारिश को भी मात दे देती है। इस धन की वर्षा की विशेषता यह है कि यह मौसम पर निर्भर नहीं करती। कभी आद्रा नक्षत्र की बौछार तो कभी हथिया की मूसलधार।" वर्षों बाद भी मन मोहन सिंह की यह बात बिहार में पूरी तरह से सही साबित हो रही है। यह उद्धरण 1972 बैच के प्रसिद्ध आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल की पुस्तक से लिया गया है। उनकी पुस्तक ‘दमन तक्षकों का’ केवल उनकी जीवनी नहीं है, बल्कि यह देश की उस समय की भ्रष्ट व्यवस्था को उजागर करती है, जिसे उन्होंने गुजरात, झारखंड और बिहार में अनुभव किया।