Bihar News : राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह सहित कई नामचीन पत्रकारों के खिलाफ कोर्ट ने कुर्की जब्ती का दिया आदेश, जानिए क्या है पूरा मामला
Bihar News : राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह सहित तत्कालीन कई पत्रकारों की मुश्किलें बढ़ गयी है. कोर्ट ने इनके खिलाफ कुर्की जब्ती का आदेश जारी किया है.....पढ़िए आगे

LAKHISARAI : बाईस साल पुराने मानहानि मामले में राज्यसभा उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह समेत कई नामचीन पत्रकारों पर कुर्की-जब्ती का आदेश जारी हुआ है। लखीसराय के प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी मो. फहद हुसैन की अदालत ने 22 साल पुराने मानहानि और अपमानजनक समाचार प्रकाशन से जुड़े मामले में राज्यसभा उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह , प्रभात खबर के तत्कालीन प्रधान संपादक शार्दुल विक्रम गुप्त, संपादकीय प्रभारी राघवेन्द्र और अन्य पत्रकारों के खिलाफ कुर्की-जब्ती का आदेश जारी किया है। अदालत ने सभी आरोपियों को 25 जुलाई 2025 को पेश होने का अंतिम मौका दिया है।
मामला क्या है?
यह मामला वर्ष 2003 में पूर्व भाजपा विधायक कृष्ण चंद्र प्रसाद सिंह द्वारा दायर परिवाद संख्या 40C/03 से जुड़ा है। आरोप है कि हिन्दी दैनिक प्रभात खबर, दैनिक आज और कौमी तंजीम ने जानबूझकर ऐसा समाचार प्रकाशित किया, जिससे उनकी राजनीतिक और सामाजिक छवि को धूमिल किया गया।
परिवाद में शामिल प्रमुख नाम
हरिवंश नारायण सिंह (तत्कालीन प्रधान संपादक प्रभात खबर, वर्तमान में राज्यसभा उपसभापति) शार्दुल विक्रम गुप्त (तत्कालीन संपादक प्रभात खबर) राघवेन्द्र (सम्पादकीय प्रभारी) शशि शुक्ला (स्थानीय संपादक एवं प्रबंधक, दैनिक आज) प्रमोद शर्मा (स्थानीय संवाददाता सह भाकपा नेता) कृष्ण देव (कौमी तंजीम के संवाददाता)
अदालत की अब तक की कार्रवाई
7 अगस्त 2003 को अदालत ने IPC की धारा 501(B) और 504 के तहत संज्ञान लिया। पहले समन जारी हुआ, फिर अनुपस्थिति रहने पर जमानतीय और गैर-जमानतीय वारंट जारी किए गए। लेकिन 22 वर्षों तक कोई आरोपी अदालत में पेश नहीं हुआ। अब अदालत ने कुर्की-जब्ती की कार्रवाई का आदेश जारी किया है।
किसने आत्मसमर्पण किया?
इस आदेश की जानकारी मिलते ही स्थानीय पत्रकार अजीत और कृष्ण देव ने अपने अधिवक्ताओं रजनीश कुमार और राखी कुमारी के माध्यम से अदालत में आत्मसमर्पण किया। अदालत ने उन्हें सशर्त जमानत पर रिहा कर दिया। वहीं, एक अन्य विवाद में जेल में बंद भास्कर के संवाददाता गौरव को भी अदालत ने जमानत पर मुक्त करने का आदेश दिया।
22 साल में आदेश क्यों लागू नहीं हो सके?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि 2003 से 2025 यानी पूरे 22 वर्षों में अदालत के समन और वारंट का तामिला क्यों नहीं कराया गया? आरोपी इस दौरान सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे। उनमें से एक वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति जैसे संवैधानिक पद पर हैं। न्यायालय के आदेशों को लागू कराने के लिए मौजूद पुलिस व प्रशासनिक तंत्र की यह गंभीर विफलता मानी जा रही है।
अब आगे क्या होगा?
अदालत ने 25 जुलाई 2025 को सभी आरोपियों की व्यक्तिगत पेशी को अनिवार्य कर दिया है। यदि वे अनुपस्थित रहते हैं तो उन्हें फरार घोषित कर वास्तविक कुर्की-जब्ती की कार्रवाई होगी। संवैधानिक पद पर बैठे आरोपी के मामले में कानूनी बहस हो सकती है, लेकिन न्यायालयीन आदेश से राहत पाना आसान नहीं होगा।
तारीख घटना
दरअसल 2003 में पूर्व विधायक कृष्ण चंद्र प्रसाद सिंह ने परिवाद संख्या 40C/03 दायर किया। 7 अगस्त 2003 को अदालत ने IPC 501(B) व 504 में संज्ञान लिया और समन जारी किया। हालाँकि 2003-2024 में आरोपी पेश नहीं हुए। जिसके बाद जमानतीय व गैर-जमानतीय वारंट जारी हुए। 2025 में अदालतने कुर्की-जब्ती का आदेश जारी किया वहीँ 25 जुलाई 2025 अदालत में पेश होने की अंतिम तिथि तय किया गया है!
लखीसराय से कमलेश की रिपोर्ट