Bihar Election Commission: बिहार में मतदाता सूची की समीक्षा को लेकर चुनाव आयोग का बड़ा ऐलान! कहा-'देश में कोई भी गैर भारतीय...'

Bihar Election Commission: बिहार में मतदाता सूची की गहन समीक्षा पर हो रहा राजनीतिक बवाल अब राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बन गया है। जानिए इस कवायद के पीछे की रणनीति और विपक्ष के आरोप।

Bihar Election Commission
बिहार में मतदाता सूची की जांच- फोटो : social media

Bihar Election Commission: निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा केवल बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे एक राष्ट्रव्यापी अभियान के रूप में 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले सभी राज्यों में लागू किया जाएगा।इस अभियान के तहत आयोग घर-घर जाकर मतदाताओं की पुष्टि करेगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कोई गैर-भारतीय नागरिक मतदाता सूची में शामिल न हो। कोई मृतक व्यक्ति या डुप्लिकेट प्रविष्टि सूची में शेष न रह जाए। निवास स्थान के आधार पर सही क्षेत्र में मतदाता पंजीकरण हो

यह पहल संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुरूप है, जिसके तहत केवल योग्य नागरिकों को ही मताधिकार प्राप्त होना चाहिए। बिहार को इसलिए प्राथमिकता दी गई क्योंकि वहां जल्द ही चुनाव संभावित हैं।

आगामी राज्यों की सूची: कहां-कहां होगी अगली कार्रवाई?

निर्वाचन आयोग की योजना के अनुसार अगली गहन समीक्षा उन राज्यों में की जाएगी, जहां 2026 में विधानसभा चुनाव हैं। ये इस प्रकार है असम,पश्चिम बंगाल,केरल,तमिलनाडु,पुद्दुचेरी। इसके बाद 2027 में चुनाव वाले राज्यों में यह प्रक्रिया होगी, जिनमें शामिल हैं उत्तर प्रदेश,गुजरात,पंजाब,हिमाचल प्रदेश, गोवा और मणिपुर। 2028-29 में कुल 17 राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं, और इसी समय तक सभी राज्यों की मतदाता सूचियों की शुद्धता सुनिश्चित करना आयोग का लक्ष्य है।

बिहार में अभियान की प्रगति: आंकड़ों में तस्वीर

बिहार में मतदाता सूची की गहन समीक्षा के आंकड़े बताते हैं कि यह एक विशाल और संसाधन-गहन प्रक्रिया है। इस दौरान 7.90 करोड़ फॉर्म प्रिंट किए गए। 7.7 करोड़ (97% से अधिक) फॉर्म बांटे गए। हालांकि, 3.70 करोड़ (लगभग 47%) जमा हुए। डिजिटल रूप से केवल 18.16% अपलोड हुए हैं। अंतिम तिथि 25 जुलाई है और बचे हुए समय में शेष डेटा संग्रह और सत्यापन एक बड़ी चुनौती रहेगा।

राजनीतिक बवाल और न्यायिक चुनौती

इस प्रक्रिया को लेकर विपक्षी दलों ने गंभीर आपत्ति जताई है। उनके मुख्य तर्क हैं कि नागरिकता की पुष्टि करना सरकार का काम है, आयोग का नहीं है। आधार कार्ड, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज अमान्य बताए जा रहे हैं, जबकि बिहार के अधिकांश लोग इन्हीं पर निर्भर हैं। प्रवासी मजदूरों और अन्य राज्यों में रहने वाले नागरिकों के लिए यह प्रक्रिया बाधक बन सकती है। विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई 10 जुलाई को होगी। साथ ही बिहार में चक्का जाम और अन्य विरोध प्रदर्शन भी नियोजित हैं।

असम और बंगाल में विशेष चुनौती

विशेष रूप से असम और पश्चिम बंगाल में यह प्रक्रिया संवेदनशील मानी जा रही है। यहां बांग्लादेशी घुसपैठियों की उपस्थिति को लेकर पहले से ही राजनीतिक बहस और सामाजिक तनाव का माहौल है। असम में NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) का अनुभव और बंगाल में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर हुए विरोध प्रदर्शन इस अभियान को और अधिक जटिल बना सकते हैं। निर्वाचन आयोग के लिए यह परीक्षा की घड़ी होगी कि वह कैसे निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखते हुए समीक्षा कर पाता है।

मुख्य चुनाव आयुक्त का पक्ष

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने इस कवायद को लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाला कदम बताया। उनका कहना है कि हमारा लक्ष्य है कि प्रत्येक योग्य भारतीय नागरिक को मतदाता सूची में स्थान मिले, और कोई अयोग्य व्यक्ति सूची में न रहे। यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जनविश्वास बनाए रखने के लिए आवश्यक है।"