'साला, हरा&जादा, रद्दी है बिहारी'... नीतीश के सांसद के बिगड़े बोल, तो राजद विधायक की पीटने की धमकी, बिहार के नेता भूले भाषा की मर्यादा

राजनेताओं को जनसेवक कहा जाता है, लेकिन जब जनप्रतिनिधियों द्वारा क्षेत्र के लोगों से गाली गलौज और सरकारी अधिकारी-कर्मी को पीटने की बातें की जाने लगे तो यह स्वास्थ्य लोकतंत्र का परिचायक नहीं कहा जा सकता.

Devesh Chandra Thakur/Bhai Virendra
Devesh Chandra Thakur/Bhai Virendra- फोटो : news4nation

Bihar News: 'साला, हरा&जादा, रद्दी है बिहारी', यह बिहार के एक सांसद की भाषा है। बिहार की राजनीति एक बार फिर नेताओं की अमर्यादित भाषा और व्यवहार को लेकर चर्चा में है। हाल ही में राजद नेता भाई वीरेंद्र और लोकसभा सांसद देवेश चंद्र ठाकुर के कथित वायरल ऑडियो क्लिप्स सामने आए हैं, जिनमें उन्होंने न सिर्फ अधिकारियों बल्कि आम जनता के प्रति भी अपमानजनक और गाली-गलौज भरे शब्दों का प्रयोग किया है। यह घटनाएं केवल व्यक्तिगत आचरण का मामला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक गरिमा और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी पर गंभीर प्रश्नचिन्ह हैं।


भाई वीरेंद्र के वायरल ऑडियो में एक अधिकारी को धमकी देते हुए सुना गया, जिसमें वे अशोभनीय भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। वहीं, देवेश चंद्र ठाकुर का एक ऑडियो सामने आया है जिसमें वे किसी व्यक्ति को अपमानित करते हुए खुलेआम बिहारियों को गालियाँ दे रहे हैं। ये दोनों घटनाएं यह दिखाती हैं कि सत्ता के करीबी और सियासी सफलता पा चुके कुछ नेता किस तरह भाषा की मर्यादा भूलकर तानाशाही शैली में संवाद कर रहे हैं।


राजद विधायक भाई वीरेंद्र जहां एक सरकारी कर्मी पर धौंस जमाते हुए उसे जूते से पीटने जैसी बातें करते हैं. वहीं सीतामढ़ी के JDU सांसद देवेश चंद्र ठाकुर का भी ऑडियो वायरल है. JDU सांसद क्या शानदार गालियां पढ़ते हैं? फोन किया है क्षेत्र का आदमी और गाली पूरे बिहार को देते हैं देवेश चंद्र ठाकुर, सांसद महोदय कहते हैं , 'ई बिहार के आदमी साला इतना सब रद्दी है कि कोई काम के लिए फोन कर देता है'. उनकी दिक्कत रात 12 बजे उनके क्षेत्र के आदमी द्वारा फोन करने पर आपत्ति जताना था जिसके लिए पूरे बिहार को गाली देते हैं. इतना ही नहीं यह भी कहने से नहीं रुकते कि अगली बार आप 4 वोट हमारे विरोधी को दे दीजियेगा. हालांकि news4nation वायरल ऑडियो की पुष्टि नहीं करता है. 


दरअसल, नेता जब गाली-गलौज की भाषा बोलते हैं, तो यह न केवल उनके व्यक्तित्व को दर्शाता है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख भी कमज़ोर होती है। ऐसे भी जनता जिन प्रतिनिधियों को चुनती है, उनसे वह सम्मानजनक व्यवहार, संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की अपेक्षा करती है, न कि अहंकार और अपमान।


समाज और राजनीति में शिष्टाचार और संवाद की मर्यादा का बना रहना बेहद ज़रूरी है। यदि राजनेता ही भाषा की मर्यादा को तोड़ेंगे, तो यह एक खतरनाक परंपरा की शुरुआत होगी। ऐसे मामलों में राजनीतिक दलों को भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए और अनुशासनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि लोकतंत्र की गरिमा बनी रहे।