नगर परिषद बड़हिया में निलंबन–पुनर्बहाली का खेल! पारदर्शिता और प्रक्रिया पर उठे गंभीर सवाल

लखीसराय जिले के नगर परिषद बड़हिया में एक कर्मी पर कार्रवाई की प्रक्रिया सवालों के घेरे में हैं. नगर परिषद में कार्रवाई और निलंबन और पुनः निलंबन वापसी की इस पूरी प्रक्रिया ने कई सवाल खड़े किये हैं.

Nagar Parishad Barhiya
Nagar Parishad Barhiya - फोटो : news4nation

Bihar news: लखीसराय जिले के नगर परिषद बड़हिया में प्रभारी प्रधान सहायक मृत्युंजय कुमार सिंह पर की गई कार्रवाई अब गहरे सवालों में घिर गई है। पहले गंभीर आरोप लगाकर निलंबित किया गया और महज चार दिन बाद ही बहाल कर दिया गया। आदेशों में विरोधाभास ने इस पूरी प्रक्रिया को और विवादित बना दिया है।


आरोप और कार्रवाई

विदित हो कि सभापति ने अपने पत्र के माध्यम से प्रभारी प्रधान सहायक मृत्युंजय कुमार के विरुद्ध शिकायत दर्ज करते हुए उनके निलंबन की अनुशंसा की थी। पत्र में आरोप लगाया गया कि उन्होंने निविदित योजनाओं की संचिका गुम कर दी और अमर्यादित व्यवहार किया। साथ ही, उनसे मांगा गया स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं पाए जाने की बात भी कही गई, जिसके आधार पर निलंबन की मांग की गई।


आपको बता दें कि 23 जुलाई 2025 को हुई सामान्य बोर्ड की बैठक में प्रस्ताव संख्या 11(09) के तहत सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि मृत्युंजय कुमार सिंह को प्रभारी प्रधान सहायक पद से विमुक्त किया जाए। बैठक के इस निर्णय के बाद 6 अगस्त से उनकी जिम्मेदारी नगर प्रबंधक अनुप्रिया रानी को सौंप दी गई। फिर 28 अगस्त 2025 को तत्काल प्रभाव से निलंबन का आदेश जारी कर दिया गया।


चार दिन बाद बहाली

हैरानी की बात यह रही कि 1 सितम्बर 2025 को नगर परिषद ने नया आदेश निकालते हुए उनका निलंबन समाप्त कर दिया। आदेश में कहा गया कि उन्होंने 8 मई 2025 को ही सभापति को स्पष्टीकरण दे दिया था, लेकिन उसकी प्रति समय पर कार्यालय को उपलब्ध नहीं हो सकी। इसी आधार पर निलंबन समाप्त करने का आदेश जारी किया गया।


विरोधाभास गहराया

यहीं सबसे बड़ा विरोधाभास सामने आता है। 28 अगस्त के आदेश में लिखा गया कि मृत्युंजय कुमार का स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं है। वहीं 1 सितम्बर के आदेश में कहा गया कि स्पष्टीकरण तो 8 मई को ही दे दिया गया था, लेकिन कार्यालय तक समय पर पहुँचा नहीं। यानी एक ओर जवाब को असंतोषजनक कहा गया और दूसरी ओर यह स्वीकार किया गया कि जवाब तो मिला ही नहीं। यही विरोधाभास नगर परिषद की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।


उठते सवाल

अगर स्पष्टीकरण मई में ही दे दिया गया था तो उसकी प्रति कार्यालय के पास क्यों नहीं है? जब संचिका गुम करने और अनुशासनहीनता जैसे गंभीर आरोप थे तो चार दिन में बहाली कैसे हो गई? बोर्ड बैठक के प्रस्ताव और सर्वसम्मति निर्णय के बाद भी क्या बहाली प्रक्रिया नियमसंगत कही जा सकती है? निलंबन खत्म कर दिया गया, तो फिर प्रधान सहायक की कुर्सी क्यों नहीं लौटाई गई?


चर्चा का विषय

नगर परिषद के इस “निलंबन–पुनर्बहाली” खेल ने पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। आमजन अब यही पूछ रहे हैं कि जब आरोप गंभीर थे तो बहाली का आधार क्या था और अगर बहाली सही थी तो फिर पद क्यों नहीं लौटाया गया? नगर परिषद की यह कार्यशैली अब स्थानीय स्तर पर चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा बन चुकी है।


कमलेश की रिपोर्ट