इस संसार में अगर किसी रिश्ते को सबसे खास माना जाता है तो वो दोस्ती का रिश्ता होता है। दोस्ती इंसान के लिए भगवान का आशीर्वाद होता है। ऐसे में अगर आपका कोई दोस्त दुश्मन में तब्दील हो जाए तो आपके प्राण ऊपर होना वाजिब है। दुश्मन अगर दोस्त हो तो कई बार इंसान को हथियार डाल ही देना पड़ता है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति 100 दुश्मनों से बदला ले सकता है, लेकिन अपने एक दोस्त से कभी नहीं ले सकता। ऐसे में आईए आज हम आपको एक ऐसी राज की बात बताने जा रहे है जिसके कारण एक सगा दोस्त भी कब आपका दुश्मन बन जाएगा ये आपको समय रहते पता चल जाएगा।
दरअसल, इस दुनिया में किसी को भी दुश्मन बनाने के लिए बहुत सारी चीज़ें मौजूद हैं। बस कमी है तो किसी दुश्मन को दोस्त बनाने वाले साधनों की। लेकिन चाणक्य ने इसका भी जवाब ढूंढ निकाला है और ये जवाब मौजूद है उनकी नीति में। चाणक्य नीति में एक वाक्य है "अग्नि दाहादपि विशिष्टं वाक्पारुष्यम्" इस वाक्य का अर्थ है कठोर वाणी आग से जलने से भी अधिक दुखदायी होती है। जैसे कहा जाता है कि तलवार का घाव भर जाता है, लेकिन कठोर वाणी का घाव दिल पर सदा के लिए रह जाता है। इस लिए इंसान को समय पर अपने गुस्से और कठोर वाणी पर लगाम लगाना चाहिए।
कहा जाता है कि जिस मनुष्य को अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रहता है, वो अपनी कठोर वाणी से दोस्त को भी दुश्मन बना लेता है। और ये दुश्मन जीवन का एक ऐसा अफसोस बन जाता है जिसे याद कर इंसान हर पल अंदर ही अंदर जलता है। उसकी ये जलन उसे बर्बादी की राह पर ले जाती है, साथ ही उसके हर बनाये काम को बिगाड़ देती है। कठोर वाणी से इंसान अपनी बनी बनाई ज़िंदगी को नर्क में झोंक देता है। साथ ही उसकी इस बुरी स्थिति में कोई दोस्त भी उसका साथ देने नहीं आता।