मुजफ्फरपुर के एमआईटी कॉलेज के फार्मेसी विभाग के छात्रों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो न केवल पर्यावरण के लिए वरदान साबित होगी, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगी। इन छात्रों ने मौसमी (मौसम्बी) के छिलकों से बायोडिग्रेडेबल उत्पाद बनाकर दिखाया है कि कृषि अपशिष्ट को मूल्यवान संसाधन में कैसे बदला जा सकता है। इस अभिनव परियोजना की लागत प्रति उत्पाद मात्र 45 पैसे आई है. जिससे यह नवाचार न केवल प्लास्टिक प्रदूषण को कम करेगा बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है।
छात्रों का कहना है कि उन्होंने इस परियोजना के माध्यम से कृषि अपशिष्ट को उपयोगी और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों में बदलने की संभावनाओं को बखूबी प्रदर्शित किया है। इस नवाचार को प्रोत्साहित करने वाले उनके मार्गदर्शक प्रो. रवि कुमार और प्रो. निर्मल कश्यप ने इसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है। विभागाध्यक्ष डॉ. संजय कुमार ने भी सराहना करते हुए कहा, “यह परियोजना भविष्य में एक सफल स्टार्टअप बन सकती है और स्थायी विकास की दिशा में एक अहम कदम है।”
मौसमी के छिलके: स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए वरदान
छात्रों ने न केवल मौसमी के छिलकों का उपयोग पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद बनाने में किया, बल्कि इनका स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। मौसमी के छिलकों में विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, जो प्रतिरक्षा को बढ़ाने, पाचन में सुधार करने और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में सहायक है। इन गुणों के कारण, छात्रों द्वारा बनाए गए बायोडिग्रेडेबल कप न केवल प्लास्टिक का एक स्थायी विकल्प हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
इस प्रोजेक्ट से भविष्य के स्टार्टअप की उम्मीदें भी हुईं मजबूत
प्रो. मनीष कुमार भारती ने कहा कि यह नवाचार छात्रों के लिए न केवल तकनीकी विकास का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि उनके भविष्य के स्टार्टअप संभावनाओं को भी मजबूत करता है