Bihar Politics: महागठबंधन में पप्पू यादव की स्थिति पर सवाल, राहुल की सभा में पप्पू यादव की उपेक्षा ने मचाई सियासी सनसनी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ के दौरान पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव को जिस तरह से नजरअंदाज किया गया, उसने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है।

Bihar Politics:बिहार की राजनीति में लोकसभा चुनाव के बाद हालात शांत भले दिख रहे हों, लेकिन अंदरखाने की हलचल साफ है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ के दौरान सासाराम में हुई जनसभा ने महागठबंधन की एकजुटता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मंच पर जहां कांग्रेस, राजद और वाम दलों के नेता एक साथ दिखे, वहीं पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव को जिस तरह से नजरअंदाज किया गया, उसने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है।
सभा के दौरान सभी बड़े नेताओं ने भाषण दिए, लेकिन पप्पू यादव को न तो बोलने का मौका दिया गया और न ही किसी नेता ने उनके नाम तक का ज़िक्र किया। यह घटना तब और चुभने लगी जब उनके समर्थक लगातार नारे लगाकर बोलने का मौका मांगते रहे, लेकिन आयोजन समिति ने उनकी आवाज़ अनसुनी कर दी।
कार्यक्रम खत्म होने के बाद जब पप्पू यादव मंच से उतरे, तो उनके चेहरे की मायूसी किसी से छिपी नहीं रही। पत्रकारों ने जब उनसे सवाल किया कि क्या वे आगे भी राहुल गांधी की यात्रा में शामिल होंगे, तो उन्होंने टालमटोल करते हुए सिर्फ इतना कहा कि राहुल गांधी सदी के जननायक हैं।”
लेकिन बाकी सवालों पर उन्होंने चुप्पी साध ली। यह चुप्पी ही आने वाले तूफ़ान का संकेत मानी जा रही है।
यह पहला मौका नहीं है जब महागठबंधन के मंच पर पप्पू यादव की अनदेखी हुई हो। 9 जुलाई को बिहार बंद के दौरान पटना में आयोजित मार्च में भी उन्हें राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ वैन पर चढ़ने से रोक दिया गया था। उस समय भी यह सवाल उठा था कि आखिर पप्पू यादव को बार-बार क्यों अलग-थलग किया जा रहा है।
महागठबंधन के इस रवैये ने चर्चाओं को और हवा दे दी है। सवाल उठ रहा है कि क्या पप्पू यादव को महागठबंधन में टिकने नहीं दिया जाएगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बार-बार की उपेक्षा से पप्पू यादव के समर्थकों में असंतोष गहराता जाएगा और यह असंतोष भविष्य में महागठबंधन की एकता को चुनौती दे सकता है।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव मंच पर हाथ थामकर एकता का संदेश दे रहे थे, लेकिन उसी मंच पर पप्पू यादव को किनारे कर देना इस "एकता" को खोखला साबित करता दिखा। समर्थकों की मानें तो यह सब “सोची-समझी साज़िश” है, ताकि पप्पू यादव की आवाज़ दबाई जा सके।
सासाराम की सभा ने साफ कर दिया है कि महागठबंधन के भीतर सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है। पप्पू यादव की बार-बार की उपेक्षा केवल व्यक्तिगत मुद्दा नहीं, बल्कि महागठबंधन की भीतर की खींचतान और सत्ता संघर्ष का आईना है। आने वाले दिनों में यह मतभेद और गहरा सकता है, जो 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की राजनीति को नई करवट दे सकता है।