Bihar News: चुनावी साल में नीतीश का बड़ा तोहफ़ा, बिहार के मजदूरों की जेब होगी भारी, अब रोज मिलेगा 660 रुपए मेहनताना

श्रमिकों की न्यूनतम मज़दूरी में बढ़ोतरी करके सरकार ने मज़दूर वर्ग का मनोबल बढ़ाने की कोशिश की है...

Workers to Get rs 660 Daily Wages
बिहार के मजदूरों की जेब होगी भारी- फोटो : social Media

Bihar News: चुनावी मौसम में राजनीति की ज़ुबान अक्सर जनता के हक़, रोज़गार और रहन-सहन से जुड़ी घोषणाओं के इर्द-गिर्द घूमती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए बिहार के मेहनतकश तबके को राहत देने का ऐलान किया है। श्रमिकों की न्यूनतम मज़दूरी में बढ़ोतरी करके सरकार ने एक तरफ़ तो मज़दूर वर्ग का मनोबल बढ़ाने की कोशिश की है, वहीं दूसरी ओर सियासी नज़रिए से देखें तो यह कदम चुनावी गणित को साधने की दिशा में अहम साबित हो सकता है।

नई अधिसूचना के मुताबिक अब राज्य में अकुशल मज़दूर को 428 रुपए, अर्द्धकुशल को 444 रुपए, कुशल को 541 रुपए और अतिकुशल मज़दूर को 660 रुपए रोज़ाना मिलेंगे। यानि कामगार की मेहनत की क़ीमत में औसतन चार से छह रुपए की वृद्धि हुई है। देखने में यह मामूली इज़ाफ़ा लगता है, लेकिन बढ़ती महंगाई के दौर में मज़दूर के लिए यह कुछ हद तक राहत की सांस जैसा है।

सरकार का तर्क है कि यह फ़ैसला महंगाई भत्ते के रूप में किया गया है और यह वृद्धि कृषि, उद्योग और निर्माण समेत सभी क्षेत्रों पर लागू होगी। आदेश साफ़ है कि अगर कोई नियोक्ता इन दरों का उल्लंघन करता है तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी। दरअसल, मज़दूरी दरों में समय-समय पर आकलन कर बढ़ोतरी करना विभाग की ज़िम्मेदारी है, और अप्रैल 2025 में भी इसी तरह की वृद्धि की गई थी।

अगर व्यापक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो मज़दूरी में यह बढ़ोतरी राजनीतिक संदेश से भी भरी हुई है। एक तरफ़ विपक्ष लगातार सरकार पर आरोप लगाता है कि गरीब और मज़दूर तबका उपेक्षित है, तो दूसरी तरफ़ यह घोषणा बताती है कि सरकार श्रमिक हितैषी है। चुनावी साल में जब मतदाता हर कदम को बारीकी से परख रहा हो, तब ऐसी घोषणाएँ सीधे ज़मीनी वोट बैंक पर असर डालती हैं।

हालाँकि, विपक्ष यह सवाल उठाने से नहीं चूकेगा कि मज़दूरी में हुई यह बढ़ोतरी वास्तविक महंगाई की तुलना में बहुत कम है। रोज़गार के अवसर और स्थायी काम देने की बजाय केवल प्रति-दिन की दर बढ़ाना, लंबी अवधि में कितना असरदार होगा यह बहस का मुद्दा है।

कुल मिलाकर, नीतीश कुमार का यह क़दम दोहरी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है एक तरफ़ आर्थिक दबाव झेल रहे मज़दूरों को राहत देना और दूसरी तरफ़ राजनीतिक ज़मीन को और मजबूत करना। जनता इसे कितना सराहेगी और चुनावी नतीजों पर इसका क्या असर होगा, यह आने वाला समय बताएगा।