बिहार में जिलों को कब तक मिलेंगे प्रभारी मंत्री, सीएम नीतीश को इस बात का है इंतजार
सरकार जिलों के प्रभारी मंत्रियों की घोषणा करने जा रही है। प्रभारी मंत्री नहीं होने से जल-जीवन-हरियाली और सड़क जैसी अहम योजनाओं की समीक्षा ठप है और अधिकारी बड़े फैसले नहीं ले पा रहे हैं।
Patna : नई सरकार के गठन के बाद जिलों में विकास योजनाओं की कछुआ चाल अब खत्म होने वाली है। 16 दिसंबर से शुरू हो रहे खरमास से पहले राज्य के सभी 38 जिलों को उनके प्रभारी मंत्री मिल जाने की प्रबल संभावना है। मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) को फिलहाल भाजपा की ओर से सूची का इंतजार है। सूची मिलते ही मंत्रियों के बीच जिलों का बंटवारा कर दिया जाएगा।
वरिष्ठ मंत्रियों को मिल सकते हैं दो-दो जिले
सूत्रों के अनुसार, सरकार के वर्तमान 26 मंत्रियों के बीच ही 38 जिलों का प्रभार बांटा जाएगा। इसमें दोनों उपमुख्यमंत्री और वरिष्ठ अनुभवी मंत्रियों को दो-दो जिलों की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। मौजूदा मंत्रिमंडल में 17 पुराने और अनुभवी चेहरे हैं, जबकि 9 नए मंत्री हैं। प्रभारी मंत्री ही 'जिला कार्यक्रम एवं कार्यान्वयन समिति' के अध्यक्ष होते हैं।
क्यों अटकी है घोषणा?
प्रभारी मंत्रियों की घोषणा में हो रही देरी के पीछे राजनीतिक संतुलन को एक बड़ी वजह माना जा रहा है। विभागों के बंटवारे के बाद अब जिलों का प्रभार सौंपने में क्षेत्रीय समीकरण, जातीय प्रतिनिधित्व और गठबंधन के गणित को साधा जा रहा है, जिस कारण अंतिम फैसला लेने में वक्त लग रहा है।
प्रभारी मंत्री नहीं होने से 'ब्रेक' पर विकास
जिलों में प्रभारी मंत्री नहीं होने का सीधा असर प्रशासनिक कामकाज और विकास योजनाओं पर दिख रहा है। सीएम की प्राथमिकता वाली योजनाएं जैसे- जल-जीवन-हरियाली, नल-जल, सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की मॉनिटरिंग प्रभावित हुई है। बिना मंत्री के समीक्षा बैठकें नहीं हो पा रही हैं।
अधिकारी पशोपेश में:
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जिलाधिकारी (DM) और विभागीय अधिकारी नीतिगत और बड़े प्रस्तावों पर अंतिम निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।शहरी विकास, पेयजल आपूर्ति, स्कूल भवन निर्माण और सिंचाई जैसी कई अहम परियोजनाएं प्रभारी मंत्री की स्वीकृति और निरीक्षण के अभाव में अटकी पड़ी हैं।
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जनता की सुनवाई भी प्रभावित
- सिर्फ विकास कार्य ही नहीं, बल्कि आम जनता की शिकायतों का निपटारा भी प्रभावित हो रहा है। जिलों में मंत्रियों के दौरे और जन-सुनवाई नहीं होने से लोगों की समस्याएं ऊपर तक नहीं पहुंच पा रही हैं। पंचायत प्रतिनिधि भी विकास कार्यों की मंजूरी के लिए प्रभारी मंत्रियों की राह देख रहे हैं