सियासी तपिश में शेरो-शायरी और संगीत बने मोहब्बत का पुल, बिहार विधानसभा के गरमाए माहौल में नीतीश-तेजस्वी के सामने खूब पढ़े गए शेर

तुम बांटते हो समाज को मुझे एतराज ना हो ऐसा हो नहीं सकता... न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदुस्तान वालों.. खामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूँ तो शिकायत होती है... ऐसे ही शेरो शायरी से विधानसभा गुलजार रहा.

Bihar Assembly
Bihar Assembly- फोटो : news4nation

Bihar News: जब सियासत गरमाई हुई हो, और सियासतदानों की जुबान केवल आग उगल रही हो, तब देश का माहौल तनावपूर्ण और बिखराव भरा हो जाता है। ऐसे समय में शेरो-शायरी और मौशिकी (संगीत) दिलों को जोड़ने का काम करती है। इनकी मिठास, भावनाओं की गहराई और इंसानियत की बातें लोगों के दिलों को छू जाती हैं। जहां भाषण नफरत बढ़ाते हैं, वहीं एक ग़ज़ल, एक गीत या एक शेर लोगों को सोचने पर मजबूर कर देता है। यह सुकून का जरिया बनता है और लोगों के बीच संवाद का पुल बनता है। सच कहा जाए, तो मौशिकी और शायरी सियासत से ऊपर की चीज़ है। 


बिहार विधानमंडल के मानसून सत्र में ही पहले दिन से ही सियासी आरोप-प्रत्यारोपों की आग बरस रही है. ऐसे में गुरुवार को विधानसभा में मौशिकी और शायरी से सियासी ठंडक आई जब न केवल पक्ष और विपक्ष बल्कि स्पीकर भी शायरी पढने लगे. मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर विपक्ष की आपत्तियों के बीच गुरुवार को बिहार विधानसभा में इस पर चर्चा हुई. कांग्रेस विधायक दल के नेता डॉ शकील अहमद खान ने अपनी बातों को रखते हुए शायरी से शुरुआत की. 


तुम बांटते हो समाज को मुझे एतराज ना हो ऐसा हो नहीं सकता...

उन्होंने मशहूर शायर जनाब परवेज अख्तर साहब का एक शेर पढ़ा कि 'उनके गरिबा में खंजर हो मुझे एतराज ना हो ऐसा हो नहीं सकता. कोई अपना गम सुनाए मुझे खिराज ना हो ऐसा हो नहीं सकता. मैं इंसा हूं, मुझे खुदा ने इंसा बनाया है इंसा के लिए. किसी इंसा को दर्द हो और मुझे वो दर्द ना हो ऐसा हो नहीं सकत. तुम भूल गए अपने फर्ज को मुझे फर्ज याद ना हो ऐसा हो नहीं सकता.  तुम बांटते हो समाज को मुझे एतराज ना हो ऐसा हो नहीं सकता . 


न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदुस्तान वालों..

शकील अहमद खां ने एक शेर सुनाया तो स्पीकर नंद किशोर यादव की जुबान भी शायराना हो गई. उन्होंने जवाबी शेर सुनाया। नंद किशोर यादव ने कहा कि शकील साहब चुनाव आयोग आपके शेर के जवाब में कहेगा- इरादे मेरे हमेशा साफ होते हैं, इसलिए कई लोग मेरे खिलाफ होते हैं। वहीं शकील अहमद खां ने अपनी बातों के अंत में फिर से इक़बाल की पंक्तियां पढ़ी-  वतन  की फ़िक्र कर नादां, मुसीबत आने वाली है, तेरी बर्बादियों के मश्वरे हैं आसमानों में, न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदुस्तान वालों, तुम्हारी दास्ताँ तक न होगी दास्तानों में. 


खामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूँ तो शिकायत होती है...

वहीं सत्ता पक्ष की ओर से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर विपक्ष की चिंताओं पर जवाब दे रहे संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी भी शकील अहमद खां और नंद किशोर यादव के शेरों को याद कर 'सबा अफगानी' का मशहूर शेर 'गुलशन की फकत फूलो से नही , काँटों से भी जीनत होती है जीने के लिये इस दुनियां में गम की भी जरूरत होती है' का आगे का हिस्सा सुनाया. उन्होंने शकील अहमद खां को कहा - वो पुर्सिश-ए-ग़म को आए हैं कुछ कह न सकूँ चुप रह न सकूँ, खामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूँ तो शिकायत होती है. 

साक्षी की रिपोर्ट