करारी शिकस्त के बाद लालू कुनबे में खींचतान,राजद में दिखने लगे बाग़ी तेवर, तेजस्वी के सामने संगठन बचाने का संकट

RJD controversy: बिहार विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद राजद के सामने सबसे बड़ी चुनौती है दल में टूट को रोकना और सियासी नैरेटिव को फिर से खड़ा करना।..

RJD controversy
तेजस्वी के सामने संगठन बचाने का संकट- फोटो : social Media

RJD controversy: बिहार विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद राजद के सामने सबसे बड़ी चुनौती है दल में टूट को रोकना और सियासी नैरेटिव को फिर से खड़ा करना। कभी पंद्रह साल तक बिहार की सत्ता पर हुकूमत करने वाले लालू प्रसाद यादव ने जब राजनीति का मैदान थामा था, तब उन्होंने विरोधियों की तोड़-फोड़ की सियासत में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। एल.के. आडवाणी की राम रथ यात्रा रोकने के बाद लालू ने मुस्लिम यादव (MY) समीकरण को ऐसा धारदार हथियार बनाया कि 1992 के बाबरी विध्वंस के बाद यह गठजोड़ और मजबूत होकर उभरा।

लेकिन वक्त का पहिया घूमा है।विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद RJD में अंदरूनी हलचल तेज हो गई है।वहीं, परिवार की दीवार भी दरकने लगी है तेज प्रताप पहले ही दूरी बना चुके थे और अब रोहिणी का सार्वजनिक विद्रोह RJD के लिए नए संकट की दस्तक है। रोहिणी आचार्य का मीडिया के सामने फूट पड़ा बयान“मेरा कोई परिवार नहीं” ने पार्टी के भीतर उबलते असंतोष को सामने ला दिया। चुनावी नतीजों ने तेजस्वी को कुछ घंटों में अर्श से फर्श पर ला पटका। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी जब ड्राइंग रूम में बैठकर MY समीकरण कागज़ पर मजबूत करते रहे, तब ज़मीन पर यह गठजोड़ चटक चुका था। यादव वोटों में बिना दरार पड़े NDA को इतना बड़ा समर्थन मिलना मुमकिन नहीं था।

पहली बार 2020 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल में सेंधमारी शुरू की थी। मगर इस बार का नज़ारा और भी तीखा है न सिर्फ सीमांचल, बल्कि पूरे बिहार की मुस्लिम बहुल सीटों पर लालू का पुराना समीकरण बिखरता नज़र आया। AIMIM ने सीमांचल की पांचों सीटों बैसी, जोकीहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन और अमौर पर बड़ी मार्जिन से जीत दर्ज कर RJD की कमज़ोरी को बेनक़ाब किया। इन इलाकों में मुसलमान आबादी 40% से ऊपर है, लेकिन इन पांच सीटों पर हारने वालों में महागठबंधन और जेडीयू के मुस्लिम उम्मीदवार भी शामिल रहे। वहीं, NDA ने भी मुस्लिम बहुल सीटों पर अपनी टैली दोगुनी कर नए सियासी समीकरण का संकेत दिया।यहीं नहीं बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राष्ट्रीय जनता दल के भविष्य पर कई स्तरों पर गहरा असर डालना शुरू कर दिया है। इस चुनाव में पार्टी ने सबसे ज्यादा 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन नतीजा सिर्फ 25 सीटें जीत पाई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार विधानसभा में राजद की हार आने वाले वर्षों में दिल्ली की सियासत में भी पार्टी के लिए बड़ा संकट खड़ा कर देगी। 2030 तक ऐसा पहली बार होगा कि राज्यसभा में आरजेडी का एक भी सांसद मौजूद नहीं होगा। इसके साथ ही मुस्लिम समाज की यह नाराज़गी कि 18  आबादी के बावजूद उन्हें उपमुख्यमंत्री का चेहरा नहीं मिला, तेजस्वी के लिए बड़ा चूक बिंदु साबित हुआ। 

बहरहाल रोहिणी की बगावत के बाद अब निगाहें इस बात पर हैं कि संजय यादव और रमीज़ जैसे तेजस्वी के रणनीतिक सहयोगियों पर पार्टी क्या रुख अपनाती है। जानकारों का कहना है यह सिर्फ एक व्यक्ति की नाराज़गी नहीं, बल्कि RJD के भीतर पनपते बड़े असंतोष का इज़हार है। यह साफ है कि करारी हार ने RJD को सत्ता से ज्यादा, संगठन और परिवार दोनों मोर्चों पर हादसे की कगार पर ला खड़ा किया है।