PATNA - पटना हाईकोर्ट ने एक महिला चपरासी की सेवा को लिंग के आधार पर पुरुष कर्मचारी की तुलना में प्राथमिकता देने के विरुद्ध निर्णय सुनाया, जो एक बालिका विद्यालय में स्वीकृत पद पर थी। जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा ने इस मामले पर सभी पक्षों को सुनने के बाद ये निर्णय दिया।
कोर्ट ने पाया कि वैधानिक समर्थन के बिना, रोजगार की मान्यता लिंग जैसे बाह्य कारकों के बजाय वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर होनी चाहिए। प्रतिवादी की सेवा को मान्यता देने वाले आदेशों को अलग रखते हुए, जिन्हें एक अस्वीकृत पद पर नियुक्त किया गया था।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पिता के स्वीकृत पद पर वैध दावे को मान्यता देने का निर्देश दिया और वेतन बकाया और सेवानिवृत्ति बकाया सहित सभी मौद्रिक लाभों का भुगतान करने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता के पिता रामदेव यादव को 1982 में प्रोजेक्ट गर्ल्स हाई स्कूल, आनंदपुर में चपरासी के रूप में नियुक्त किया गया था। रामदेव यादव की नियुक्ति स्वीकृत पद के विरुद्ध थी, लेकिन प्राधिकारियों ने पद की अनुपलब्धता के आधार पर उनकी मान्यता खारिज कर दी। इसके बजाय, अस्वीकृत पद पर नियुक्त लालदेई देवी की सेवा को उनके लिंग के आधार पर प्राथमिकता दी गई।
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के पिता रामदेव यादव ने 1982 से प्रोजेक्ट गर्ल्स हाई स्कूल, आनंदपुर में दो स्वीकृत श्रेणी-IV पदों में से एक में लगातार चपरासी के रूप में काम किया था। लालदेई देवी को बाद में 1983 में अस्वीकृत पद पर नियुक्त किया गया था। फिर भी उनकी सेवा को केवल उनके लिंग के आधार पर प्राथमिकता दी गई थी। कोर्ट ने पाया कि लड़कियों के स्कूल में काम करने वाली महिला होने के कारण लालदेई देवी के पक्ष में प्राधिकारियों का फैसला मनमाना और सरकारी दिशानिर्देशों या समिति की सिफारिशों द्वारा समर्थित नहीं है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रबंध समिति, जिला शिक्षा अधिकारी और अन्य अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के पिता की सेवा को वर्षों से लगातार मान्यता दी है। उनके स्पष्ट अधिकार के बावजूद उन्हें मान्यता देने से इनकार करने का निर्णय ऐसी नियुक्तियों के लिए स्थापित मानदंडों का उल्लंघन माना गया। कोर्ट ने अधिकारियों की इस गलती को वर्षों से ठीक करने में विफल रहने के लिए भी आलोचना की, जिससे लालदेई देवी को मनमाने फैसले के आधार पर काम करना जारी रखने की अनुमति मिल गई।
कोर्ट ने जोर दिया कि सेवा की मान्यता से जुड़े फैसले लिंग जैसे बाहरी कारकों के बजाय वस्तुनिष्ठ मानदंडों पर आधारित होने चाहिए, जब ऐसी वरीयताओं के लिए कोई वैधानिक आधार नहीं है।