Veer Kunwar Singh Vijayotsav: भारत की आजादी का 1857 में बाबू वीर कुंवर सिंह ने किया था सूत्रपात, 80 साल की आयु में 81 दिन तक आजमगढ़ को रखा आज़ाद - मुरली मनोहर श्रीवास्तव
Veer Kunwar Singh Vijayotsav : बुधवार को वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव है. जब भी भारत की आज़ादी की चर्चा होती है. वीर कुंवर सिंह का नाम शिद्दत से लिया जाता है. 80 साल की आयु में उन्होंने अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिए.....पढ़िए आगे

PATNA : बुधवार को वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव मनाया जा रहा है। पटना में इसके लिए एयर शो किया जा रहा है। दरअसल रण बांकुरे बाबू वीर कुंवर सिंह भारत के उन वीर पुरुषों में गिने जाते हैं । जिन्हें 1857 की क्रांति के लिए याद किया जाता है । इन्होंने इस क्रांति में बढ़-चढ़कर योगदान दिया और देश को अंग्रेज मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों का भी न्योक्षावर कर दिया । भारतवासी अपने इतिहास को धीरे-धीरे भूल गए हैं । बाबू साहब के जीवन चरित्र को जान करके आप का भी देश के प्रति लगाव बढ़ जाएगा । देश की आजादी की लड़ाई के लिए इन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी । भला ऐसे वीर पुरुष को बुला देना इतिहास को शोभा नहीं देता है । जब तक कि भारत की पीढ़ियां और 1857 की क्रांति का नाम याद रखा जाएगा । तब तक वीर कुंवर सिंह का नाम भी जोड़ा जाएगा। क्योंकि इस 80 साल के व्यक्ति ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए भारत के कई हिस्सों में उठ रहे क्रांति को बढ़ाने का काम किया। जिससे आगे चलकर भारत को आजादी मिल सकी। 1857 की क्रांति में मंगल पांडे को एक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखा जाता है । कुंवर सिंह एक चतुर और कुशल योद्धा थे । जिन्होंने भारत के अलग-अलग कोने में उठ रही ज्वाला को अपने साथ मिलाने का पूर्ण प्रयास करते रहे और कानपुर की रानी लक्ष्मीबाई तथा नाना राव तक साथ निभाया था।
बिहार के भोजपुर जिले जगदीशपुर रियासत में आजादी का लौह स्तंभ स्थापित किया। उसके पश्चात इन्होंने भारत के और भी कई जिले जैसे कानपुर, बांदा, लखनऊ, रीवा, रोहतास, आजमगढ़ जैसे राज्यों को ब्रिटिश शासन प्रणाली से मुक्त कराया। 1857 की क्रांति के पश्चात वीर बहादुर कुंवर सिंह का नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा जाने लगा। उन्होंने बचपन से ही तीर कमान, घुड़सवारी, युद्ध कौशल जैसी क्रियाओं में योगदान देते रहे। वे अपने राज्य जगदीशपुर में बेहद खुशी का माहौल रखते थे । फिर ब्रिटिश शासन प्रणाली ने भारतीय संस्कृति में कदम रखा और धीरे-धीरे यह भारत के बुनियाद को खोखला करना शुरू कर दिया । तब तक वीर कुंवर सिंह बहुत ही छोटे थे और उन्हें तब ब्रिटिश शासन प्रणाली की रणनीति के विषय में पता नहीं था । लेकिन जैसे जैसे वह बड़े होते गए ब्रिटिश शासन प्रणाली ने अलग अलग टैक्स लगाकर किसानों तथा जमींदारों का जीना दुश्वार कर दिया । कुंवर सिंह के बहादुरी के किस्से जगदीशपुर से लेकर आपको बांदा तक के बच्चों-बच्चों से सुनाई देंगी। इन्होंने अपनी मृत्यु के आखिरी वक्त तक अंग्रेजों से लोहा लिया । वह अपने जिंदा होने तक अंग्रेजों को लोहे के चने चबवाते रहे। हालांकि अंग्रेजों ने कई बार उन्हें मारने का प्रयास किया। लेकिन उनकी सारी प्लानिंग फेल करती चली गई। वीर कुंवर सिंह ने अब ईस्ट इंडिया की कंपनी की रणनीतियों को समझ लिया था। अंग्रेजों ने भारत में उपस्थित सभी राज्यों को लड़ाने और फूट डालो राज करो की नीति से अपने राज्य की स्थापना की और वह बहुत सफल भी रहे। उन्होंने धीरे-धीरे पूरे भारत पर कब्जा कर लिया । मुगलिया वंश से लेकर राजपूताना वंश तक सभी अंग्रेजों के अधीन हो गए । शुरू से वीर कुंवर सिंह इन सब चीजों से वाकिफ हो रहे थे । 1857 की क्रांति कोई 1 दिन की क्रांति नहीं थी । यह लगातार कई वर्षों से चल रहे आक्रोश का नतीजा था ।
अंग्रेजों ने सभी किसानों के ऊपर तथा जमींदारों को ऊपर कर लगाना शुरू कर दिया । जिससे जगदीशपुर की किसान और जमींदार जमींदारों का आक्रोश अंग्रेज के प्रति बढ़ने लगा। अब वीर कुंवर सिंह 80 वर्ष के हो चुके थे । और 1857 का समय आज क्या था । जगह-जगह क्रांति भड़कने लगी। कानपुर में नाना राव, रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के प्रति आंदोलन तथा युद्ध छेड़ दिया था । फिर भारत के अलग-अलग जगहों पर युद्ध होना शुरू हो गया । अतः अंग्रेजों के प्रति आक्रोश के चलते जगदीशपुर में भी युद्ध की आंधी चलने लगी और कुंवर सिंह अंग्रेजों से लड़ने का फैसला कर लिया । इन्होंने जमींदारों तथा किसानों की एक बड़ी टोली बनाई । कुंवर सिंह 80 साल की होने के साथ-साथ एक सूझबूझ और सलाहकार युद्ध रणनीति में माहिर थे । उन्होंने अपने प्रदेश में उपस्थित हिंदू तथा मुसलमानों को एकत्रित किया और उन्हें युद्ध कौशल में निपुण करने के पश्चात हथियारों के साथ अपनी टोली बना ली । उन्होंने सर्वप्रथम विद्रोह जगदीशपुर के “आरा” से शुरू किया । इस आंधी को उठते देख अंग्रेज तिलमिला गए । उन्होंने सैनिकों की एक टुकड़ी भेजे, जिससे कुंवर सिंह के लोगों ने मिलकर उस टुकड़ी को नेस्तनाबूद कर दिया और कुंवर सिंह के लोग लगातार आगे बढ़ते रहें । साथ ही में उन्होंने आजमगढ़ पर उपस्थित सैनिकों पर हमला करके उसे आजाद करवा लिया । कुंवर सिंह की बहादुरी के लिए 81 दिन तक आजमगढ़ को आजाद कराना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में शामिल है।
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
लेखक-वीर कुंवर सिंह की प्रेम कथा