Mithila Karnata dynasty: पूर्वी चंपारण जिले के घोड़ासहन प्रखंड में स्थित अगरवा बॉर्डर के पार नेपाल का कवलपुर गांव है। यह गांव नेपाल के सिम्रौनगढ़ राज का प्रवेश द्वार कहा जाता था। स्थानीय लोगों के अनुसार, इसरा पोखर के किनारे स्थित कंकाली मंदिर में मूर्तियों के अनगिनत अवशेष मिले हैं। आसपास के तालाबों से भी मूर्तियां, सिक्के और अन्य पुरातात्विक वस्तुएं मिलती रहती हैं।
ब्रह्मा की मिली विशाल मूर्ति
वर्ष 1991 से 1994 के दौरान इटली की एक टीम ने यहां खुदाई की थी, लेकिन उसके बाद से इस पर रोक लग गई। 2018 में कोल्ड स्टोर के पास से शिवलिंग मिला था और 2023 में मनसगरा ढाठ गांव में ब्रह्मा की एक विशाल मूर्ति मिली। इन खोजों के बाद नेपाल के पुरातात्विक विभाग ने 30 साल बाद फिर से खुदाई शुरू की, लेकिन कुछ ही दिनों में इसे बंद कर दिया गया।
मूर्तियां कर्णाट शैली की
स्थानीय इतिहासकारों का मानना है कि सिम्रौनगढ़ से मिलने वाले अवशेष भारत और नेपाल की साझा धरोहर हैं। ये सभी मूर्तियां कर्णाट शैली की हैं जो इस क्षेत्र में पाल शासन के प्रमाण नहीं मिलने का संकेत देती हैं।
कर्णाट वंश की गाथा
नेपाल स्थित सिम्रौनगढ़ हरिहरपुर गांव में 21 नवंबर से 11 दिसंबर तक खुदाई का कार्य किया गया, जहां साझा विरासत के प्राचीन अवशेषों का विशाल भंडार प्राप्त हुआ है। इसके अतिरिक्त, खजानी टोले से स्वर्णाभूषण मिलने की सूचना भी है। कर्णाट वंश की गाथा अब फिर से हर किसी की जुबान पर है। कर्णाट वंश की कुलदेवी तुलजा भवानी के मंदिर के महत्वपूर्ण अवशेषों के साथ-साथ तिरहुत और मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर के कई प्रमाण भी मिले हैं। यह हमारी (भारत-नेपाल) साझा सांस्कृतिक विरासत के प्रमाण को और अधिक मजबूत करता है। नेपाल के साथ-साथ भारतीय पुरातत्वविद भी इस बात को स्वीकार करने लगे हैं कि तिरहुत-मिथिला क्षेत्र के भूगर्भ से प्राप्त ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा, सूर्य, कृष्ण आदि देवताओं के अवशेष महत्वपूर्ण हैं।
मिथिला राज का खजाना
सिमौनगढ़ में तिरहुत मिथिला राज का खजाना मिलने की जानकारी हाल ही में सामने आई है। यह खजाना उस समय का है जब मिथिला क्षेत्र एक समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान था।
खजाने की खोज
खजाने की खोज का आरंभ तब हुआ जब स्थानीय लोगों ने सिमौनगढ़ के पास खुदाई करने का निर्णय लिया। इस खुदाई के दौरान उन्हें विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक वस्त्र, सिक्के और अन्य कलाकृतियाँ मिलीं। ये वस्त्र और कलाकृतियाँ उस समय की संस्कृति और जीवनशैली को दर्शाती हैं।
खजाने का महत्व
तिरहुत मिथिला राज का खजाना न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को भी उजागर करता है। इसमें मिले सिक्के विभिन्न साम्राज्यों के शासनकाल को दर्शाते हैं, जिससे इतिहासकारों को उस समय की राजनीतिक स्थिति समझने में मदद मिलती है।
विज्ञान और तकनीक का उपयोग
इस खजाने की जांच के लिए आधुनिक विज्ञान और तकनीक का उपयोग किया गया। पुरातत्वविदों ने कार्बन डेटिंग और अन्य विश्लेषणात्मक विधियों का सहारा लेकर इन वस्तुओं की उम्र निर्धारित करने की कोशिश की। इससे यह स्पष्ट हुआ कि ये वस्तुएँ कई शताब्दियों पुरानी हैं।