Tejashwi Yadav: तेजस्वी का सपना चकनाचूर, मुश्किल से बचा नेता प्रतिपक्ष का पद, RJD की ऐतिहासिक मात से परिवार में खींचतान
तेजस्वी यादव न सिर्फ मुख्यमंत्री बनने के अपने सपने से मीलों दूर रह गए, बल्कि अब उनकी पार्टी के सामने नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है।
Tejashwi Yadav: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का जनादेश सामने आ चुका है और तस्वीर बिल्कुल साफ एनडीए ने 202 से ज़्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर एक बार फिर से सत्ता पर कब्ज़ा जमाने का रास्ता पक्का कर लिया है। दूसरी तरफ, महागठबंधन और विशेष रूप से आरजेडी के लिए यह चुनाव 2010 के बाद सबसे करारी हार लेकर आया है। तेजस्वी यादव न सिर्फ मुख्यमंत्री बनने के अपने सपने से मीलों दूर रह गए, बल्कि अब उनकी पार्टी के सामने नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है।
243 सदस्यीय विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए किसी भी दल को कम से कम 10 फीसदी, यानी 24 सीटें चाहिए। मौजूदा हालात में आरजेडी लगभग 25 सीटों पर पकड़ बनाए हुए है, लेकिन यदि एक-दो सीट इधर-उधर हुई तो विपक्ष का सबसे अहम पद भी हाथ से फिसल सकता है। यह स्थिति उस पार्टी के लिए बेहद असहज है जिसने पिछले एक दशक में खुद को भाजपा-नीतीश गठबंधन के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में खड़ा किया था।
हालांकि हार के सागर के बीच तेजस्वी यादव ने अपनी परंपरागत सीट राघोपुर को एक बार फिर बचाने में सफलता पाई है। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार सतीश कुमार यादव को करीब 14,000 वोटों के अंतर से हराया। चुनाव के कई दौर में वह पीछे भी चल रहे थे, लेकिन अंतिम राउंड में बढ़त बनाकर जीत सुनिश्चित की। यह वही सीट है जहां से वर्ष 2010 में उनकी मां और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, सतीश कुमार से पराजित हुई थीं। दिलचस्प यह भी है कि तेजस्वी ने सतीश कुमार को लगातार तीसरी बार शिकस्त दी है।
लेकिन इस व्यक्तिगत जीत से इतर, पार्टी की तस्वीर बेहद धुंधली है। 2010 में आरजेडी 21 सीटों पर सिमट गई थी और 2025 का नतीजा ठीक उसी दर्दनाक अध्याय की याद दिलाता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार की हार सिर्फ चुनाव रणनीति की विफलता नहीं, बल्कि संगठनात्मक कमजोरियों, परिवारगत कलह और जातीय समीकरणों के ढहने का सम्मिलित परिणाम है।
एनडीए की प्रचंड जीत ने जहां सूबे की सियासत को एक बार फिर नया आयाम दिया है, वहीं आरजेडी के सामने अस्तित्व और नेतृत्व दोनों की साख को बचाने का सबसे मुश्किल दौर खड़ा कर दिया है। आने वाले हफ्तों में यह तय होगा कि पार्टी नेता प्रतिपक्ष जैसी बुनियादी स्थिति बचा पाती है या नहीं क्योंकि इस बार की हार ने सिर्फ वोट नहीं छीने, बल्कि RJD के राजनीतिक आत्मविश्वास को भी गहरी चोट पहुंचाई है।